ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 66/ मन्त्र 17
य उ॒ग्रेभ्य॑श्चि॒दोजी॑या॒ञ्छूरे॑भ्यश्चि॒च्छूर॑तरः । भू॒रि॒दाभ्य॑श्चि॒न्मंही॑यान् ॥
स्वर सहित पद पाठयः । उ॒ग्रेभ्यः॑ । चि॒त् । ओजी॑यान् । शूरे॑भ्यः । चि॒त् । शूर॑ऽतरः । भू॒रि॒ऽदाभ्यः॑ । चि॒त् । मंही॑यान् ॥
स्वर रहित मन्त्र
य उग्रेभ्यश्चिदोजीयाञ्छूरेभ्यश्चिच्छूरतरः । भूरिदाभ्यश्चिन्मंहीयान् ॥
स्वर रहित पद पाठयः । उग्रेभ्यः । चित् । ओजीयान् । शूरेभ्यः । चित् । शूरऽतरः । भूरिऽदाभ्यः । चित् । मंहीयान् ॥ ९.६६.१७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 66; मन्त्र » 17
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यः) यः परमेश्वरः (शूरेभ्यः) वीरेभ्यः (शूरतरः) ततोऽप्यधिकवीरोऽस्ति (चित्) अथ च (भूरिदाभ्यः) दानवीरेषु (मंहीयान्) दानवीरतरोऽस्ति (चित्) अथ च (उग्रेभ्यः) महाबलेषु (ओजीयान्) बलिष्ठः एवम्भूतं त्वां वयमुपास्महे ॥१७॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यः) जो परमात्मा (शूरेभ्यः) शूरवीरों से (शूरतरः) अत्यन्त शूरवीर है (चित्) और (भूरिदाभ्यः) अत्यन्त दानशीलों से (मंहीयान्) अत्यन्त दानशील है (चित्) और (उग्रेभ्यः) जो अत्यन्त बलवाले हैं, उनसे (ओजीयान्) अत्यन्त बलवाला है, ऐसे परमात्मा की हम उपासना करते हैं ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में यह वर्णन किया है कि परमात्मा अजर अमर तथा अविनाशी है। जैसा कि “तेजोऽसि तेजो मयि धेहि। वीर्यमसि वीर्यं मयि धेहि। बलमसि बलं मयि धेहि” इत्यादि मन्त्रों में परमात्मा को बलस्वरूप कथन किया गया है। इसी प्रकार इस मन्त्र में भी परमात्मा को बलस्वरूपवाला कथन किया गया है ॥१७॥
विषय
ओजीयान्-क्षूरतर-मंहीयान्
पदार्थ
[१] (यः) = जो सोम (उग्रेभ्यः) = शत्रुओं के विध्वंसक बलवालों से (चित्) = भी (ओजीयान्) = अधिक ओजस्वी है और (चित्) = निश्चय से (शूरेभ्यः शूरतर:) = सर्वाधिक शूर है, हिंसक है। सुरक्षित हुआ- हुआ सोम ही शरीर के अन्दर आ जानेवाले रोगकृमियों का संहारक है तथा मन को ओजस्वी बनाता है । [२] शरीर व मन दोनों का स्वस्थ बनाकर यह सोम (चित्) = निश्चय से (भूरि-दाभ्यः) = खूब देनेवालों से भी (महीयान्) = अधिक देनेवाला है। यह सोम दातृतम है। शरीर की नीरोगता को तथा मन की निर्मलता को देकर यह बुद्धि की तीव्रता को देनेवाला है ।
भावार्थ
भावार्थ - यह सोम 'ओजस्वी- शूर व सब उत्तम वसुओं का दाता' है ।
विषय
अति पराक्रमी, अति शूर अतिदानी प्रभु।
भावार्थ
(यः) जो तू (उग्रेभ्यः) बलवान् शत्रुओं को भय देने वालों से भी (ओजीयान् चित्) कहीं अधिक पराक्रमी और (शूरेभ्यः चित् शूरतरः) शूरवीरों से भी कहीं अधिक शूरवीर है, वह तू (भूरि दाभ्यः चित्) बहुत दान करने वालों से भी कहीं अधिक (महीयान्) बड़ा दानी है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शतं वैखानसा ऋषयः॥ १–१८, २२–३० पवमानः सोमः। १९—२१ अग्निर्देवता ॥ छन्दः- १ पादनिचृद् गायत्री। २, ३, ५—८, १०, ११, १३, १५—१७, १९, २०, २३, २४, २५, २६, ३० गायत्री। ४, १४, २२, २७ विराड् गायत्री। ९, १२,२१,२८, २९ निचृद् गायत्री। १८ पाद-निचृदनुष्टुप् ॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
You are mightier than the mighty, braver than the brave, more generous than the generous, whoever they be.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा अजर, अमर व अविनाशी आहे. जसे ‘‘तेजोऽसि तेजोमयि धेहि । वीर्यमसि वीर्यं मयि धेहि । बलमसि बलंमयि धेहि’’ इत्यादी मंत्रात परमात्म्याला बलस्वरूप म्हटलेले आहे. ॥१७॥
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