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यजुर्वेद अध्याय - 12
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यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 67
ऋषिः - विश्वावसुर्ऋषिः
देवता - कृषीवलाः कवयो वा देवताः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
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सीरा॑ युञ्जन्ति क॒वयो॑ यु॒गा वित॑न्वते॒ पृथ॑क्। धीरा॑ दे॒वेषु॑ सुम्न॒या॥६७॥
स्वर सहित पद पाठसीरा॑। यु॒ञ्ज॒न्ति॒। क॒वयः॑। यु॒गा। वि। त॒न्व॒ते॒। पृथ॑क्। धीराः॑। दे॒वेषु॑। सु॒म्न॒येति॑ सुम्न॒ऽया ॥६७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सीरा युञ्जन्ति कवयो युगा वितन्वते पृथक् । धीरा देवेषु सूम्नया ॥
स्वर रहित पद पाठ
सीरा। युञ्जन्ति। कवयः। युगा। वि। तन्वते। पृथक्। धीराः। देवेषु। सुम्नयेति सुम्नऽया॥६७॥
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकर आहे. माणसांनी विद्वानांकडून शिक्षित होऊन कृषीची उन्नती करावी. जसे योगी समाधीयोगाच्या साह्याने परमेश्वराला प्राप्त करतात, तसेच कृषिकर्माद्वारे सुख प्राप्त करावे.
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