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  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 31
    ऋषिः - सरस्वत्यृषिः देवता - वाण्यो देवताः छन्दः - भुरिक् शक्वरी स्वरः - धैवतः
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    होता॑ यक्ष॒त् पेश॑स्वतीस्ति॒स्रो दे॒वीर्हि॑र॒ण्ययी॒र्भार॑तीर्बृह॒तीर्म॒हीः पति॒मिन्द्रं॑ वयो॒धस॑म्। वि॒राजं॒ छन्द॑ऽइ॒हेन्द्रि॒यं धे॒नुं गां न वयो॒ दध॒द् व्यन्त्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥३१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। पेश॑स्वतीः। ति॒स्रः। दे॒वीः। हि॒र॒ण्ययीः॑। भार॑तीः। बृह॒तीः। म॒हीः। पति॑म्। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। वि॒राज॒मिति॑ वि॒ऽराज॑म्। छन्दः॑। इ॒ह। इ॒न्द्रि॒यम्। धे॒नुम्। गाम्। न। वयः॑। दध॑त्। व्यन्तु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥३१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षत्पेशस्वतीस्तिस्रो देवीर्हिरण्ययीर्भारतीर्बृहतीर्महीः पतिमिन्द्रँवयोधसम् । विराजञ्छन्दऽइहेन्द्रियन्धेनुङ्गान्न वयो दधद्व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। पेशस्वतीः। तिस्रः। देवीः। हिरण्ययीः। भारतीः। बृहतीः। महीः। पतिम्। इन्द्रम्। वयोधसमिति वयःऽधसम्। विराजमिति विऽराजम्। छन्दः। इह। इन्द्रियम्। धेनुम्। गाम्। न। वयः। दधत्। व्यन्तु। आज्यस्य। होतः। यज॥३१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 31
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    पदार्थ -
    १. (होता) = दानपूर्वक अदन करनेवाला (तिस्रो देवी: भारती:) = भारती, सरस्वती व इडा नामक तीन देवियों को (यक्षत्) = अपने साथ संगत करता है जो देवियाँ - [क] (पेशस्वती:) = उत्तम रूपवाली हैं, जिनकी स्थिति से मनुष्य का स्वरूप बड़ा उत्तम प्रतीत होता है, [ख] (हिरण्ययी:) = जो अत्यन्त ज्योतिर्मय हैं, इनमें से एक मस्तिष्क को दीप्त करती है [भारती] तो दूसरी मन को [सरस्वती] तथा तीसरी शरीर को ठीक रखती है [ इड़ा], [ग] (बृहती:) = ये उसका वर्धन करनेवाली हैं और (मही:) = उसको महत्त्व प्राप्त कराती हैं। २. यह होता इन देवियों के सम्पर्क के द्वारा उस प्रभु को अपने साथ संगत करता है जो [क] (पतिम्) = हम सबके स्वामी व रक्षक हैं [ख] (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यशाली हैं, और [ग] (वयोधसम्) = उत्कृष्ट जीवन को धारण करानेवाले हैं। ३. (विराजं छन्द:) = 'मैं इस जीवन में खूब देदीप्यामान होऊँ [राज् दीप्तौ, अथवा राज् To regulate] अथवा जीवन को बड़ा व्यवस्थित करूँ', इस इच्छा को, (इह) = इस जीवन में (इन्द्रियम्) = प्रत्येक इन्द्रिय के सामथर्य को (धेनुम् गाम्) = ज्ञानदुग्ध के द्वारा वर्धन करनेवाली वेदवाणी को, (न) = और (वयः) = उत्कृष्ट जीवन को दधत् ' धारण करता हुआ यह होता बने' इसके लिए (आज्यस्य व्यन्तु) = ये तीनों देवियाँ शक्ति का पान करें, अर्थात् इनके द्वारा शक्ति का शरीर में ही व्यय हों। अंग-प्रत्यंग में व्याप्त होकर यह शक्ति उसे सुन्दर रूप दे। ४. हे (होतः) = दानपूर्वक अदन करनेवाले ! तू (यज) = यज्ञशील बन और उस प्रभु से अपना मेल बना।

    भावार्थ - भावार्थ- होता का जीवन 'भारती, सरस्वती व इडा' के कारण बड़ा सुन्दर हो जाता है। ये देवियाँ उसके जीवन को ज्योतिर्मय बना देती हैं।

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