अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 12
ऋषिः - भार्गवो वैदर्भिः
देवता - प्राणः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - प्राण सूक्त
33
प्रा॒णो वि॒राट्प्रा॒णो देष्ट्री॑ प्रा॒णं सर्व॒ उपा॑सते। प्रा॒णो ह॒ सूर्य॑श्च॒न्द्रमाः॑ प्रा॒णमा॑हुः प्र॒जाप॑तिम् ॥
स्वर सहित पद पाठप्रा॒ण: । वि॒ऽराट् । प्रा॒ण: । देष्ट्री॑ । प्रा॒णम् । सर्वे॑ । उप॑ । आ॒स॒ते॒ । प्रा॒ण: । ह॒ । सूर्य॑: । च॒न्द्रमा॑ । प्रा॒णम । आ॒हु॒: । प्र॒जाऽप॑तिम् ॥६.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
प्राणो विराट्प्राणो देष्ट्री प्राणं सर्व उपासते। प्राणो ह सूर्यश्चन्द्रमाः प्राणमाहुः प्रजापतिम् ॥
स्वर रहित पद पाठप्राण: । विऽराट् । प्राण: । देष्ट्री । प्राणम् । सर्वे । उप । आसते । प्राण: । ह । सूर्य: । चन्द्रमा । प्राणम । आहु: । प्रजाऽपतिम् ॥६.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (6)
विषय
प्राण की महिमा का उपदेश।
पदार्थ
(प्राणः) प्राण [जीवनदाता परमेश्वर] (विराट्) विराट् [विविध प्रकार ईश्वर] और (प्राणः) प्राण [परमेश्वर] (देष्ट्री) मार्गदर्शिका शक्ति है, (प्राणम्) प्राण [परमेश्वर] की (सर्वे) सब (उप आसते) उपासना करते हैं (प्राणः) प्राण [परमेश्वर] (ह) ही (सूर्यः) प्रेरणा करनेवाला और (चन्द्रमाः) आनन्ददाता है, (प्राणम्) प्राण [परमेश्वर] को (प्रजापतिम्) प्रजापति [सृष्टिपालक] (आहुः) वे [विद्वान्] कहते हैं ॥१२॥
भावार्थ
सब मनुष्य परमात्मा की उपासना करके विविध प्रकार समर्थ होकर आनन्द पाते हैं ॥१२॥
टिप्पणी
१२−(प्राणः) म० १ (विराट्) विविधेश्वरः (देष्ट्री) दिश दाने आज्ञापने च-तृच्, ङीप्। मार्गदर्शिका शक्तिः (प्राणम्) परमात्मानम् (सर्वे) जनाः (उपासते) सेवन्ते (ह) एव (सूर्यः) सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (चन्द्रमाः) आह्लादकरः (प्राणम्) (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (प्रजापतिम्) सृष्टिपालकम् ॥
पदार्थ
शब्दार्थ = ( प्राणः विराट् ) = प्राण ही सर्वत्र विशेष रूप से प्रकाशमान है। ( प्राणः देष्टी ) = प्राण सब प्राणियों को अपने-अपने व्यापार में प्रेरणा कर रहा है, ( प्राणं सर्वे उपासते ) = ऐसे प्राण परमात्मा की सब लोग उपासना करते हैं , ( प्राण: ह सूर्यः ) = प्राण ही सब जगत् का प्रकाशक और प्रेरक सूर्य है, ( चन्द्रमा: ) = सब को आनन्द देनेवाला प्राण ही चन्द्रमा है ( प्राणम् आहु: प्रजापतिम् ) = वेद और वेदज्ञाता महापुरुष इस प्राण को ही सब प्रजाओं का जनक और स्वामी कहते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ = हे चेतन देव जगत्पते प्रभो! आप सब स्थानों में प्रकाशमान हो रहे हैं, आप ही सब प्राणियों को अपने-अपने व्यापारों में प्रेर रहे हैं, आपकी ही सब विद्वान् पुरुष उपासना करते हैं, आप ही सब जगत् के प्रकाशक और प्रेरक होने से सूर्य, और आनन्द दायक होने से चन्द्रमा कहलाते हैं, सब महात्मा लोग, आपको ही सब प्रजाओं का कर्ता और स्वामी कहते हैं ।
विषय
'प्राणः' विराट
