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यजुर्वेद अध्याय - 15

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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 2
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिक् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    51

    सह॑सा जा॒तान् प्रणु॑दा नः स॒पत्ना॒न् प्रत्यजा॑तान् जातवेदो नुदस्व। अधि॑ नो ब्रूहि सुमन॒स्यमा॑नो व॒यꣳ स्या॑म॒ प्रणु॑दा नः स॒पत्ना॑न्॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सह॑सा। जा॒तान्। प्र। नु॒द॒। नः॒। स॒पत्ना॒निति॑ स॒ऽपत्ना॑न्। प्रति॑। अजा॑तान्। जा॒त॒वे॒द॒ इति॑ जातऽवेदः। नु॒द॒स्व॒। अधि॑। नः॒। ब्रू॒हि॒। सु॒म॒न॒स्यमा॑न॒ इति॑ सुऽमन॒स्यमा॑नः। व॒यम्। स्या॒म॒। प्र। नु॒द॒। नः॒। स॒पत्ना॒निति॑ स॒ऽपत्ना॑न् ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सहसा जातान्प्रणुदा नः सपत्नान्प्रत्यजाताञ्जातवेदो नुदस्व । अधि नो ब्रूहि सुमनस्यमानो वयँ स्याम प्र णुदा नः सपत्नान्॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सहसा। जातान्। प्र। नुद। नः। सपत्नानिति सऽपत्नान्। प्रति। अजातान्। जातवेद इति जातऽवेदः। नुदस्व। अधि। नः। ब्रूहि। सुमनस्यमान इति सुऽमनस्यमानः। वयम्। स्याम। प्र। नुद। नः। सपत्नानिति सऽपत्नान्॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे जातवेदस्त्वं नः सहसा जातान् सपत्नान् प्रणुद। तान् प्रत्यजातान् नुदस्व। सुमनस्यमानस्त्वं नोऽधि बू्रहि। वयं तव सहायाः स्याम। यान्नः सपत्नान् त्वं प्रणुद तान् वयमपि प्रणुदेम॥२॥

    पदार्थः

    (सहसा) बलेन सह (जातान्) प्रादुर्भूतान् विरोधिनः (प्र) (नुद) विजयस्व। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः (नः) अस्माकम् (सपत्नान्) सपत्नीव वर्त्तमानान् शत्रून् (प्रति) (अजातान्) युद्धेऽप्रकटान् शत्रुसेविनो मित्रान् (जातवेदः) जातप्रज्ञान (नुदस्व) पृथक् कुरु (अधि) (नः) (ब्रूहि) विजयविधिमुपदिश (सुमनस्यमानः) सुष्ठु विचारयन् (वयम्) (स्याम) भवेम (प्र) (नुद) हिन्धि। अत्रापि पूर्ववद्दीर्घः (नः) अस्माकम् (सपत्नान्) विरोधे वर्त्तमानान् सम्बन्धिनः॥२॥

    भावार्थः

    ये राजभृत्याः शत्रुनिवारणे यथाशक्ति न प्रयतन्ते ते सम्यग्दण्ड्याः। ये स्वसहायाः स्युस्तान् राजा सत्कुर्यात्॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर भी वही पूवोक्त विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (जातवेदः) प्रकृष्ट ज्ञान को प्राप्त हुए राजन्! आप (नः) हमारे (सहसा) बल के सहित (जातान्) प्रसिद्ध हुए (सपत्नान्) शत्रुओं को (प्रणुद) जीतिये और उन (प्रति) (अजातान्) युद्ध में छिपे हुए शत्रुओं के सेवक मित्रभाव से प्रसिद्धों को (नुदस्व) पृथक् कीजिये तथा (सुमनस्यमानः) अच्छे प्रकार विचारते हुए आप (नः) हमारे लिये (अधिब्रूहि) अधिकता से विजय के विधान का उपदेश कीजिये (वयम्) हम लोग आप के सहायक (स्याम) होवें, जिन (नः) हमारे (सपत्नान्) विरोध में प्रवृत्त सम्बन्धियों को आप (प्रणुद) मारें, उन को हम लोग भी मारें॥२॥

