Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 45
    ऋषिः - सरस्वत्यृषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - स्वराडतिजगती स्वरः - निषादः
    0

    दे॒वोऽअ॒ग्निः स्वि॑ष्ट॒कृद् दे॒वमिन्द्रं॑ वयो॒धसं॑ दे॒वो दे॒वम॑वर्धयत्।अति॑छन्दसा॒ छन्द॑सेन्द्रि॒यं क्ष॒त्रमिन्द्रे॒ वयो॒ दध॑द् वसु॒धेय॑स्य वसु॒वने॑ वेतु॒ यज॑॥४५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वः। अ॒ग्निः। स्वि॒ष्ट॒कृदिति॑ स्विष्ट॒ऽकृत्। दे॒वम्। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। दे॒वः। दे॒वम्। अ॒व॒र्ध॒य॒त्। अति॑छन्द॒सेत्यति॑ऽछन्दसा। छन्द॑सा। इ॒न्द्रि॒यम्। क्ष॒त्रम्। इन्द्रे॑। वयः॑। दध॑त्। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। वे॒तु॒। यज॑ ॥४५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवोऽअग्निः स्विष्टकृद्देवमिन्द्रँवयोधसन्देवो देवमवर्धयत् । अतिच्छन्दसा च्छन्दसेन्द्रियङ्क्षत्रमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवः। अग्निः। स्विष्टकृदिति स्विष्टऽकृत्। देवम्। इन्द्रम्। वयोधसमिति वयःऽधसम्। देवः। देवम्। अवर्धयत्। अतिछन्दसेत्यतिऽछन्दसा। छन्दसा। इन्द्रियम्। क्षत्रम्। इन्द्रे। वयः। दधत्। वसुधेयस्येति वसुऽधेयस्य। वसुवन इति वसुऽवने। वेतु। यज॥४५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 45
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে বিদ্বন্ ! যেমন (স্বিষ্টকৃৎ) সুন্দর অভীষ্টকে সিদ্ধিকারী (দেবঃ) সর্বজ্ঞ (অগ্নিঃ) স্বয়ং প্রকাশস্বরূপ ঈশ্বর (বয়োধসম্) আয়ুর ধারক (দেবম্) ধার্মিক (ইন্দ্রম্) জীবকে যেমন (দেবঃ) বিদ্বান্ (দেবম্) বিদ্যার্থীকে সেইরূপ (অবধর্য়ৎ) বৃদ্ধি করায় (অতিছন্দসা, ছন্দসা) অতিজগতী আদি আনন্দকারক ছন্দ দ্বারা (ইন্দ্রে) বিদ্যা বিনয় দ্বারা যুক্ত রাজার নিমিত্ত (বসুধেয়স্য) ধনকোষের (বসুবনে) ধনের দাতার জন্য (বয়ঃ) মনোহর বস্তু (ক্ষত্রম্) রাজ্য ও (ইন্দ্রিয়ম্) জীবন দ্বারা সেবিত ইন্দ্রিয়কে (দধৎ) ধারণ করিয়া (বেতু) ব্যাপ্ত হইবে সেইরূপ (য়জ) যজ্ঞাদি উত্তম কর্ম করুন ॥ ৪৫ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে বিদ্বান্ মনুষ্যগণ ! যেমন পরমেশ্বর স্বীয় দয়া দ্বারা সকল পদার্থগুলি উৎপন্ন করিয়া এবং জীবদিগের জন্য সমর্পণ করিয়া জগতের বৃদ্ধি করিয়াছেন সেইরূপ বিদ্যা, বিনয়, সৎসঙ্গ, পুরুষকার ও ধর্মের অনুষ্ঠান দ্বারা রাজ্যকে বৃদ্ধি করাও ॥ ৪৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - দে॒বোऽঅ॒গ্নিঃ স্বি॑ষ্ট॒কৃদ্ দে॒বমিন্দ্রং॑ বয়ো॒ধসং॑ দে॒বো দে॒বম॑বর্ধয়ৎ । অতি॑ছন্দসা॒ ছন্দ॑সেন্দ্রি॒য়ং ক্ষ॒ত্রমিন্দ্রে॒ বয়ো॒ দধ॑দ্ বসু॒ধেয়॑স্য বসু॒বনে॑ বেতু॒ য়জ॑ ॥ ৪৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - দেব ইত্যস্য সরস্বতৃ্যষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । স্বরাডতিজগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top