यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 69
अधा॒ यथा॑ नः पि॒तरः॒ परा॑सः प्र॒त्नासो॑ऽअग्नऽऋ॒तमा॑शुषा॒णाः। शुचीद॑य॒न् दीधि॑तिमुक्थ॒शासः॒ क्षामा॑ भि॒न्दन्तो॑ऽअरु॒णीरप॑ व्रन्॥६९॥
स्वर सहित पद पाठअध॑। यथा॑। नः॒। पि॒तरः॑। परा॑सः। प्र॒त्नासः॑। अ॒ग्ने॒। ऋ॒तम्। आ॒शु॒षा॒णाः। शुचि॑। इत्। अ॒य॒न्। दीधि॑तिम्। उ॒क्थ॒शासः॑। उ॒क्थ॒शास॒ इत्यु॑क्थ॒ऽशसः॑। क्षामा॑। भि॒न्दन्तः॑। अ॒रु॒णीः। अप॑। व्र॒न् ॥६९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अधा यथा नः पितरः परासः प्रत्नासोऽअग्नऽऋतमाशुषाणाः । शुचीदयन्दीधितिमुक्थशासः क्षामा भिन्दन्तो अरुणीरप व्रन् ॥
स्वर रहित पद पाठ
अध। यथा। नः। पितरः। परासः। प्रत्नासः। अग्ने। ऋतम्। आशुषाणाः। शुचि। इत्। अयन्। दीधितिम्। उक्थशासः। उक्थशास इत्युक्थऽशसः। क्षामा। भिन्दन्तः। अरुणीः। अप। व्रन्॥६९॥
विषय - फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ -
हे (अग्ने) विद्वन्! (यथा) जैसे (नः) हमारे (परासः) उत्तम (प्रत्नासः) प्राचीन (उक्थशासः) उत्तम शिक्षा करनेहारे (शुचि) पवित्र (ऋतम्) सत्य को (आशुषाणाः) अच्छे प्रकार प्राप्त हुए (पितरः) पिता आदि ज्ञानी जन (दीधितिम्) विद्या के प्रकाश (अरुणीः) सुशीलता से प्रकाश वाली स्त्रियों और (क्षामा) निवासभूमि को (अयन्) प्राप्त होते हैं, (अध) इस के अनन्तर अविद्या का (भिन्दन्तः) विदारण करते हुए (इत्) ही अन्धकाररूप आवरणों को (अप, व्रन्) दूर करते हैं, उनका तू वैसे सेवन कर॥६९॥
भावार्थ - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो पिता आदि विद्या को प्राप्त कराके अविद्या का निवारण करते हैं, वे इस संसार में सब लोगों से सत्कार करने योग्य हों॥६९॥
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