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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 47/ मन्त्र 10
    ऋषिः - त्रित आप्त्यः देवता - आदित्याः छन्दः - स्वराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यद्दे॑वा॒: शर्म॑ शर॒णं यद्भ॒द्रं यद॑नातु॒रम् । त्रि॒धातु॒ यद्व॑रू॒थ्यं१॒॑ तद॒स्मासु॒ वि य॑न्तनाने॒हसो॑ व ऊ॒तय॑: सु॒तयो॑ व ऊ॒तय॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । दे॒वाः॒ । शर्म॑ । श॒र॒णम् । यत् । भ॒द्रम् । यत् । अ॒ना॒तु॒रम् । त्रि॒ऽधातु॑ । यत् । व॒रू॒थ्य॑म् । तत् । अ॒स्मासु॑ । वि । य॒न्त॒न॒ । अ॒ने॒हसः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ । सु॒ऽऊ॒तयः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्देवा: शर्म शरणं यद्भद्रं यदनातुरम् । त्रिधातु यद्वरूथ्यं१ तदस्मासु वि यन्तनानेहसो व ऊतय: सुतयो व ऊतय: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । देवाः । शर्म । शरणम् । यत् । भद्रम् । यत् । अनातुरम् । त्रिऽधातु । यत् । वरूथ्यम् । तत् । अस्मासु । वि । यन्तन । अनेहसः । वः । ऊतयः । सुऽऊतयः । वः । ऊतयः ॥ ८.४७.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 47; मन्त्र » 10
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Adityas, brilliant leaders of the mother nation, the home that is a restful place to live in, which is beneficial, which is free from want and ailments, and three-metalled furniture and appliances, all that is needed in a good and comfortable home, pray provide, secure and insure among us, the people of the land. Sinless are your protections, noble your safeguards, holily protected.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राज्यातील कर्मचारी, सभासद, प्रतिनिधी व अन्यान्य पुरुषांनी सर्व प्रकारे आपल्या देशाला अत्यंत समृद्ध बनविण्याचा प्रयत्न करावा. ॥१०॥

    टिप्पणी

    यद्देवा: शर्म शरणं यद्भद्रं यदनातुरम् । त्रिधातु यद्वरूथ्यं१ तदस्मासु वि यन्तनानहसो व ऊतय: सुऊतयो व ऊतय: ॥१०॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे देवाः=विजिगीषवो मनुष्याः ! यत् शर्म=यत् शरणम् । यद् भद्रं=कल्याणम् । यद् अनातुरम्=रोगरहितं वस्तु । यत् त्रिधातु । यद् वरूथ्यम्=गृहोचितम् । तत्सर्वमस्मासु । वि यन्तन=स्थापयत ॥१० ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    (देवाः) हे दुष्टों के जीतनेवाले हे विजयी सभासदो ! (यत्+शर्म) जो सुखसम्पत्ति (शरणम्) जो रक्षण (यद्+भद्रम्) जो भद्र (यद्+अनातुरम्) जो रोगरहित वस्तु (त्रिधातु) तीन प्रकार के धातु (यद्+वरूथ्यम्) गृहोचित उपकरण जगत् में हैं, (तत्) उस सबको (अस्मासु) हम प्रजाजनों में (वि+यन्तन) स्थापित कीजिये ॥१० ॥

    भावार्थ

    राज्यसम्बन्धी कर्मचारियों, सभासदों, प्रतिनिधियों तथा अन्यान्य पुरुषों को उचित है कि सब प्रकार अपने देश को परम समृद्ध बनाने की चेष्टा करें ॥१० ॥

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    विषय

    देह से गृह और राष्ट्र की तुलना।

    भावार्थ

    हे (देवाः) विद्वान् एव विजय कामना वाले तेजस्वी पुरुषो ! ( यत् शर्म ) जो गृह, ( शरणं ) शत्रुओं और दुःखों का नाशक, ( यत् भद्रं ) जो सुख कल्याणकारक, ( यत् अनातुरम् ) जो रोगों-कष्टों से रहित, बाधाओं-पीड़ाओं से शून्य, ( यत् त्रिधातु ) जो वात पित्त कफ के बने देह के समान स्वर्ण, रजत, ताम्र आदि तीनों प्रकार की धातुओं से दृढ़, ( यत् वरूथ्यम् ) जो सुखप्रद, कष्टवारक और गृह होने योग्य है ( तत् अस्मासु वि यन्तन ) वह हमें प्रदान करो।

    टिप्पणी

    ( अनेहस:० इत्यादि पूर्ववत् )।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    त्रित आप्त्य ऋषिः॥ १-१३ आदित्यः। १४-१८ आदित्या उषाश्च देवताः॥ छन्द:—१ जगती। ४, ६—८, १२ निचृज्जगती। २, ३, ५, ९, १३, १६, १८ भुरिक् त्रिष्टुप्। १०, ११, १७ स्वराट् त्रिष्टुप्। १४ त्रिष्टुप्। अष्टादशर्चं सूक्तम्।

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    विषय

    शरणं [घर]

    पदार्थ

    [१] हे (देवा:) = दिव्यभावो ! (यत्) = जो (शरणं) = गृह (शर्म) = सुख को देनेवाला है, (यद्) = जो (भद्रं) = कल्याण कर है, (यद्) = जो (अनातुरम्) = सब रोगों से रहित है, (त्रिधातु) = ' शरीर, मन व बुद्धि' तीनों का सुन्दरता से धारण करनेवाला है और (यद्) = जो (वरूथ्यम्) = उत्तम धनवाला है व कष्ट का निवारण करनेवाला है, (तद्) = उस घर को (अस्मासु वियन्तन) = हमारे लिए प्राप्त कराइये। [२] हे देवो! (वः) = आपके (ऊतयः) = रक्षण (अनेहसः) = निष्पाप हैं - हमें पापशून्य बनानेवाले हैं। (वः ऊतयः) = आपके रक्षण (सु ऊतयः) = उत्तम रक्षण हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - दिव्यगुणों के धारण से घर सुख व कल्याण को करनेवाला तथा नीरोग व उत्तम शरीर, मन व बुद्धिवाला तथा कष्टों से रहित बनता है।

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