    भावार्थ

    राजा को चाहिये कि जो राज्य के सेवक शत्रुओं के निवारण करने में यथाशक्ति प्रयत्न न करें उन को अच्छे प्रकार दण्ड देवे और जो अपने सहायक हों, उन का सत्कार करें॥२॥

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    विषय

    सेनापति और राजा के कर्त्तव्य । शत्रुओं का पराजय, प्रजा का शिक्षण ।

    भावार्थ

    हे ( जातवेदः ) बल और ऐश्वर्य और प्रजा से सम्पन्न राजन् सेनापते ! तू ( जातान् सपत्नान् ) उत्पन्न हुए विरोधी शत्रुओं को (सहसा ) पराजय करने में समर्थ बल से ( प्रणुद ) परे मार भगा । और ( अजातान् प्रतिनुदस्व ) अप्रकट शत्रुओं को भी परास्त कर । ( सुमनस्यमानः ) शुभ चित्त वाला, उत्तम मन वाला होकर ( नः अधि ब्रहि ) हमें उपदेश कर । जिससे ( वयन् ) हम लोग तेरे सहायक ( स्याम ) हों । तू ( नः सपत्नान् प्र ) हमारे शत्रुओं को दूर भगा ।

    टिप्पणी

    अथ पञ्चमी चितिः ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अग्निर्ऋषिः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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    विषय

    वयं स्याम

    पदार्थ

    १. ये कामादि हमारी इच्छा से तो हममें उत्पन्न नहीं होते। ये तो हमारे न चाहते हुए भी हममें आ घुसते हैं। इसी से इन्हें 'विश्वानि' [विशन्ति] कहा गया है, अत: (सहसा) = बलपूर्वक (जातान्) = हममें उत्पन्न हो गये इन (नः) = हमारे (सपत्नान्) = ' काम, क्रोध व लोभ' आदि शत्रुओं को हमसे (प्रणुद) = प्रकर्षेण दूर धकेल दीजिए। २. हे (जातवेदः) = उत्पन्न हो रहे हमारे इन शत्रुओं को जाननेवाले प्रभो! अजातान् पूर्णरूप से प्रादुर्भूत न हुए-हुए, बीजरूप से अवस्थित इन कामादि को (प्रतिनुदस्व) = एक-एक करके दूर प्रेरित कर दीजिए । ३. (सुमनस्यमानः) = हमारे लिए सदा शुभ चाहनेवाले प्रभो! (नः) = हमें (अधिब्रूहि) = अधिष्ठातृरूपेण हृदयस्थ आप उपदेश दीजिए। ४. (वयं स्याम्) = आपके उपदेशानुसार चलते हुए हम सदा बने रहें, कामादि शत्रुओं से आक्रान्त होकर समाप्त न हो जाएँ, अतः ५. आप (नः) = हमारे (सपत्नान्) = शत्रुओं को- चाहे वे 'जात' [fully developed] हैं, चाहे 'अजात' (प्रणुद) = हमसे दूर कीजिए । ६. इन शत्रुओं को दूर करके निरन्तर आगे बढ़नेवाले हम भी परम स्थान में स्थित होकर आपकी भाँति 'परमेष्ठी' नामवाले होंगे?

    भावार्थ

    भावार्थ- कामादि अत्यन्त प्रबल हैं। हमारे न चाहते हुए भी ये हममें आ घुसते हैं। हम सबका भला चाहनेवाले प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि आप हमारे इन शत्रुओं को दूर प्रेरित करें, जिससे हम इस शरीर में सदा बने रहें। इन शत्रुओं से धकेले जाकर जीवन से दूर न कर दिये जाएँ, मार न दिये जाएँ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    आपल्या कर्मचाऱ्यांनी शत्रूंच्या निवारणाचा प्रयत्न न केल्यास राजाने त्यांना चांगली शिक्षा करावी व आपल्याला मदत करणाऱ्यांचा सत्कार करावा.

