ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 66/ मन्त्र 17
काव्ये॑भिरदा॒भ्या या॑तं वरुण द्यु॒मत् । मि॒त्रश्च॒ सोम॑पीतये ॥
स्वर सहित पद पाठकाव्ये॑भिः । अ॒दा॒भ्या॒ । आ । या॒त॒म् । व॒रु॒ण॒ । द्यु॒ऽमत् । मि॒त्रः । च॒ । सोम॑ऽपीतये ॥
स्वर रहित मन्त्र
काव्येभिरदाभ्या यातं वरुण द्युमत् । मित्रश्च सोमपीतये ॥
स्वर रहित पद पाठकाव्येभिः । अदाभ्या । आ । यातम् । वरुण । द्युऽमत् । मित्रः । च । सोमऽपीतये ॥ ७.६६.१७
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 66; मन्त्र » 17
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ यज्ञेषु सोमादिसात्त्विकपदार्थैः विदुषः सत्कारो वर्ण्यते।
पदार्थः
(वरुण) हे सर्वपूज्य (मित्रः) सर्वमित्र (अदाभ्या) अवञ्चनीय (द्युमत्) तेजस्विन् विद्वन् ! भवन्तः सर्वे (सोमपीतये) सोमपानार्थम् (काव्येभिः) आकाशयानैः (आ, यातं) आगच्छन्तु ॥१७॥
हिन्दी (3)
विषय
अब यज्ञ में सोमादि सात्त्विक पदार्थों द्वारा देव=विद्वानों का सत्कार कथन करते हैं।
पदार्थ
(वरुण) हे सर्वपूज्य (मित्रः) सर्वप्रिय (अदाभ्या) संयमी (च) तथा (दयुमत्) तेजस्वी विद्वानों ! आप लोग (सोमपीतये) सोमपान करने के लिये (काव्येभिः) यानों द्वारा (आ, यातं) भले प्रकार आयें ॥१७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा ने शिष्टाचार का उपदेश किया है कि हे प्रजाजनों ! तुम सर्वपूज्य, विद्वान्, जितेन्द्रिय तथा वेदोक्त कर्मकर्त्ता विद्वानों को सुशोभित यानों द्वारा सत्कारपूर्वक अपने घर वा यज्ञमण्डप में बुलाओ और सोमादि उत्तमोत्तम पेय तथा खाद्य पदार्थों द्वारा उनका सत्कार करते हुए उनसे सदुपदेश श्रवण करो ॥ यहाँ यह भी ज्ञात रहे कि “सोम” के अर्थ चित्त को आह्लादित करने तथा सात्त्विक स्वभाव बनानेवाले रस के हैं, किसी मादक द्रव्य के नहीं, क्योंकि वेदवेत्ता विद्वान् लोग जो सूक्ष्म बुद्धि द्वारा उस परमात्मा को प्राप्त होने का यत्न करते हैं, वे मादक द्रव्यों का कदापि सेवन नहीं करते, क्योंकि सब मादक द्रव्य बुद्धिनाशक होते हैं और सोम के मादक द्रव्य न होने में एक बड़ा प्रमाण यह है कि “ऋत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्” ८।२।१२॥ इस मन्त्र में “न सुरायां” पद दिया है, जिसका अर्थ यह है कि सोम सुरा के समान मादक द्रव्य नहीं, इससे सिद्ध है कि बुद्धिवर्धक सात्त्विक पदार्थ का नाम सोम है ॥१७॥
विषय
उत्तम स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( वरुण ) सर्व श्रेष्ठ जन ! आप और ( मित्रः च ) सर्व स्नेही, आप दोनों ( सोमपीतये ) ओषधि रसवत् राष्ट्र-शरीर की रक्षा और उपभोग के लिये ( काव्येभिः ) विद्वान् कवि जनों की वाणियों द्वारा ( अदाभ्याः) अहिंसाकारी, स्वयं भी अहिंसा व्रतचारी, होकर दोनों (आयातं) आइये और (द्युमत् ) ऐश्वर्य से पूर्ण देश को प्राप्त करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १—३, १७—१९ मित्रावरुणौ। ४—१३ आदित्याः। १४—१६ सूर्यो देवता। छन्दः—१, २, ४, ६ निचृद्गायत्री। ३ विराड् गायत्री। ५, ६, ७, १८, १९ आर्षी गायत्री । १७ पादनिचृद् गायत्री । ८ स्वराड् गायत्री । १० निचृद् बृहती । ११ स्वराड् बृहती । १३, १५ आर्षी भुरिग् बृहती । १४ आ आर्षीविराड् बृहती । १६ पुर उष्णिक् ॥
विषय
अहिंसक बनो
पदार्थ
पदार्थ- हे (वरुण) = श्रेष्ठ जन! और (मित्रः च) = सर्वस्नेही, आप दोनों (सोमपीतये) = ओषधिरसवत् राष्ट्र की रक्षा और उपभोग के लिए (काव्येभिः) = कविजनों की वाणियों द्वारा (अदाभ्या) = अहिंसा-व्रतचारी होकर (आयातं) = आओ और (द्युमत्) = ऐश्वर्यपूर्ण देश को (यातम्) = प्राप्त करो।
भावार्थ
भावार्थ- श्रेष्ठ जन राष्ट्र की रक्षा के लिए ब्रह्मचर्य का सेवन करते हुए वेद के अनुसार राज्य-व्यवस्था को चलावें जिससे राष्ट्र के निवासी अहिंसा व्रत को धारण करते हुए देश को ऐश्वर्य सम्पन्न बनाने में सहयोगी बनें।
इंग्लिश (1)
Meaning
May Varuna, blazing lord of fearless justice, and Mitra, fearless, loving and enlightened friend, come with saints and sages to protect and promote our soma yajna and join the celebration.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमेश्वराने शिष्टाचाराचा उपदेश केलेला आहे. हे प्रजाजनांनो! तुम्ही सर्व पूज्य, विद्वान, जितेंद्रिय व वेदोक्त कर्मकर्त्या विद्वानांना सुशोभित यानांद्वारे सत्कारपूर्वक आपल्या घरी किंवा यज्ञमंडपात आमंत्रित करा व सोम इत्यादी उत्तमोत्तम पेय व खाद्य पदार्थांद्वारे त्यांचा सत्कार करून त्यांच्याकडून सदुपदेश ऐका.
टिप्पणी
येथे हे लक्षात ठेवले पाहिजे की ‘सोम’चा अर्थ चित्ताला आल्हादित करणे किंवा सात्त्विक स्वभाव बनविणाऱ्या रसाचा आहे. एखाद्या मादक द्रवाबाबत नाही. कारण वेदवेत्ते विद्वान सूक्ष्म बुद्धीद्वारे परमेश्वराला प्राप्त करण्याचा प्रयत्न करतात. ते मादक द्रवाचे कधीही सेवन करीत नाहीत. कारण मादक द्रव्य बुद्धिनाशक असतात व सोम मादक द्रव्य नसण्याचे एक मोठे प्रमाण हे आहे की ‘ऋत्सु पीतासो युद्धन्ते दुर्मदासो न सुराया’ ॥८।२।१२॥ या मंत्रात ‘न सुराया’ पद दिलेले आहे. ज्याचा अर्थ आहे, की सोम सुराप्रमाणे मादक द्रव्य नाही. यावरून हे सिद्ध होते, की बुद्धिवर्धक सात्त्विक पदार्थाचे नाव सोम आहे ॥१७॥
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