यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 80
ऋषिः - शङ्ख ऋषिः
देवता - सविता देवता
छन्दः - भुरिक् त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
2
सीसे॑न॒ तन्त्रं॒ मन॑सा मनी॒षिण॑ऽऊर्णासू॒त्रेण॑ क॒वयो॑ वयन्ति। अ॒श्विना॑ य॒ज्ञꣳ स॑वि॒ता सर॑स्व॒तीन्द्र॑स्य रू॒पं वरु॑णो भिष॒ज्यन्॥८०॥
स्वर सहित पद पाठसीसे॑न। तन्त्र॑म्। मन॑सा। म॒नी॒षिणः॑। ऊ॒र्णा॒सू॒त्रेणेत्यू॑र्णाऽसू॒त्रेण॑। क॒वयः॑। व॒य॒न्ति॒। अ॒श्विना॑। य॒ज्ञम्। स॒वि॒ता। सर॑स्वती। इन्द्र॑स्य। रू॒पम्। वरु॑णः। भि॒ष॒ज्यन् ॥८० ॥
स्वर रहित मन्त्र
सीसेन तन्त्रम्मनसा मनीषिणाऽऊर्णासूत्रेण कवयो वयन्ति । अश्विना यज्ञँ सविता सरस्वतीन्द्रस्य रूपँवरुणो भिषज्यन् ॥
स्वर रहित पद पाठ
सीसेन। तन्त्रम्। मनसा। मनीषिणः। ऊर्णासूत्रेणेत्यूर्णाऽसूत्रेण। कवयः। वयन्ति। अश्विना। यज्ञम्। सविता। सरस्वती। इन्द्रस्य। रूपम्। वरुणः। भिषज्यन्॥८०॥
विषय - विद्वानों के तुल्य अन्यों को भी आचरण करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ -
हे मनुष्यो! जैसे (कवयः) विद्वान् (मनीषिणः) बुद्धिमान् लोग (सीसेन) सीसे के पात्र के समान कोमल (ऊर्णासूत्रेण) ऊन के सूत्र से कम्बल के तुल्य प्रयोजनसाधक (मनसा) अन्तःकरण से (तन्त्रम्) कुटुम्ब के धारण के समान यन्त्रकलाओं को (वयन्ति) रचते हैं, जैसे (सविता) अनेक विद्या-व्यवहारों में प्रेरणा करनेहारा पुरुष और (सरस्वती) उत्तम विद्यायुक्त स्त्री तथा (अश्विना) विद्याओं में व्याप्त पढ़ाने और उपदेश करनेहारे दो पुरुष (यज्ञम्) संगति=मेल करने योग्य व्यवहार को करते हैं, जैसे (भिषज्यन्) चिकित्सा की इच्छा करता हुआ (वरुणः) श्रेष्ठ पुरुष (इन्द्रस्य) परम ऐश्वर्य के (रूपम्) स्वरूप का विधान करता है, वैसे तुम भी किया करो॥८०॥
भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे विद्वान् लोग अनेक धातु और साधन विशेषों से वस्त्रादि को बना के अपने कुटुम्ब का पालन करते हैं तथा पदार्थों के मेलरूप यज्ञ को कर पथ्य ओषधिरूप पदार्थों को देके रोगों से छुड़ाते और शिल्प-क्रियाओं से प्रयोजनों को सिद्ध करते हैं, वैसे अन्य लोग भी किया करें॥८०॥
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