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    विषय

    पुढील मंत्रात देखील पूर्ववर्णित विषयक प्रतिपादित आहे-

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (जावेवद:) प्रभूत ज्ञानवान राजा, आपण (न:) आमच्या (आपल्या व आमच्या राज्याच्या विरोधात उभे ठाकलेल्या (सहसा) शक्तिशाली आणि (जातान्) प्रसिद्ध (सपत्नान्) शत्रुसैन्यावर (प्रणुद) विजय मिळवा. तसेच त्यांच्या (प्रति) मधे (अजातान्) युद्धक्षेत्रात तुमच्याविरूद्ध गुप्त कारवाया करणार्‍या, पण वरून मित्रत्वभावाने वागणार्‍या अशा शत्रुसहायकांना (नुदस्व) शोधून काढा आणि त्यांना बंधनात ठेवा. आपण (सुमनस्यमाना:) चांगल्याप्रकारे विचार करून (न:) आम्हा प्रजाजनांना योग्य तो उपदेश (अधिब्रूहि) अधिकाकाधिक आणि आवश्यक त्यावेळी देत जा की ज्यायोगे (वयम्) आम्ही प्रजाजन देखील युद्धामधे आपले सहाय्यक (स्याम) होऊ शकू. तसेच आपण (न:) आमच्या (सपत्नान्) विरोधी असलेल्या संबंधी लोकांना (प्रणुद) वश करा. आम्ही देखील अशा (संबंधी लोक, पण शत्रूला सहाय्य करणार्‍या लोकांना) दंडित करू (अथवा शत्रुपक्षाला मदत करणार्‍या सर्व हितशत्रूंना ठार करू) ॥2॥

    भावार्थ

    missing

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned King, drive away with might our known foes. Keep off those who oppose us secretly. Benevolent in thought and spirit, teach us the art of victory. May we be thy supporters. Drive away our foes.

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    Meaning

    Agni, Lord omniscient of the life of existence, throw off the enemies of humanity come up with force. Counter the negative forces lying and waiting in ambush, not coming up openly. Kind at heart and generous of thought for us, speak to us from above so that we may be able every way to repulse the open as well as the covert enemies of life and humanity.

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    Translation

    O omniscient Lord, drive away our rivals, who are born, with your tremendous force; and prevent those, who are yet to be born. Grace us with your words full of friendship. May you drive our rivals away, so that we remain unchallenged. (1)

    Notes

    Sahasā, बलेन, with vigour. Also, all of a sudden. Vayain syama,वयं अधिका: स्याम , may we have an upper hand. वयं सुमनस्यमाना: स्याम , may we be friendly. Also, may we remain alive,

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই পূর্বোক্ত বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (জাতবেদাঃ) প্রকৃষ্ট জ্ঞান প্রাপ্ত রাজন্ ! আপনি (নঃ) আমাদিগের (সহসা) বল সহিত (জাতান্) প্রসিদ্ধ (সপত্নান্) শত্রুদিগকে (প্রণুদ) জিতুন এবং সেই সব (প্রতি) (অজাতান্) যুদ্ধে লুক্কায়িত শত্রুদিগের সেবক মিত্রভাবে প্রসিদ্ধ ব্যক্তিদিগকে (নুদস্ব) পৃথক করুন তথা (সুমনস্যমানঃ) সম্যক্ প্রকার বিচার করিয়া আপনি (নঃ) আমাদের জন্য (অধিব্রূহি) অধিকতাপূর্বক বিজয়ের বিধানের উপদেশ করুন, (বয়ম্) আমরা আপনার সহায়ক (স্যাম) হইব, যে সব (নঃ) আমাদের (সপত্নান্) বিরোধিতায় প্রবৃত্ত লোকদিগকে আপনি (প্রণুদ) বধ করেন, তাহাদিগকে আমরাও বধ করিব ॥ ২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- রাজার উচিত যে, যে রাজ্যের সেবকগণ শত্রুদিগের নিবারণ করিতে যথাশক্তি প্রচেষ্টা না করে, তাহাদেরকে উচিত প্রকার দন্ডদান করিবে এবং যাহারা নিজেদের সহায়ক তাহাদেরকে সৎকার করিবে ॥ ২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    সহ॑সা জা॒তান্ প্র ণু॑দা নঃ স॒পত্না॒ন্ প্রত্যজা॑তান্ জাতবেদো নুদস্ব ।
    অধি॑ নো ব্রূহি সুমন॒স্যমা॑নো ব॒য়ꣳ স্যা॑ম॒ প্র ণু॑দা নঃ স॒পত্না॑ন্ ॥ ২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    সহসা জাতানিত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ভুরিক্ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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