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  • यजुर्वेद - अध्याय 1/ मन्त्र 6
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - आर्ची पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    कस्त्वा॑ युनक्ति॒ स त्वा॑ युनक्ति॒ कस्मै॑ त्वा युनक्ति॒ तस्मै॑ त्वा युनक्ति। कर्म॑णे वां॒ वेषा॑य वाम्॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः। त्वा॒। यु॒न॒क्ति॒। सः। त्वा॒। यु॒न॒क्ति॒। कस्मै॑। त्वा॒। यु॒न॒क्ति॒। तस्मै॑। त्वा॒। यु॒न॒क्ति॒। कर्म्म॑णे। वां॒। वेषा॑य। वा॒म् ॥६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कस्त्वा युनक्ति स त्वा युनक्ति कस्मै त्वा युनक्ति तस्मै त्वा युनक्ति । कर्मणे वाँवेषाय वाम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    कः। त्वा। युनक्ति। सः। त्वा। युनक्ति। कस्मै। त्वा। युनक्ति। तस्मै। त्वा। युनक्ति। कर्म्मणे। वां। वेषाय। वाम्॥६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 1; मन्त्र » 6
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    भावार्थ -

    [ प्रश्न ] हे पुरुष ! तू जानता है कि ( त्वा ) तुझको कार्यों में ( कः ) कौन ( युनक्ति ) प्रेरित करता है ? [उत्तर ] हे पुरुष ! (त्वा ) तुझको (सः) वह परमेश्वर ही ( युनक्ति ) उत्तम कार्य और सन्मार्ग में प्रेरित करता है । [ प्र० ] ( त्वा ) तुझ को वह परमेश्वर ( करमै ) किस  प्रयोजन के लिये ( युनक्ति ) नियुक्त करता है ? [ उ० ] ( त्वा ] (त्वा) तुझ को वह परमेश्वर (तस्मै ) उस उस , उत्तम २ कार्य सम्पादन के लिये ( युनक्ति )नियुक्त करता है ।हेस्त्रीपुरुषो!   और गुरुशिष्यो ! वह परमेश्वर (वाम ) तुम दोनों को ( कर्मणे ) उत्तम कर्म करने के लिये प्रेरित करता है । और वह ( वाम् ) तुम दोनों को ( वेषाय ) सर्वशुभगुणों के प्राप्त करने और पूर्ण जीवन प्राप्त करने के लिये या सर्व व्यापक परमात्मा को प्राप्त करने के लिये ( युनक्ति ) नियुक्त करता है । शत० १ । १ । १ । ११-२२ ।। १ । १ । २ । १ ॥ 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    स्रुक् शूर्पश्च् प्रजापतिर्वा देवता । आर्ची पंक्ति: ! पंचमः स्वरः ॥

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