अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 129/ मन्त्र 4
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
23
हरि॑क्नि॒के किमि॑च्छसि ॥
स्वर सहित पद पाठहरि॑क्नि॒के । किम् । इ॑च्छसि ॥१२९.४॥
स्वर रहित मन्त्र
हरिक्निके किमिच्छसि ॥
स्वर रहित पद पाठहरिक्निके । किम् । इच्छसि ॥१२९.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थ
(हरिक्निके) हे मनुष्य में प्रीति करनेवाली ! तू (किम्) क्या (इच्छसि) चाहती है ॥४॥
भावार्थ
सृष्टि के बीच माता अपने पुरुष से प्रीति करके सन्तान उत्पन्न करके उनको कुमार्ग से बचाके तेजस्वी और सुमार्गी बनावे ॥३-६॥
टिप्पणी
४−(हरिक्निके) म० ३। हे मनुष्येच्छुके (किम्) (इच्छसि) कामयसे ॥
विषय
हरिक्निके किमिच्छसि
पदार्थ
१. (तासाम्) = उन चित्तवृत्तियों में (एका) = एक (हरिक्निका) = [हरय: मनुष्याः नि० १.१५ । कन् दीसौ] मनुष्यों के जीवन को दीप्त बनानेवाली है। २. हे (हरिक्निके) = मानव-जीवन को दीप्त करनेवाली चित्तवृत्ते! तू (किम् इच्छसि) = क्या चाहती है। यहाँ साधक अपने से ही प्रश्न करता है और अगले मन्त्र में उसका उत्तर देता है।
भावार्थ
अन्तर्मुखी चित्तवृत्ति वह है जोकि मानवजीवन को दीप्त बनानेवाली है।
भाषार्थ
(हरिक्निके) हे हरि की कामनावाली सात्विक-चित्तवृत्ति! तू (किम् इच्छसि) क्या चाहती है?
विषय
वीर सेना और गृहस्थ में स्त्री का वर्णन।
भावार्थ
(नासाम्) उनमें से (एका) एक (हरिक्ति [क्णि] का) हरि=कणिका ] प्राण हरण करने वाले कणों को छोड़ने वाली है। वह ‘हरिक्तिका’ कहाती है॥ ३॥ हे (हरिक्तिके) प्राणहारी कणों, छर्रो को छोड़ने वाली ! तू (किम् इच्छसि) क्या चाहती है ? गृहस्थ पक्ष में—(एताः अश्वाः आ प्लवन्ते) ये सांसारिक सुख की इच्छा करने वाली स्त्रियें (प्रतीपं) सुन्दर (प्रातिसुत्वनम्) प्रतिसव, पुत्रोत्पादक करने में समर्थ वीर्यवान् पति को प्राप्त होती हैं। (तासाम् एका) इनमें से एक = प्रत्येक (हरिक्तिका = हरिकन्यका) मनोहर कन्या है। अथवा (हरिक्लिका = हरि कलिका) हरणशील गर्भधारण समर्थ कला, कामकला से युक्त है। पति को प्राप्त हो जाने पर पति पूछे कि हे - (हरिक्निके) मनोहर, गर्भाधारण में समर्थ स्त्रि ! तू क्या चाहती है ?
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथ ऐतशप्रलापः॥ ऐतश ऋषिः। अग्नेरायुर्निरूपणम्॥ अग्नेरायुर्यज्ञस्यायात यामं वा षट्सप्ततिसंख्याकपदात्मकं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Translation
What does organ attracted towards worldly lustres desire ?
Translation
What does organ attracted towards worldly lustres desire?
Translation
He is there, where three external entities (i.e., Brahm, Jiva and Prakriti) stand guard over the latent identity.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(हरिक्निके) म० ३। हे मनुष्येच्छुके (किम्) (इच्छसि) कामयसे ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যপ্রয়ত্নোপদেশঃ
भाषार्थ
(হরিক্নিকে) হে মনুষ্যের প্রতি প্রীতিকর! তুমি (কিম্) কী (ইচ্ছসি) চাও/কামনা করো।।৪॥
भावार्थ
সৃষ্টির মাঝে মা নিজের পুরুষের প্রতি প্রীতিপূর্বক সন্তান উৎপন্ন করে, সেই সন্তানকে কুমার্গ থেকে রক্ষা করে তেজস্বী ও সদাচারী করুক ॥৩-৬॥
भाषार्थ
(হরিক্নিকে) হে হরির কামনাকারী সাত্ত্বিক-চিত্তবৃত্তি! তুমি (কিম্ ইচ্ছসি) কী চাও?
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal