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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 8
    ऋषिः - भार्गवो वैदर्भिः देवता - प्राणः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - प्राण सूक्त
    17

    नम॑स्ते प्राण प्राण॒ते नमो॑ अस्त्वपान॒ते। प॑रा॒चीना॑य ते॒ नमः॑ प्रती॒चीना॑य ते॒ नमः॒ सर्व॑स्मै त इ॒दं नमः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नम॑: । ते॒ । प्रा॒ण॒ । प्रा॒ण॒ते । नम॑: । अ॒स्तु॒ । अ॒पा॒न॒ते । प॒रा॒चीना॑य । ते॒ । नम॑: । प्र॒ती॒चीना॑य । ते॒ । नम॑: । सर्व॑स्मै । ते॒ । इ॒दम् । नम॑: ॥६.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमस्ते प्राण प्राणते नमो अस्त्वपानते। पराचीनाय ते नमः प्रतीचीनाय ते नमः सर्वस्मै त इदं नमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नम: । ते । प्राण । प्राणते । नम: । अस्तु । अपानते । पराचीनाय । ते । नम: । प्रतीचीनाय । ते । नम: । सर्वस्मै । ते । इदम् । नम: ॥६.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 4; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    प्राण की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्राण) हे प्राण ! [जीवनदाता परमेश्वर] (प्राणते) श्वास लेते हुए [पुरुष] के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार, (अपानते) प्रश्वास लेते हुए के हित के लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे। (पराचीनाय) बाहिर जाते हुए [पुरुष] के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार (प्रतीचीनाय) सन्मुख जाते हुए के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार, (सर्वस्मै) सबके हित के लिये (ते) तुझे (इदम्) यह (नमः) नमस्कार हो ॥८॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रत्येक श्वास-प्रश्वास आदि चेष्टा करते हुए संसार का हित करके परमेश्वर को धन्यवाद देवे ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(नमः) (ते) तुभ्यम् (प्राण) म० १। हे परमेश्वर (प्राणते) श्वसते पुरुषाय (अपानते) प्रश्वासं कुर्वते (पराचीनाय) विभाषाञ्चेरदिक्स्त्रियाम्। पा० ५।४।८। इति स्वार्थिकः खः। पराञ्चनाय। बहिर्गच्छते पुरुषाय (प्रतीचीनाय) प्रतिमुखं सम्मुखं गच्छते पुरुषाय (सर्वस्मै) सर्वहिताय (इदम्) क्रियमाणम् (नमः) नमस्कारः। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    पराचीनाय-प्रतीचीनाय

    पदार्थ

    १. हे (प्राण) = प्राण! (प्राणते ते नमः) = प्राणन-व्यापार करते हुए तेरे लिए नमस्कार हो, (अपानते नमः अस्तु) = अपानन-व्यापार करते हुए तेरे लिए नमस्कार हो। (पराचीनाय) = [पराञ्चनाय] परागमन स्वभाववाले देह से बाहर अवस्थित (ते नम:) = तेरे लिए नमस्कार हो। (प्रतीचीनाय) = [प्रतिमुखं अञ्चते] प्रतिमुख आते हुए देहमध्य में वर्तमान (ते) = तेरे लिए (नमः) = नमस्कार हो। संक्षेप में, (सर्वस्मै ते) = सब व्यापारों को करनेवाले सर्वप्राणिशरीरान्तर्वर्ती (ते) = तेरे लिए (इदं नम:) = यह नमस्कार हो।

    भावार्थ

    प्राणापान आदि क्रियाओं को शरीर में प्रवृत्त करानेवाले उस प्राणों के प्राण प्रभु के लिए हमारा नमस्कार हो।

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    भाषार्थ

    (प्राण) हे प्राण ! (प्राणते) प्राण क्रिया करने वाले (ते नमः) तुझे नमस्कार हो, (अपानते) अपान क्रिया करने वाले के लिये (नमः अस्तु) नमस्कार हो। (पराचीनाय) पराङ्सुख अर्थात् शरीर से बाहिर की ओर गति करने वाले (ते नमः) तुझे नमस्कार हो, (प्रतीचीनाय) शरीर के प्रति अर्थात् शरीर के भीतर की ओर गति करने वाले (ते नमः) तुझे नमस्कार हो, (सर्वस्मै) जगत् की सब प्रकार की क्रियाओं को करने वाले (ते) तुझे (इदं नमः) यह नमस्कार हो।

    टिप्पणी

    [प्राणते = श्वासक्रिया। अपानते=उच्छ्वास क्रिया तथा गुदा सम्बन्धी अपान वायु की क्रिया। पराचीनाय= परा (परे) + अञ्च् (गतौ), पराञ्चनाय, परागमनकर्त्रे। मन्त्र ७ में परायते और मन्त्र ८ में पराचीनाम एकार्थक हैं। प्राणापान क्रिया तथा समग्र जगत् की क्रियाओं के कर्त्ता महाप्राण रूप परमेश्वर के प्रति नमस्कार है]।

