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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 5
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - निचृद् बृहती स्वरः - मध्यमः
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    शि॒ल्पा वै॑श्वदे॒व्यो रोहि॑ण्य॒स्त्र्यव॑यो वा॒चेऽवि॑ज्ञाता॒ऽअदि॑त्यै॒ सरू॑पा धा॒त्रे व॑त्सत॒र्यो दे॒वानां॒ पत्नी॑भ्यः॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शि॒ल्पाः। वै॒श्वदे॒व्य] इति॑ वैश्वऽदे॒व्यः᳕। रोहि॑ण्यः। त्र्यव॑य॒ इति॑ त्रिऽअव॑यः। वा॒चे। अवि॑ज्ञाता॒ इत्यवि॑ऽज्ञाताः। अदि॑त्यै। सरू॑पा॒ इति॑ सऽरू॑पाः। धा॒त्रे। व॒त्स॒त॒र्यः᳖। दे॒वाना॑म्। पत्नी॑भ्यः ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शिल्पा वैश्वदेव्यो रोहिण्यस्त्र्यवयो वाचेविज्ञाताऽअदित्यै सरूपा धात्रे वत्सतर्या देवानाम्पत्नीभ्यः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    शिल्पाः। वैश्वदेव्य] इति वैश्वऽदेव्यः। रोहिण्यः। त्र्यवय इति त्रिऽअवयः। वाचे। अविज्ञाता इत्यविऽज्ञाताः। अदित्यै। सरूपा इति सऽरूपाः। धात्रे। वत्सतर्यः। देवानाम्। पत्नीभ्यः॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 5
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! (শিল্পাঃ) যাহা সুন্দর রূপবান্ এবং শিল্পকার্যের সিদ্ধকারিকা (বৈশ্যদৈব্যঃ) বিশ্বদেব দেবতাযুক্ত (বাচে) বাণীর জন্য (রোহিণ্যঃ) নিম্ন হইতে উপরে আরোহণ করিবার যোগ্য, (ত্র্যবয়ঃ) যাহা তিন প্রকার মেষ (অদিত্যৈ) পৃথিবী হেতু (অবিজ্ঞাতাঃ) অবিজ্ঞাত মেষাদি (ধাত্রে) ধারণ করিবার জন্য (সরূপাঃ) এক সমান রূপসম্পন্না তথা (দেবানাম্) দিব্যগুণযুক্ত বিদ্বান্দিগের (পত্নীভ্যঃ) পত্নীদিগের জন্য (বৎসতর্য়্যঃ) অতীব অল্পবয়স্ক বৎস জানা উচিত ॥ ৫ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–যে সমস্ত বিদ্বান্ শিল্পবিদ্যা দ্বারা বহু যানাদি নির্মিত করিবেন এবং পশুদের পালন করিয়া তাহা হইতে উপকার লইবেন তাহারা ধনবান হইবে ॥ ৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - শি॒ল্পা বৈ॑শ্বদে॒ব্যো᳕ রোহি॑ণ্য॒স্ত্র্যব॑য়ো বা॒চেऽবি॑জ্ঞাতা॒ऽঅদি॑ত্যৈ॒ সরূ॑পা ধা॒ত্রে ব॑ৎসত॒র্য়ো᳖ দে॒বানাং॒ পত্নী॑ভ্যঃ ॥ ৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - শিল্পা ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । নিচৃদ্বৃহতী ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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