Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 9
    ऋषिः - वत्सप्रीर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृदार्षी स्वरः - षड्जः
    1

    पुन॑रू॒र्जा निव॑र्त्तस्व॒ पुन॑रग्नऽइ॒षायु॑षा। पुन॑र्नः पा॒ह्यꣳह॑सः॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पुनः॑। ऊ॒र्जा। नि। व॒र्त्त॒स्व॒। पुनः॑। अ॒ग्ने॒। इ॒षा। आयु॑षा। पुनः॑। नः॒। पा॒हि॒। अꣳह॑सः ॥९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुनरूर्जा निवर्तस्व पुनरग्नऽइषायुषा पुनर्नः पाह्यँहसः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पुनः। ऊर्जा। नि। वर्त्तस्व। पुनः। अग्ने। इषा। आयुषा। पुनः। नः। पाहि। अꣳहसः॥९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    भावार्थ - विद्वान लोकांनी उपदेश करून सर्वांना पापापासून सदैव परावृत्त करावे. सर्वांची शरीरे व आत्मे बलवान करावेत. स्वतःही पापांपासून दूर राहून अत्यंत पुरुषार्थी बनावे.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top