पदार्थ
१. (प्राण:) = सारे ब्रह्माण्ड को प्राणित करनेवाला प्रभु ही (विराट) = इस स्थूल प्रपञ्च का अधिष्ठाता [शासक] ईश्वर है। वह (प्राण:) = प्राणशक्ति देनेवाला प्रभु ही (देष्ट्री) = अपने-अपने व्यापारों में सबको प्रेरित करनेवाला है (प्राणम्) = इस विराट् देष्ट्री' प्राण को ही (सर्वे उपासते) = सब लोग स्वाभिलषित की सिद्धि के लिए सेवित करते हैं। २. (प्राण: ह) = सबको प्राणित करनेवाले प्रभु ही (सूर्यः चन्द्रमा:) = सबके प्रेरक 'आदित्य' व अमृतमय 'सोम' है-वे प्रभु'अग्रीषोमात्मक' हैं। (प्राणम्) = इस प्राण को ही (प्रजापतिम् आहुः) = प्रजाओं का स्रष्टा देव कहते हैं।
भावार्थ
प्राणों के भी प्राण प्रभु इस ब्रह्माण्डरूप शरीर के अधिष्ठाता 'विराट' हैं। वे ही सबके कर्तव्यों का निर्देश करनेवाले हैं। सब लोग इस प्राण की ही उपासना करते हैं। वह प्राण ही सूर्य-चन्द्र व प्रजापति हैं। अग्नीषोमात्मक होता हुआ यह प्राण ही सब प्रजाओं का पालक हैं|
भाषार्थ
(विराट्) विविध प्रकार के जगत् में प्रदीप्त हो रहा परमेश्वर (प्राणः) सब का प्राण है, (देष्ट्री) जीवन सम्बन्धी निर्देश देने वाली पारमेश्वरी जगन्माता (प्राणः) सब का प्राण है, (प्राणम्) इस प्राण की (सर्वे) सब (उपासते) उपासना करते हैं। (सूर्यः) सूर्य (ह) निश्चय से (प्राणः) प्राण है, (चन्द्रमाः) चन्द्रमा निश्चय से प्राण हैं (प्रजामतिम्) प्रजाओं के पालक परमेश्वर को (प्राणम्, आहुः) विज्ञलोग प्राण कहते हैं।
विषय
प्राणरूप परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
(प्राणः विराट्) प्राण ही ‘विराट्’ हिरण्यगर्भ रूप है (प्राणः देष्ट्री) प्राण ही सबका उपदेष्टा ज्ञानप्रद सर्वप्रेरक है (सर्व) समस्त विद्वान् (प्राणम्) प्राण की ही उपासना करते हैं। (प्राणः ह सूर्यः) वह प्राण ही ‘सूर्य’ शब्द से कहा जाता है (चन्द्रमाः) वही ‘चन्द्रमा’ शब्द से कहा जाता है। (प्राणम् प्रजापतिम् आहुः) उस सब के प्राणेश्वर प्रारण को ही ‘प्रजापति’ नाम से विद्वान् पुकारते हैं।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘प्राणः सर्वम्’ (तु०) ‘प्राणोग्निश्चन्द्रमाः सूर्य’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भार्गवी वैदर्भिर्ऋषिः। प्राणो देवता। १ शंकुमती, ८ पथ्यापंक्तिः, १४ निचृत्, १५ भुरिक्, २० अनुष्टुबगर्भा त्रिष्टुप, २१ मध्येज्योतिर्जगति, २२ त्रिष्टुप, २६ बृहतीगर्भा, २-७-९, १३-१६-१९-२३-२५ अनुष्टुभः। षडविंशचं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(प्राण:-विराट) प्राण विराट-स्थूल सूक्ष्म जड़ जङ्गम में विशेष रूप से राजमान है (प्राण:-देष्ट्री) प्राण प्रेरक शक्ति है (प्राणं सर्वे-उपासते) प्राण को सब-देव-मनुष्य आदि प्राणी और तन्तु नाड़ियाँ भी सेवन करती हैं (प्राण:-ह सूर्य:-चन्द्रमाः) प्राण सूर्य है- जड़ जङ्गम में ताप क्रान्ति देने वाला है, प्राण ही चन्द्रमा स्नेह शान्ति देने वाला है, (प्राणं प्रजापतिम् आहुः) प्राण को प्रजापति-प्रजापालक कहते हैं ॥१२॥
विशेष
