अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 129/ मन्त्र 12
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
18
स इच्छकं॒ सघा॑घते ॥
स्वर सहित पद पाठस: । इच्छक॒म् । सघा॑घते ॥१२९.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
स इच्छकं सघाघते ॥
स्वर रहित पद पाठस: । इच्छकम् । सघाघते ॥१२९.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह [मनुष्य] (इच्छकम्) इच्छावाले को (सघाघते) सहाय करता है ॥१२॥
भावार्थ
स्त्री-पुरुष मिलकर धर्मव्यवहार में एक-दूसरे के सहायक होकर संसार का उपकार करें ॥११-१४॥
टिप्पणी
१२−(सः) मनुष्यः (इच्छकम्) इषु इच्छायाम्-शकप्रत्ययः। इच्छायुक्तम् (सघाघते) षह क्षमायाम् इत्यस्य रूपम्। यद्वा, षघ हिंसायाम् अत्र सहाये। साहयते ॥
विषय
प्रभु-प्राप्ति किसे?
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार जब तुम शिखर पर पहुँचने का प्रयत्न करते हो तो वे (महा) = महान् (अर्वाह:) = [ऋगतौ] सब गतियों को प्राप्त करानेवाले प्रभु (ते अयत्) = तुझे प्रास होते हैं। उन्नतिशील पुरुष ही प्रभु-प्राप्ति के योग्य होता है। २. (स:) = वे प्रभु (इच्छकम्) = प्रभु-प्राप्ति की प्रबल कामनावाले पुरुष को ही (सघाघते) = [receive, accept] स्वीकार करते हैं। यही ब्रह्मलोक में पहुँचने का अधिकारी होता है। ३. यह प्रभु का प्रिय साधक (गोमीद्या:) = [मिद् स्नेहने] ज्ञान की वाणियों के प्रति स्नेह को (सघाघते) = [सब् to support. bear] अपने में धारण करता है तथा गोगती: ज्ञान की वाणियों के अनुसार क्रियाओं को अपने में धारण करता है। यह बात शास्त्रनिर्दिष्ट है इति-इस कारण ही वह उसका धारण करता है।
भावार्थ
शिखर पर पहुँचने के लिए यत्नशील पुरुष को प्रभु की प्राप्ति होती है। प्रभु उसी को प्राप्त होते हैं जो प्रभु-प्राप्ति की प्रबल कामनाबाला होता है। यह पुरुष ज्ञान की वाणियों के प्रति स्नेह को धारण करता है और ज्ञान की बाणियों के अनुसार ही क्रियाओं को करता है।
भाषार्थ
(सः) वह परमेश्वर (इच्छकम्) सांसारिक इच्छाओं के वशवर्ती मनुष्य की (सघाघते) हिंसा करता है, या उसकी उद्भूत हो सकनेवाली आध्यात्मिक शक्तियों पर आवरण डाल देता है।
टिप्पणी
[इच्छकम्=इच्छुकम्। राजसी और तामसी इच्छाएँ सांसारिक-बन्धनरूप हैं, जिनके संसार में फंसा व्यक्ति दुःखों को भोगता है—यही उसकी मानो हिंसा है। इच्छाओं से बन्धा हुआ व्यक्ति, जन्म-मरण की शृङ्खला में जकड़ा हुआ हिंसित होता रहता है। साथ ही सांसारिक-इच्छाएँ व्यक्ति का आध्यात्मिक-विकास नहीं होने देतीं। सघाघते=षघ हिंसायाम्; तथा षगे संवरणे।]
विषय
वीर सेना और गृहस्थ में स्त्री का वर्णन।
भावार्थ
(अयम्) यह (अर्वा) ज्ञानवान् पुरुष और अश्व के समान वेगवान् बलवान् पुरुष (इह आगतः) यहां आगया है। (शक्ना) जिस प्रकार घोड़ा लीद से भली प्रकार पहचाना जाता है उसी प्रकार बलवान् पुरुष भी (शक्ता) शक्ति से ही पहचाना जाता है। (गोमयात्) गोबर से जिस प्रकार (गोगतिः) गौ या बैल के जाने का मार्ग पता लग जाता है उसी प्रकार वह विद्वान् पुरुष भी (गोमयात्) वाणिमय ज्ञान से और शक्तिमान् पुरुष (गोमयात्) भूमिमय राष्ट्र से (सं ज्ञायते) पता लग जाता है।
टिप्पणी
छकं समागते इति नाना पाठाः। ‘सइच्छकं सघागते’। इति शं० पा०॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथ ऐतशप्रलापः॥ ऐतश ऋषिः। अग्नेरायुर्निरूपणम्॥ अग्नेरायुर्यज्ञस्यायात यामं वा षट्सप्ततिसंख्याकपदात्मकं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
He comes, moves whoever desires and wards off the undesirables.
Translation
He helps him who is desirous.
Translation
He helps him who is desirous.
Translation
I want means of progress and prosperity and capacity to put an end to misery and trouble ripe fruit of my actions, just as a farmer desires paddy and barley, as ripe harvest of his labours.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१२−(सः) मनुष्यः (इच्छकम्) इषु इच्छायाम्-शकप्रत्ययः। इच्छायुक्तम् (सघाघते) षह क्षमायाम् इत्यस्य रूपम्। यद्वा, षघ हिंसायाम् अत्र सहाये। साहयते ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যপ্রয়ত্নোপদেশঃ
भाषार्थ
(সঃ) সেই [মনুষ্য] (ইচ্ছকম্) ইচ্ছাযুক্তকে/কামনাকারীকে (সঘাঘতে) সহায়তা করি ॥১২॥
भावार्थ
স্ত্রী-পুরুষ মিলে ধর্মাচরণ দ্বারা একে-অন্যের সহায়ক হয়ে সংসারের উপকার করুক ॥১১-১৪॥
भाषार्थ
(সঃ) সেই পরমেশ্বর (ইচ্ছকম্) সাংসারিক ইচ্ছার বশবর্তী মনুষ্যের (সঘাঘতে) হিংসা করে, বা তাঁর সম্ভাব্য উদ্ভূত আধ্যাত্মিক শক্তির ওপর আবরণ তৈরি করেন।
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