ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 47/ मन्त्र 2
ऋषिः - त्रित आप्त्यः
देवता - आदित्याः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
वि॒दा दे॑वा अ॒घाना॒मादि॑त्यासो अ॒पाकृ॑तिम् । प॒क्षा वयो॒ यथो॒परि॒ व्य१॒॑स्मे शर्म॑ यच्छताने॒हसो॑ व ऊ॒तय॑: सु॒तयो॑ व ऊ॒तय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठवि॒द । दे॒वाः॒ । अ॒घाना॑म् । आदि॑त्यासः । अ॒प॒ऽआकृ॑तिम् । प॒क्षा । वयः॑ । यथा॑ । उ॒परि॑ । वि । अ॒स्मे इति॑ । शर्म॑ । य॒च्छ॒त॒ । अ॒ने॒हसः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ । सु॒ऽऊ॒तयः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विदा देवा अघानामादित्यासो अपाकृतिम् । पक्षा वयो यथोपरि व्य१स्मे शर्म यच्छतानेहसो व ऊतय: सुतयो व ऊतय: ॥
स्वर रहित पद पाठविद । देवाः । अघानाम् । आदित्यासः । अपऽआकृतिम् । पक्षा । वयः । यथा । उपरि । वि । अस्मे इति । शर्म । यच्छत । अनेहसः । वः । ऊतयः । सुऽऊतयः । वः । ऊतयः ॥ ८.४७.२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 47; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
O divine powers of light, love and justice, you know how to remove sin and cleanse us of evil. As birds shade their young ones with wings, so give us shelter and protection all over. Sinless are your protections, noble and holy are your protections.
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वान, सभासद, श्रेष्ठ पुरुषांनी उपद्रव शांत करण्याचा उपाय जाणावा व कार्यान्वित करावा. ॥२॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे देवाः ! हे आदित्याः=सभाध्यक्षाः । यूयम् । अघानाम्=अघानां पापानां दुर्भिक्षाद्युपद्रवाणां ज्वरादिरोगाणाञ्च । अपाकृतिम्=अपसरणम् । विद=जानीथ । अतो यूयम् । यथा । वयः=पक्षिणः । उपरि=स्वशिशुकानामुपरि । पक्षा=पक्षौ । प्रसारयन्ति । तथैव अस्मे=अस्माकं मनुष्याणामुपरि । शर्म=कल्याणम् । वि यच्छत=विस्तारयत । अनेहस इत्यादि गतम् ॥२ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
(देवाः) हे दिव्यगुणयुक्त मनुष्यों ! (आदित्याः) हे सभाध्यक्षजनो, हे माननीय श्रेष्ठ पुरुषो ! आप लोग (अघानाम्) निखिल पाप दुर्भिक्ष रोगादि क्लेशों को (अपाकृतिम्+विद) दूर करना जानते हैं, इसलिये (यथा) जैसे (वयः) पक्षिगण (उपरि) अपने बच्चों के ऊपर (पक्षा) रक्षार्थ दोनों पक्षों को फैला देते हैं, तद्वत् (अस्मे) हम लोगों के ऊपर आप (शर्म) मङ्गलमय कल्याणकारी रक्षण (वि+यच्छत) विस्तीर्ण करें (अनेहसः) इत्यादि पूर्ववत् ॥२ ॥
भावार्थ
विद्वानों, सभासदों, श्रेष्ठ पुरुषों को उचित है कि उपद्रवों की शान्ति का उपाय जानें और कार्य्य में लावें ॥२ ॥
विषय
चूज़ों पर पक्षीवत् उनकी प्रजा पर पक्षच्छाया।
भावार्थ
हे ( देवाः आदित्यासः ) सूर्य किरणवत् प्रकाश, ज्ञान के देने वाले आदित्य ब्रह्मचारियो! तेजस्वी एवं पूज्यपुरुषो ! आप लोग ( अघानाम् अपाकृतिम् ) पापों को दूर करना ( विद ) जानते हो। ( यथा वयः पक्षा उपरि शर्म यच्छन्ति ) जिस प्रकार पक्षी बच्चों के ऊपर दोनों पाँखों के समान रक्षार्थं तान लेते हैं उसी प्रकार ( अस्मे उपरि ) हमारे ऊपर ( शर्म वि यच्छत ) सुख शरणादि विविध प्रकार से प्रदान करो। ( अनेहसः वः ऊतयः, वः ऊतयः सु-ऊतयः ) आप लोगों की रक्षा पापरहित और आप लोगों की रक्षा उत्तम रक्षाएं होती हैं।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्रित आप्त्य ऋषिः॥ १-१३ आदित्यः। १४-१८ आदित्या उषाश्च देवताः॥ छन्द:—१ जगती। ४, ६—८, १२ निचृज्जगती। २, ३, ५, ९, १३, १६, १८ भुरिक् त्रिष्टुप्। १०, ११, १७ स्वराट् त्रिष्टुप्। १४ त्रिष्टुप्। अष्टादशर्चं सूक्तम्।
विषय
पक्षा वयो यथोपरि
पदार्थ
[१] हे (आदित्यासः) = सब अच्छाइयों का आदान करनेवाले (देवा:) = देवो ! दिव्यभावो ! आप (अघानां) = पापों के (अपाकृतिम्) = दूरीकरण को (विद) = जानते हो, अर्थात् आप सब अशुभ वृत्तियों को हमारे से दूर करते हो। [२] (यथा) = जैसे (वयः) = पक्षी (पक्षा) = पंखों को अपने बच्चों के (उपरि) = ऊपर उनके रक्षण के लिए करते हैं, इसी प्रकार आप (अस्मे) = हमारे लिए (शर्म) = शरण को (वियच्छत) = विशेष रूप से दो। (वः) = आपके (ऊतयः) = रक्षण (अनेहसः) = निष्पाप हैं। (वः) = आपके (ऊतयः) = रक्षण (सु ऊतयः) = उत्तम रक्षण है।
भावार्थ
भावार्थ-मित्र वरुण आदि आदित्य देवों का रक्षण हमारे जीवनों को निष्पाप बनाता है। हमारा उत्तम रक्षण करते हैं।
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