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  • यजुर्वेद - अध्याय 1/ मन्त्र 20
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - विराट् ब्राह्मी त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः
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    धा॒न्यमसि धिनु॒हि दे॒वान् प्रा॒णाय॑ त्वोदा॒नाय॑ त्वा व्या॒नाय॑ त्वा। दी॒र्घामनु॒ प्रसि॑ति॒मायु॑षे धां दे॒वो वः॑ सवि॒ता हिर॑ण्यपाणिः॒ प्रति॑गृभ्णा॒त्वच्छि॑द्रेण पा॒णिना॒ चक्षु॑षे त्वा म॒हीनां॒ पयो॑ऽसि॥ २०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धा॒न्य᳖म्। अ॒सि॒। धि॒नु॒हि। दे॒वान्। प्रा॒णाय॑। त्वा॒। उ॒दा॒नायेत्यु॑त्ऽआ॒नाय॑। त्वा॒। व्या॒नायेति॑ विऽआ॒नाय॑। त्वा॒। दी॒र्घाम्। अनु॑। प्रसि॑तिमिति॒ प्रऽसि॑तिम्। आयु॑षे। धा॒म्। दे॒वः। वः॒। स॒वि॒ता। हिर॑ण्यपाणि॒रिति॒ हिर॑ण्यऽपाणिः। प्रति॑। गृ॒भ्णा॒तु॒। अच्छि॑द्रेण। पा॒णिना॒। चक्षु॑षे। त्वा॒। म॒हीना॑म्। पयः॑। अ॒सि॒ ॥२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्वोदानाय त्वा व्यानाय त्वा। दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    धान्यम्। असि। धिनुहि। देवान्। प्राणाय। त्वा। उदानायेत्युत्ऽआनाय। त्वा। व्यानायेति विऽआनाय। त्वा। दीर्घाम्। अनु। प्रसितिमिति प्रऽसितिम्। आयुषे। धाम्। देवः। वः। सविता। हिरण्यपाणिरिति हिरण्यऽपाणिः। प्रति। गृभ्णातु। अच्छिद्रेण। पाणिना। चक्षुषे। त्वा। महीनाम्। पयः। असि॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 1; मन्त्र » 20
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    Translation -
    You are foodgrain. Feed the sense organs. (1) We cherish you for in-breath. (2) You for out-breath;(3) and for diffused breath. (4) We take you for getting a long and energetic life span. May the golden-handed sun receive you with his hands without a leak. (5) We cherish you for good eye-sight. (6) You аге the essence of sublime faculties. (7)

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