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    विषय

    प्राणरूप परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (प्राण प्राणते ते नमः) प्राण ! प्राण क्रिया करते, श्वास लेते हुए तुझे नमस्कार है। (अपानते नमः अस्तु) श्वास छोड़ते हुए तुझे नमस्कार है। (पराचीनाय ते नमः) पराङ्मुख देह से बाहर जाते हुए तुझे नमस्कार है। और (प्रतीचीनाय) अपनी तरफ़ आते हुए,देह के भीतर वर्तमान (ते नमः) तुझे नमस्कार है। (सर्वस्मै ते) सर्व संसार के प्राणियों और समस्त चेतन चराचर पदार्थों के स्वरूप में विद्यमान तुझको (इदं नमः) हमारा यह नमस्कार, आदरभाव है।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘नमोस्त्व’ (तृ०) ‘प्रतीचीनाय ते नमः पराचीनाय’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भार्गवी वैदर्भिर्ऋषिः। प्राणो देवता। १ शंकुमती, ८ पथ्यापंक्तिः, १४ निचृत्, १५ भुरिक्, २० अनुष्टुबगर्भा त्रिष्टुप, २१ मध्येज्योतिर्जगति, २२ त्रिष्टुप, २६ बृहतीगर्भा, २-७-९, १३-१६-१९-२३-२५ अनुष्टुभः। षडविंशचं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (प्राण ते प्राणते नमः-अपानते नमः-अस्तु) हे प्राण तुझ प्राण लेते हुए, - श्वास लेते हुए के लिये स्वागत हो तथा अपान छोड़ते हुए के लिये स्वागत हो (ते पराचीनाय नमः) तुझ परे जाते हुए शरीर से बाहिर जाते हुए के लिये स्वागत हो (ते प्रतीचीनाय नमः) तुझ शरीर के अन्दर समाए हुए के लिये स्वागत हो (ते सर्वस्मै इदं नमः) तुझ सब प्रकार के प्राण के लिये स्वागत हो, चाहे तू सामटिक प्राण हो वैयष्टिक प्राण हो उस तेरे लिये स्वागत हो ॥८॥

    विशेष

    ऋषिः — भार्गवो वैदर्भिः ("भृगुभृज्यमानो न देहे"[निरु० ३।१७])— तेजस्वी आचार्य का शिष्य वैदर्भि-विविध जल और औषधियां" यद् दर्भा आपश्च ह्येता ओषधयश्च” (शत० ७।२।३।२) "प्रारणा व आप:" [तै० ३।२।५।२] तद्वेत्ता- उनका जानने वाला । देवता- (प्राण समष्टि व्यष्टि प्राण) इस सूक्त में जड जङ्गम के अन्दर गति और जीवन की शक्ति देनेवाला समष्टिप्राण और व्यष्टिप्राण का वर्णन है जैसे व्यष्टिप्राण के द्वारा व्यष्टि का कार्य होता है ऐसे समष्टिप्राण के द्वारा समष्टि का कार्य होता है । सो यहां दोनों का वर्णन एक ही नाम और रूप से है-

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prana Sukta

    Meaning

    Homage to you, Prana, moving as prana, the breath of life energy. Homage to you moving as apana, the cleanser of life, remover of impurities. Homage to you moving away, homage to you moving closer and within, this homage to you, all and universal.

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    Translation

    Homage to thee breathing, O breath; homage be to (thee) making expiration; homage to thee turned away, homage to thee turned toward (us); to the whole of thee (be) this homage.

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    Translation

    We accept the importance of Prana at every breath that it inhails andthe breath that it exhails. We express our praise for the Prana at its functioning back and at its functioning in-front. Our praise is due to it under all its circumstances.

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    Translation

    O God, homage to Thee, for the good o f the man inhaling, homage to Thee, for the good of the man exhaling, homage to Thee for the good of the man going out, homage to thee for the good of the man in front of us!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(नमः) (ते) तुभ्यम् (प्राण) म० १। हे परमेश्वर (प्राणते) श्वसते पुरुषाय (अपानते) प्रश्वासं कुर्वते (पराचीनाय) विभाषाञ्चेरदिक्स्त्रियाम्। पा० ५।४।८। इति स्वार्थिकः खः। पराञ्चनाय। बहिर्गच्छते पुरुषाय (प्रतीचीनाय) प्रतिमुखं सम्मुखं गच्छते पुरुषाय (सर्वस्मै) सर्वहिताय (इदम्) क्रियमाणम् (नमः) नमस्कारः। अन्यद् गतम् ॥

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