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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 10
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - हिरण्यगर्भो देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    हि॒र॒ण्य॒ग॒र्भः सम॑वर्त्त॒ताग्रे॑ भू॒तस्य॑ जा॒तः पति॒रेक॑ऽआसीत्। स दा॑धार पृथि॒वीं द्यामु॒तेमां कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हि॒र॒ण्य॒ग॒र्भ इति॑ हिरण्यऽग॒र्भः। सम्। अ॒व॒र्त्त॒त॒। अग्रे॑। भू॒तस्य॑। जा॒तः। पतिः॑। एकः॑। आ॒सी॒त्। सः। दा॒धा॒र॒। पृ॒थि॒वीम्। द्याम्। उ॒त। इ॒माम्। कस्मै॑। दे॒वाय॑। ह॒विषा॑। वि॒धे॒म॒ ॥१० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेकऽआसीत् । स दाधार पृथिवीन्द्यामुतेमाङ्कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    हिरण्यगर्भ इति हिरण्यऽगर्भः। सम्। अवर्त्तत। अग्रे। भूतस्य। जातः। पतिः। एकः। आसीत्। सः। दाधार। पृथिवीम्। द्याम्। उत। इमाम्। कस्मै। देवाय। हविषा। विधेम॥१०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 10
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    भाषार्थ -
    हे मनुष्यो ! जैसे तुम--जो (हिरण्यगर्भः) हिरण्य=सूर्य आदि तेजोमय पदार्थ जिसके गर्भ में हैं, वह परमात्मा (जातः) प्रकट एवं (भूतस्य) उत्पन्न जगत् का (एक:) एक (अग्रे) भूमि आदि सृष्टि से पूर्व (पतिः) पालक (आसीत्) है, एवं सबका प्रकाशक (अवर्त्तत) विद्यमान था; (सः) वह (पृथिवीम्) आकर्षण से भूमि को (उत)और (द्याम्) प्रकाश को (दाधार) धारण कर रहा है। जिसने (इमाम्) इस सृष्टि को बनाया है उस (कस्मै) सुखकारक (देवाय) प्रकाशमान परमेश्वर के लिए (हविषा) होम योग्य पदार्थ से (विधेम) परिचर्या=सेवा करते हैं; वैसे तुम भी करो ॥१० ॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमा अलंकार है। हे मनुष्यो ! जिस परमेश्वर ने सूर्य आदि सब जगत् को बनाया और अपने सामर्थ्य से धारण किया है उसकी ही उपासना करो ॥ १० ॥

    भाष्यसार - परमात्मा कैसा है—जो परमात्मा सूर्य आदि तेजस्वी पदार्थों को अपने गर्भ में रखने वाला है, इस उत्पन्न जगत् का भूमि आदि की सृष्टि से पूर्व भी पति=पालक है, सब पदार्थों का प्रकाशक है, वही इस भूमि को तथा द्यौ=(प्रकाश) को आकर्षण शक्ति से धारण कर रहा है। जिस परमेश्वर ने इस सृष्टि अर्थात् सूर्य आदि सब जगत् को रचा है और अपने सामर्थ्य से धारण किया है उस सुखस्वरूप, प्रकाशमान परमेश्वर की सब मनुष्य होम के योग्य पदार्थों से सेवा करें; उसी कीउपासना करें। २. अलङ्कार– इस मन्त्र में उपमा-वाचक 'इव' आदि पद लुप्त है अतः वाचकलुप्तोपमा अलंकार है। उपमा यह है कि विद्वानों के समान सब मनुष्य सृष्टि कर्त्ता परमात्मा की उपासना करें ॥ २५ । १० ॥

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