ऋषिः — भार्गवो वैदर्भिः ("भृगुभृज्यमानो न देहे"[निरु० ३।१७])— तेजस्वी आचार्य का शिष्य वैदर्भि-विविध जल और औषधियां" यद् दर्भा आपश्च ह्येता ओषधयश्च” (शत० ७।२।३।२) "प्रारणा व आप:" [तै० ३।२।५।२] तद्वेत्ता- उनका जानने वाला । देवता- (प्राण समष्टि व्यष्टि प्राण) इस सूक्त में जड जङ्गम के अन्दर गति और जीवन की शक्ति देनेवाला समष्टिप्राण और व्यष्टिप्राण का वर्णन है जैसे व्यष्टिप्राण के द्वारा व्यष्टि का कार्य होता है ऐसे समष्टिप्राण के द्वारा समष्टि का कार्य होता है । सो यहां दोनों का वर्णन एक ही नाम और रूप से है-
इंग्लिश (4)
Subject
Prana Sukta
Meaning
Prana is Virat, refulgent and universal, Prana is the directive force of existence, all honour, adore and exalt Prana, Prana is sun, Prana is moon, and sages call Prana Prajapati.
Translation
Breath is viraj, breath the directress; breath all worship; breath is the sun, the moon; breath they call Prajapati.
Translation
Prana is Virat, it is Destri and it is why all the things have their connection with Prana. Prana is called as Sun, as Moon and Prajapati, the Protector lord of the creatures.
Translation
God is highly Luminous, He shows the path of duty, He is reverenced by all. He is the Goader like the Sun, and the Bestower of joy like the Moon. The wise call Him the Protector of the world.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१२−(प्राणः) म० १ (विराट्) विविधेश्वरः (देष्ट्री) दिश दाने आज्ञापने च-तृच्, ङीप्। मार्गदर्शिका शक्तिः (प्राणम्) परमात्मानम् (सर्वे) जनाः (उपासते) सेवन्ते (ह) एव (सूर्यः) सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (चन्द्रमाः) आह्लादकरः (प्राणम्) (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (प्रजापतिम्) सृष्टिपालकम् ॥
बंगाली (1)
পদার্থ
প্রাণো বিরাট্ প্রাণো দেষ্ট্রী প্রাণং সর্ব উপাসতে।
প্রাণো হ সূর্য়শ্চন্দ্রমাঃ প্রাণমাহুঃ প্রজাপতিম্।।১১।।
(অথর্ব ১১।৪।১২)
পদার্থঃ (প্রাণঃ বিরাট্) প্রাণই সর্বত্র বিশেষ রূপে প্রকাশমান। (প্রাণঃ দেষ্ট্রী) প্রাণ সকল প্রাণীদের তাদের নিজ নিজ বিষয়ে প্রেরণ করছে। (প্রাণং সর্ব উপাসতে) এভাবে প্রাণরূপ পরমাত্মাকে সকলে উপাসনা করে, (প্রাণঃ হ সূর্য়ঃ) প্রাণই সকল জগতের প্রকাশক আর প্রেরক। (চন্দ্রমাঃ) সকলকে আনন্দ দানকারী, (প্রাণম্ আহুঃ প্রজাপতিম্) বেদ আর বেদজ্ঞাতা মহাপুরুষ এই প্রাণকেই সকল সৃষ্টির জনক আর ঈশ্বর বলেন।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে চেতন দেব জগৎপতি পরমেশ্বর! তুমি সকল স্থানে প্রকাশমান হচ্ছ। তুমিই সকল প্রাণীদেরকে তাদের নিজ নিজ বিষয়ে প্রেরণ করছ। সকল বিদ্বান পুরুষ তোমারই উপাসনা করে। তুমিই সকল জগতের প্রকাশক ও প্রেরক হওয়ায় তোমাকে সূর্য আর আনন্দদায়ক হওয়ায় চন্দ্রমা বলা হয়। সকল মহাত্মাগণ তোমাকেই সকল সৃষ্টির কর্তা আর ঈশ্বর বলে থাকেন।।১১।।
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