अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 129/ मन्त्र 1
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
36
ए॒ता अश्वा॒ आ प्ल॑वन्ते ॥
स्वर सहित पद पाठए॒ता: । अश्वा॒: । प्ल॑वन्ते ॥१२९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
एता अश्वा आ प्लवन्ते ॥
स्वर रहित पद पाठएता: । अश्वा: । प्लवन्ते ॥१२९.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थ
(एताः) यह (अश्वाः) व्यापक प्रजाएँ (प्रतीपम्) प्रत्यक्ष व्यापक (सुत्वनम् प्राति) ऐश्वर्यवाले [परमेश्वर] के लिये (आ) आकर (प्लवन्ते) चलती हैं ॥१, २॥
भावार्थ
संसार के सब पदार्थ उत्पन्न होकर परमेश्वर की आज्ञा में वर्त्तमान हैं ॥१, २॥
टिप्पणी
[पदपाठ के लिये सूचना सूक्त १२७ देखो]१−(एताः) उपस्थिताः (अश्वाः), अशू व्याप्तौ-क्वन्, टाप्। व्यापिकाः प्रजाः (आ) आगत्य (प्लवन्ते) गच्छन्ति ॥
विषय
प्रतीपम्
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार इन्द्रियों के शुद्ध होने पर (एता:) = ये (अश्वा:) = विविध विषयों में व्याप्त होनेवाली चित्तवृत्तियाँ (आ) = चारों ओर से (प्रतीपम्) = [inverted] अन्तर्मुखी हुई-हुई (प्लवन्ते) = गतिवाली होती हैं। अब ये चितवृत्तियों (प्रातिसुत्वनम्) = ब्रह्माण्ड के प्रत्येक पदार्थ को उत्पन्न करनेवाले प्रभु की ओर चलती हैं।
भावार्थ
इन्द्रियों के शुद्ध होने पर चित्तवृत्तियाँ अन्तर्मुखी होकर प्रभु की ओर चलती हैं।
भाषार्थ
(एताः) ये (अश्वाः) मनोवृत्तियाँ या चित्तवृत्तियाँ (आप्लवन्ते) प्लुतियाँ लगाती हैं, उछल-कूद करती हैं, अर्थात् चञ्चल और अस्थिर हैं।
टिप्पणी
[अश्वाः=वैदिक साहित्य में मन या चित्त को ही इन्द्रिय माना है, और इन्द्रियों को शरीर-रथ के “हय” अर्थात् अश्व कहा है। इसलिए मन या चित्त भी अश्व है, और मन या चित्त की विविध-वृत्तियाँ “अश्वाः” हैं। ये चित्तवृत्तियाँ शरीर-रथों का वहन करती हैं। मनुस्मृति में कहा है कि “एकादशं मनो ज्ञेयमिन्द्रिमयमुभयात्मकम्” (२.९२) अर्थात् मन ११वीं इन्द्रिय है, जो कि दोनों रूपोंवाली है, ज्ञानेन्द्रिय भी और कर्मेन्द्रिरूप भी। क्योंकि मन द्वारा ही ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों में प्रेरणाएँ होती हैं, और ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के केन्द्र मन या चित्त में निहित हैं। इसलिए “अश्वाः” पद द्वारा मनोवृत्तियों या चित्तवृत्तियों का ग्रहण किया है।
विषय
वीर सेना और गृहस्थ में स्त्री का वर्णन।
भावार्थ
(एताः) ये तीव्रवेग वाली (अश्वाः) अश्वाएं, घुड़सवारों की सेनाएं (प्रातिसुत्वनम्) प्रतिपक्ष में अभिषेक को प्राप्त हुए राजा के (प्रतीपम्) विरुद्ध (आ प्लवन्ते) दौड़ रही हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथ ऐतशप्रलापः॥ ऐतश ऋषिः। अग्नेरायुर्निरूपणम्॥ अग्नेरायुर्यज्ञस्यायात यामं वा षट्सप्ततिसंख्याकपदात्मकं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
These senses, mental fluctuations, wander around after the objects they love to feed on.
Translation
These organs of man hunt their objects.
Translation
These organs of man hunt their objects.
Translation
O Volition, what dost thou desire?
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
[पदपाठ के लिये सूचना सूक्त १२७ देखो]१−(एताः) उपस्थिताः (अश्वाः), अशू व्याप्तौ-क्वन्, टाप्। व्यापिकाः प्रजाः (आ) आगत्य (प्लवन्ते) गच्छन्ति ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যপ্রয়ত্নোপদেশঃ
भाषार्थ
(এতাঃ) এই/উপস্থিত (অশ্বাঃ) ব্যাপক প্রজাগণ (প্রতীপম্) প্রত্যক্ষ ব্যাপক (সুত্বনম্ প্রাতি) ঐশ্বর্যবানের [পরমেশ্বরের] জন্য (আ) এসে (প্লবন্তে) গমন করে/গতিশীল হয়॥১, ২॥
भावार्थ
সংসারের সমস্ত পদার্থ উৎপন্ন হয়ে পরমেশ্বরের আজ্ঞায় বর্তমান॥১, ২॥
भाषार्थ
(এতাঃ) এই (অশ্বাঃ) মনোবৃত্তি-সমূহ বা চিত্তবৃত্তি-সমূহ (আপ্লবন্তে) প্লুতিগতিসম্পন, উথালপাথাল করে, অর্থাৎ চঞ্চল এবং অস্থির।
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