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यजुर्वेद अध्याय - 15

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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 40
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
    22

    येना॑ स॒मत्सु॑ सा॒सहोऽव॑ स्थि॒रा त॑नुहि॒ भूरि॒ शर्ध॑ताम्। व॒नेमा॑ तेऽअ॒भिष्टि॑भिः॥४०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑। स॒मत्स्विति॑ स॒मत्ऽसु॑। सा॒सहः॑। स॒सह॒ इति॑ स॒सहः॑। अव॑। स्थि॒रा। त॒नु॒हि॒। भूरि॑। शर्ध॑ताम्। व॒नेम॑। ते॒। अ॒भिष्टि॑भि॒रित्य॒भिष्टि॑ऽभिः ॥४० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येना समत्सु सासहो व स्थिरा तनुहि भूरि शर्धताम् । वनेमा तेऽअभिष्टिभिः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    येन। समत्स्विति समत्ऽसु। सासहः। ससह इति ससहः। अव। स्थिरा। तनुहि। भूरि। शर्धताम्। वनेम। ते। अभिष्टिभिरित्यभिष्टिऽभिः॥४०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 40
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृश इत्याह॥

    अन्वयः

    हे सुभग! येन त्वं समत्सु सासहः स्यात् स त्वं भूरि शर्धतामस्माकं स्थिरावतनुहि। तेऽभिष्टिभिः सह वर्त्तमाना वयं तानि वनेम॥४०॥

    पदार्थः

    (येन) अत्र संहितायाम् [अ॰६.३.११४] इति दीर्घः (समत्सु) संग्रामेषु (सासहः) भृशं सोढा (अव) (स्थिर) स्थिराणि सैन्यानि (तनुहि) विस्तृणु (भूरि) बहु (शर्द्धताम्) बलं कुर्वताम्। बलवाचिशर्धशब्दात् करोत्यर्थे क्विप् ततः शतृ (वनेम) संभजेम। अत्र संहितायाम् [अ॰६.३.११४] इति दीर्घः (ते) तव (अभिष्टिभिः) इष्टाभिरिच्छाभिः॥४०॥

    भावार्थः

    अत्रापि (सुभग) (नः) इति पदद्वयं पूर्वतोऽनुवर्त्तते। विद्वद्भिर्बहुबलयुक्तानां वीराणां नित्यमुत्साहो वर्धनीयः। येनोत्साहिताः सन्तो राजप्रजाहितानि कर्माणि कुर्य्युः॥४०॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (सुभग) सुन्दर लक्ष्मीयुक्त पुरुष! आप (येन) जिस के प्रताप से हमारे (समत्सु) युद्धों में (सासहः) शीघ्र सहना हो उस को तथा (भूरि) बहुत प्रकार (शर्धताम्) बल करते हुए हमारे (स्थिरा) स्थिर सेना के साधनों को (अवतनुहि) अच्छे प्रकार बढ़ाइये (ते) आप की (अभिष्टिभिः) इच्छाओं के अनुसार वर्त्तमान हम लोग उस सेना के साधनों का (वनेम) सेवन करें॥४०॥

    भावार्थ

    यहां भी (सुभग, नः) इन दोनों पदों की अनुवृत्ति आती है। विद्वानों को उचित है कि बहुत बलयुक्त वीर पुरुषों का उत्साह नित्य बढ़ावें, जिससे ये लोग उत्साही हुए राजा और प्रजा के हितकारी काम किया करें॥४०॥

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    विषय

    संग्राम में विजयी होने का उपदेश ।

    भावार्थ

    ( येन ) क्योंकि ( समत्सु ) संग्रमों में तू ( सासहः ) शत्रुओं की पराजय करने में समर्थ रहे। अतः तू ( शर्धताम् ) बल पराक्रमशील पुरुषों के ( स्थिरा ) स्थिर सेन्यों को ( अवतनुहि ) अपने अधीन विस्तृत रूप से रख। और हम (ते) तेरे ( अभिष्टिभिः ) अभीष्ट कामनाओं और अभिलाषाओं के सहित ( ते ) तेरे अधीन ( वनेम ) ऐश्वर्य का भोग करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अग्निर्देवता । निचृदुष्णिक् । ऋषभः ॥

