ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 18/ मन्त्र 20
ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः
देवता - आदित्याः
छन्दः - निचृदुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
बृ॒हद्वरू॑थं म॒रुतां॑ दे॒वं त्रा॒तार॑म॒श्विना॑ । मि॒त्रमी॑महे॒ वरु॑णं स्व॒स्तये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठबृ॒हत् । वरू॑थम् । म॒रुता॑म् । दे॒वम् । त्रा॒तर॑म् । अ॒श्विना॑ । मि॒त्रम् । ई॒म॒हे॒ । वरु॑णम् । स्व॒स्तये॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
बृहद्वरूथं मरुतां देवं त्रातारमश्विना । मित्रमीमहे वरुणं स्वस्तये ॥
स्वर रहित पद पाठबृहत् । वरूथम् । मरुताम् । देवम् । त्रातरम् । अश्विना । मित्रम् । ईमहे । वरुणम् । स्वस्तये ॥ ८.१८.२०
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 18; मन्त्र » 20
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 28; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 28; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(त्रातारम्) रक्षकम् (मरुताम्, देवम्) योद्धॄणां राजानम् (अश्विना) ज्ञानेन कर्मणा व्यापकौ जनौ च (मित्रम्) सर्वेषु स्नेहकर्तारम् (वरुणम्) शत्रुवारकं च (स्वस्तये) सुखाय (बृहत्) पुत्रधनादिसम्पन्नम् (वरूथम्) गृहम् (ईमहे) याचामहे ॥२०॥
विषयः
पुनः प्रार्थनां दर्शयति ।
पदार्थः
वयं स्वस्तये=कल्याणाय=सुखनिवासाय । मरुताम्=प्राणानां बाह्यवायूनाञ्च । त्रातारम्=रक्षकम् । देवम्=परमात्मानम् । अश्विना=अश्विनौ=राजानौ । मित्रम्=ब्राह्मणप्रतिनिधिम् । वरुणम्=क्षत्रियं प्रतिनिधिञ्च । बृहद्=महद् । वरूथम्=वरणीयं ज्ञानं ज्ञानभवनम् । ईमहे=याचामहे ॥२० ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(त्रातारम्) प्रजाओं के रक्षक (मरुताम्, देवम्) योद्धाओं के स्वामी से (अश्विना) ज्ञान तथा कर्म द्वारा सर्वत्र वर्तमान नेताओं से (मित्रम्) सब पर स्नेह रखनेवाले नेता से (वरुणम्) प्रजाओं के विघ्नवारण करने में प्रवृत्त नेता से (स्वस्तये) सुखके लिये (बृहत्) पुत्रधनादि सुखहेतुसम्पन्न (वरूथम्) गृह हो (ईमहे) याचना करते हैं ॥२०॥
भावार्थ
प्रजाओं के रक्षक योद्धाओं तथा राष्ट्रपति के स्वामी विद्वान्, पुरुष, ज्ञान तथा कर्मकाण्ड का प्रचार करनेवाले, मनुष्यमात्र को मित्रता की दृष्टि से देखनेवाले, प्रजाओं के दुःख तथा उनके मार्ग में विघ्नों के निवारण करनेवाले और न्यायपथ से च्युत राष्ट्रपति के अन्याय से दुःखी प्रजा को सुख में परिणत करनेवाले नेताओं से हम याचना करते हैं कि वे हमारी सन्तानों को सुमार्ग में प्रवृत्त करें और धनधान्यसहित हमारे गृहों के रक्षक हों ॥२०॥
विषय
पुनः प्रार्थना दिखलाते हैं ।
पदार्थ
हम (स्वस्तये) कल्याणार्थ और सुखपूर्वक निवास के लिये (मरुताम्) प्राणों और बाह्य वायुओं के (त्रातारम्+देवम्) रक्षक देव से (अश्विना) राजा और अमात्यादिकों से (मित्रम्) ब्राह्मण प्रतिनिधि से और (वरुणम्) राजप्रतिनिधि से (बृहद्) बहुत बड़ा (वरूथम्) ज्ञानभवन (ईमहे) माँगते हैं ॥२० ॥
भावार्थ
सर्वदा ईश्वर से ज्ञान की याचना करनी चाहिये ॥२० ॥
विषय
विद्वानों से नाना कल्याण-प्रार्थनाएं।
भावार्थ
हम लोग ( स्वस्तये ) अपने सुख कल्याण के लिये ( बृहद् वरूथं ) बड़े भारी कष्टनिवारक गृह के समान शरण करने योग्य ( मरुतां ) मनुष्यों वा सैन्य जनों के बीच ( देवं ) सूर्यवत् तेजस्वी और (अश्विना) व्यापक सामर्थ्यवान् माता पिता, ( मित्र ) स्नेही बन्धुजन और (वरुणं) श्रेष्ठ पुरुष को ( ईमहे ) प्राप्त करें आप लोगों से हम गृहादि की याचना करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इरिम्बिठिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—७, १०—२२ आदित्यः। ८ अश्विनौ। ९ आग्निसूर्यांनिलाः॥ छन्दः—१, १३, १५, १६ पादनिचृदुष्णिक्॥ २ आर्ची स्वराडुष्णिक् । ३, ८, १०, ११, १७, १८, २२ उष्णिक्। ४, ९, २१ विराडुष्णिक्। ५-७, १२, १४, १९, २० निचृदुष्णिक्॥ द्वात्रिंशत्यूचं सूक्तम्॥
विषय
प्राणायाम तथा 'स्नेह व निर्देषता' की साधना
पदार्थ
[१] (मरुताम्) = प्राणों का (वरूथम्) = दोष निवारक बल (बृहत्) = महान् है। हम उस (त्रातारं देवम्) = रक्षक देव प्रभु से (अश्विना) = इन प्राणापानों की ही (ईमहे) = याचना करते हैं। इन प्राणापान के द्वारा हमारा जीवन सबल व निर्दोष बनेगा। [२] हम (मित्रम्) = स्नेह की देवता व (वरुणम्) = निद्वेषता की देवता से स्वस्तये कल्याण के लिये [ ईमहे] याचना करते हैं। हमारे जीवन में प्राणसाधना के साथ स्नेह व निर्दोषता की साधना चले।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना से हमारी प्राणापान शक्ति प्रबल हो, इससे हमारे शरीर निर्दोष व सबल बनें। हम स्नेह व निर्देषता को अपनाते हुए कल्याण के भागी हों।
इंग्लिश (1)
Meaning
For the sake of a long life of peace and felicity, we approach the brilliant and benevolent lord of the winds of life and life’s energy, the protective and saviour forces of life, the Ashvins, complementary forces of the dynamics of development, Mitra, powers of love and friendship, and Varuna, powers of judgement and justice, all in nature as well as in humanity, we pray for inspiration and enact as a holy performance of yajna a vast home of peace and freedom for humanity on the earth and her environment.
मराठी (1)
भावार्थ
सदैव ईश्वराजवळ ज्ञानाची याचना केली पाहिजे. ॥२०॥
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