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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 20
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - जगती स्वरः - निषादः
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    पृष॑दश्वा म॒रुतः॒ पृश्नि॑मातरः शुभं॒ यावा॑नो वि॒दथे॑षु जग्म॑यः।अ॒ग्नि॒जि॒ह्वा मन॑वः॒ सूर॑चक्षसो॒ विश्वे॑ नो दे॒वाऽअव॒साग॑मन्नि॒ह॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पृष॑दश्वा॒ इति॒ पृष॑त्ऽअश्वाः। म॒रुतः॑। पृश्नि॑मातर॒ इति॒ पृश्नि॑ऽमातरः। शु॒भं॒यावा॑न॒ इति॑ शुभ॒म्ऽयावा॑नः। वि॒दथे॑षु जग्म॑यः अ॒ग्नि॒जि॒ह्वा इत्य॑ग्निऽजिह्वाः। मन॑वः। सूर॑चक्षस॒ इति॒ सूर॑ऽचक्षसः। विश्वे॑। नः॒। दे॒वाः। अव॑सा। आ। अ॒ग॒म॒न्। इ॒ह ॥२० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभँयावानो विदथेषु जग्मयः । अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवाऽअवसा गमन्निह ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पृषदश्वा इति पृषत्ऽअश्वाः। मरुतः। पृश्निमातर इति पृश्निऽमातरः। शुभंयावान इति शुभम्ऽयावानः। विदथेषु जग्मयः अग्निजिह्वा इत्यग्निऽजिह्वाः। मनवः। सूरचक्षस इति सूरऽचक्षसः। विश्वे। नः। देवाः। अवसा। आ। अगमन्। इह॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 20
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    पदार्थ -
    १. 'गतमन्त्र के अनुसार हमारी स्थिति कल्याणमयी हो', इसी दृष्टिकोण से हम प्रस्तुत मन्त्र में चाहते हैं कि (विश्वेदेवाः) = सब देव-दिव्य वृत्तिवाले विद्वान् लोग (अवसा) = अन्न के हेतु से, अर्थात् हमारा आतिथ्य स्वीकार करने के हेतु से यहाँ (नः) = हमें (आगमन्) = प्राप्त हों । उन देवों के समय-समय पर घरों में आते रहने से घर का वातावरण सुन्दर बना रहता है। २. ये देव कैसे हैं? क. (पृषदश्वाः) = [पृषु सेचने, पुष्ट्यादिना संसिक्ताङ्ग :- द० ] - इनके अङ्ग-प्रत्यङ्ग पुष्टि से संसिक्त हैं। इनका जीवन भोगमय न होने से इनके सब अङ्ग सुगठित हैं। [क] (मरुतः) = [प्राणाः] ये प्राणशक्ति के पुञ्ज हैं। [ख] (पृश्निमातरः) = [पृश्नि=a ray of light] प्रकाश की किरणों का निर्माण करनेवाले हैं। इनके मस्तिष्क ज्ञान-किरणों से दीप्त हैं। [ग] (शुभंयावान:) = शुभमार्ग पर चलनेवाले हैं, अतएव कल्याण को प्राप्त करने व करानेवाले हैं [घ] (विदथेषु) = ज्ञानयज्ञों में (जग्मयः) = सदा जानेवाले हैं। [ङ] (अग्निजिह्वा:) = [अग्निरिव सुप्रकाशितवाणी येषां - द०] अग्नि के समान प्रकाशमय वाणीवाले अथवा जिनके मुख से निकले हुए शब्द प्रगति का साधन हैं, उत्साह का वर्धन करनेवाले हैं, मृत आन्दोलन में फिर से गर्मी ला देनेवाले हैं। [च] (मनव:) = जो बड़े मननशील हैं, विद्वान् व समझ से चलनेवाले हैं। [छ] (सूरचक्षस:) = सूर्य के समान दृष्टिवाले हैं। जिनकी दृष्टि अज्ञानान्धकार को उसी प्रकार नष्ट करनेवाली है जैसे सूर्य रात्रि के अन्धकार को । ३. इस प्रकार के विद्वान् हमारे घरों पर समय-समय पर आते रहेंगे तो उनकी ज्ञान की वाणियाँ हमारे जीवनों को परिशुद्ध बनानेवाली होंगी, अतः प्रभुकृपा से इन देवों का हमारे घरों पर आना होता ही रहे।

    भावार्थ - भावार्थ- प्रभुकृपा से हमें देवों के आतिथ्य करने का सौभाग्य प्राप्त होता रहे, जिससे हमारे जीवनों में ज्ञान व उत्साह का सञ्चार सदा अविच्छिन्न रूप से हो सके।

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