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    विषय

    विजय

    पदार्थ

    १. हे प्रभो! हमें गत मन्त्र में वर्णित वह 'भद्र मन' दीजिए (येन) = जिससे (समत्सु) = संग्रामों में (सासहः) = शत्रुओं का पराभव कर सकें। २. आप कृपा करके (भूरि शर्धताम्) = नाना प्रकार से प्रभूत बल प्राप्त कराते हुए [अभिबलायमानानाम् - उ०] इन काम, क्रोध व लोभादि के स्थिरा - स्थिर धनुषों को (अवतनुहि) = ज्या [डोरी] -रहित कर दीजिए, अर्थात् इनकी शक्ति को क्षीण कर दीजिए। इस पञ्चबाण (काम) के बाण मुझपर चल ही न सकें, इस प्रकार इसके धनुष को ढीला कर दीजिए। ३. हे प्रभो! (ते अभिष्टिभिः) = तेरे द्वारा इन कामादि पर किये गये आक्रमणों से (वनेम) = हम विजयी बनें [वन्= win] अथवा (अभिष्टिभिः) = अभीष्ट यागों के द्वारा ते वनेम तेरा सम्भजन करें। यज्ञों के द्वारा हम आपका उपासन करें और 'त्वया स्विद् युजा वयम्' आपको अपना साथी पाकर हम इन क्रोधादि का पराजय करने में समर्थ हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हे प्रभो! आपकी कृपा से अत्यन्त प्रबल भी इन काम, क्रोध आदि को हम जीतनेवाले बनें। इन अभिबलायमान कामादि के अस्त्र शिथिल हो जाएँ और हम इन्हें पराजित कर सकें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    येथे (सुभग नः) या दोन पदांची अनुवृत्ती होते. विद्वानांनी अत्यंत बलवान वीर पुरुषांचा उत्साह सदैव वाढवावा. ज्यामुळे हे लोक उत्साही बनून राजा व प्रजेच्या हितासाठी काम करतील.

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    विषय

    पुनश्च, विद्वान कसा असावा, याविषयी :

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (ज्ञानी अनुभवी सेनापती-प्रति सैनिकांचे कथन) हे (सुभग) शुभ संपत्तिशाली (सेनापती) (येन) ज्यायोगे आपल्या पराक्रमाने प्रेरित होऊन आम्ही (सैनिकगण) (समत्सु) युद्धामध्ये (सासह:) सर्व कष्ट व आक्रमण सहन करू शकू, अशाप्रकारची (भूरि) अनेक प्रकारची (शर्धताम्) शक्ती आम्हास देत (स्थिरा) दृढ व वीर सैन्यासाठी अधिकाधिक उत्कृष्ट युद्ध साधन-सामग्री (अवतनुहि) वाढवा. (ते) आपल्या (अभिष्टिभि:) इच्छा आणि आदेशाप्रमाणे आम्ही त्या युद्धसामग्री-साधनांचा (वनेम) उपयोग करू. ॥40॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रातदेखील मागील मंत्रातील ‘सुभग’ आणि ‘न:’ या दोन शब्दांची अनुवृत्ती झालेली आहे विद्वानांना हवे की त्यांनी अत्यंत बलशाली वीर सैनिकांचा उत्साह नेहमी वाढवावा. यामुळे ते वीर सैनिक राजा आणि प्रजेची हितकारी कामे करण्यात उत्साहाने प्रवृत्त होतील ॥40॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O man of power and supremacy, with thy strength, grant us daring courage in battles, add to the resources of our resolute army, exerting to its utmost for victory. Acting in obedience to thy desires, let us utilise the resources of the army.

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    Meaning

    The spirit by which the forces endure in battles and win, with that spirit strengthen and expand to the full our forces and powers so that we grow firm and inviolable. May we benefit from your gracious gifts, win our battles and enjoy in life.

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    Translation

    By which you win those battles. Disarm those, who try to use force against us. May we win with your encouragements. (1)

    Notes

    Śardhatām, बलं कुर्वतां, those who want to use force (against us), i. e. enemies. Sthirāḥ, कठिना:, stretched (bows); firm (hopes). Ava tanuhi, अवतारय, ज्यारहितानि कुरु, make unstretched; loosen the strings of bows. Deflate (the hopes). Abhiṣṭibhiḥ, प्रोत्साहनै:, with encouragements; with aid. Vanema,जयेम, may we win. Also, सेवेमहि, may enjoy (the wealth).

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনঃ স কীদৃশ ইত্যাহ ॥
    পুনঃ সে কেমন হইবে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (সুভগ) সুন্দর লক্ষ্মীযুক্ত পুরুষ! আপনি (য়েন) যাহার প্রতাপে আমাদের (সমৎসু) যুদ্ধগুলিতে (সাসহঃ) অত্যন্ত সহ্য করিতে হয় উহাকে তথা (ভূরি) বহু প্রকার (শর্ধতাম্) বল করিয়া আমাদের (স্থিরা) স্থির সেনার সাধনগুলিকে (অবতনুহি) উত্তম প্রকার বৃদ্ধি করুন (তে) আপনার (অভিষ্টিভিঃ) ইচ্ছানুসারে বর্ত্তমান আমরা সেই সেনার সাধনগুলির (বনেম) সেবন করি ॥ ৪০ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এখানেও (সুভগ, নঃ) এই দুইয়ের পদের অনুবৃত্তি আইসে । বিদ্বান্ দিগের উচিত যে, বহু বলযুক্ত বীর পুরুষদের উৎসাহ নিত্য বৃদ্ধি করাইবেন । যাহাতে ইহারা উৎসাহী হইয়া রাজা ও প্রজার হিতকর কর্ম করিতে পারে ॥ ৪০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়েনা॑ স॒মৎসু॑ সা॒সহোऽব॑ স্থি॒রা ত॑নুহি॒ ভূরি॒ শর্ধ॑তাম্ ।
    ব॒নেমা॑ তেऽঅ॒ভিষ্টি॑ভিঃ ॥ ৪০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়েনেত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । নিচৃদুষ্ণিক্ ছন্দঃ ।
    ঋষভঃ স্বরঃ ॥

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