ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 27/ मन्त्र 13
ऋषिः - मनुर्वैवस्वतः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - विराड्बृहती
स्वरः - मध्यमः
दे॒वंदे॑वं॒ वोऽव॑से दे॒वंदे॑वम॒भिष्ट॑ये । दे॒वंदे॑वं हुवेम॒ वाज॑सातये गृ॒णन्तो॑ दे॒व्या धि॒या ॥
स्वर सहित पद पाठदे॒वम्ऽदे॑वम् । वः॒ । अव॑से । दे॒वम्ऽदे॑वम् । अ॒भिष्ट॑ये । दे॒वम्ऽदे॑वम् । हु॒वे॒म॒ । वाज॑ऽसातये । गृ॒णन्तः॑ । दे॒व्या । धि॒या ॥
स्वर रहित मन्त्र
देवंदेवं वोऽवसे देवंदेवमभिष्टये । देवंदेवं हुवेम वाजसातये गृणन्तो देव्या धिया ॥
स्वर रहित पद पाठदेवम्ऽदेवम् । वः । अवसे । देवम्ऽदेवम् । अभिष्टये । देवम्ऽदेवम् । हुवेम । वाजऽसातये । गृणन्तः । देव्या । धिया ॥ ८.२७.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 27; मन्त्र » 13
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 33; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 33; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Every one of you, divines, for the sake of protection, every one of you, holy ones, for our cherished aims and objects of well being, every one of you, divinities, for advancement and victory in life, we invoke and adore, singing and praising with holy thoughts, words and actions.
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वानांचा सत्कार करून गृहस्थांनी उत्तमोत्तम शिक्षण ग्रहण करावे. ॥१३॥
संस्कृत (1)
विषयः
प्रत्येकं विद्वान् सभाजनीय इत्यनया दर्शयति ।
पदार्थः
देव्या=शुद्धया=पवित्रया । धिया=स्तुत्या मनसा च । युक्ता वयम् । गृणन्तः=स्तुतिं कुर्वाणाः सन्तः । अवसे=रक्षणाय । वः=युष्माकं मध्ये प्रत्येकम् । देवं देवम् । हुवेम=आह्वयामः । अभिष्टये=अभिलषितवस्तुप्राप्तये । देवं देवं हुवेम । सातये=लाभाय च । देवं देवं हुवेम ॥१३ ॥
हिन्दी (3)
विषय
प्रत्येक विद्वान् आदरणीय है, इससे यह दिखलाते हैं ।
पदार्थ
हे विद्वानो ! (देव्या) शुद्ध, पवित्र और देव समान (धिया) मन, क्रिया और स्तुति से युक्त हो (गृणन्तः) स्तुति करते हुए हम (वः) आप लोगों में से प्रत्येक (देवं देवम्) विद्वान् को (अवसे) साहाय्य के लिये (हुवेम) निमन्त्रित करते हैं, (अभिष्टये) निज-२ अभिलषित वस्तुओं की प्राप्ति के लिये (देवं देवम्) प्रत्येक विद्वान् का सत्कार करते हैं (सातये) एवं अन्यान्य विविध लाभों के लिये (देवं देवम्) प्रत्येक विद्वान् को पूजते हैं, अतः आप हमारे ऊपर कृपा करें ॥१३ ॥
भावार्थ
विद्वानों का सत्कार करके उत्तमोत्तम शिक्षा गृहस्थ ग्रहण करें ॥१३ ॥
विषय
विद्वानों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हम लोग ( देव्या धिया ) उत्तम ज्ञानमय प्रकाश के देने वाली, सुखदायी ( धिया ) वाणी से ( वः गृणन्तः ) आप लोगों के प्रति उपदेश करते हुए ( अवसे ) अपनी रक्षा के लिये ( देवं-देवम् ) सर्व सुखदाता, सर्वप्रकाशक प्रभु को और ( अभिष्टये ) अभीष्ट सुखादि को प्राप्त करने के लिये भी ( देवं-देवं ) सर्व प्रकाशक, सर्वप्रद, अति कमनीय प्रभु की और ( वाज-सातये ) ऐश्वर्य, बल, अन्न और ज्ञान प्राप्त करने के लिये ( देवं-देवं ) सर्व सुखादि के दाता, ज्ञानप्रकाशक प्रभु की ( हुवेम ) प्रार्थना करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मनुर्वैवस्वत ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:—१, ७,९ निचृद् बृहती। ३ शकुमती बृहती। ५, ११, १३ विराड् बृहती। १५ आर्ची बृहती॥ १८, १९, २१ बृहती। २, ८, १४, २० पंक्ति:। ४, ६, १६, २२ निचृत् पंक्तिः। १० पादनिचृत् पंक्तिः। १२ आर्ची स्वराट् पंक्ति:। १७ विराट् पंक्तिः॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
अवसे अभिष्टये वाजसातये
पदार्थ
[१] हम (अवसे) = रक्षण के लिये (वः देवं देवम्) = तुम सब के प्रकाशित करनेवाले उस देव को (हुवेम) = पुकारते हैं। उस (देवं देवम्) = देवों के भी देव महादेव प्रभु को (अभिष्टये) = काम आदि वासनाओं पर आक्रमण के लिये पुकारते हैं। कामदेव पर महादेव ही तो आक्रमण करेंगे। [२] हम (वाजसातये) = शक्ति की प्राप्ति के लिये (देव्या धिया) = प्रकाशमयी बुद्धि से (गृणन्तः) = स्तवन करते हुए, स्तुति-वाणियों का उच्चारण करते हुए (देवं देवम्) = उस देवाधिदेव को पुकारते हैं।
भावार्थ
भावार्थ-उस देवाधिदेव प्रभु का आराधन रक्षण के लिये होता है, हमारी वासनाओं पर यह आक्रमण का-सा बनता है और शक्ति लाभ के लिये होता है।
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