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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 24
    ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः देवता - विद्वान् देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    आ श्रा॑व॒येति॑ स्तो॒त्रियाः॑ प्रत्याश्रा॒वोऽअनु॑रूपः। यजेति॑ धाय्यारू॒पं प्र॑गा॒था ये॑यजाम॒हाः॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ। श्रा॒व॒य॒ इति॑। स्तो॒त्रियाः॑। प्र॒त्या॒श्रा॒व इति॑ प्रतिऽआश्रा॒वः। अनु॑रूप॒ इत्यनु॑ऽरूपः। यजा॒इति॑। धा॒य्या॒रू॒पमिति॑ धाय्याऽरू॒पम्। प्र॒गा॒था इति॑ प्रऽगा॒थाः। ये॒य॒जा॒म॒हा इति॑ येऽयजाम॒हाः ॥२४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ श्रावयेति स्तोत्रियाः प्रत्याश्रावोऽअनुरूपः । यजेति धय्यारूपम्प्रगाथा येयजामहाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ। श्रावय इति। स्तोत्रियाः। प्रत्याश्राव इति प्रतिऽआश्रावः। अनुरूप इत्यनुऽरूपः। यजाइति। धाय्यारूपमिति धाय्याऽरूपम्। प्रगाथा इति प्रऽगाथाः। येयजामहा इति येऽयजामहाः॥२४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 24
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    पदार्थ -
    हे विद्वन्! तू विद्यार्थियों को विद्या (आ, श्रावय) सब प्रकार से सुना, जो (स्तोत्रियाः) स्तुति करने योग्य हैं, उनको (प्रत्याश्रावः) पीछे सुनाया जाता है और (अनुरूपः) अनुकूल जैसा यज्ञ है, वैसे (येयजामहाः) जो यज्ञ करते हैं (इति) इस प्रकार अर्थात् उन के समान (प्रगाथाः) जो अच्छे प्रकार गान किये जाते हैं, उनको (यजेति) सङ्गत कर, इस प्रकार (धाय्यारूपम्) धारण करने योग्य रूप को यथावत् जानें॥२४॥

    भावार्थ - जो परस्पर प्रीति से विद्या के विषयों को सुनते और सुनाते हैं, वे विद्वान् होते हैं॥२४॥

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