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  • यजुर्वेद - अध्याय 7/ मन्त्र 28
    ऋषिः - देवश्रवा ऋषिः देवता - यज्ञपतिर्देवता देवता छन्दः - ब्राह्मी बृहती, स्वरः - मध्यमः
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    आ॒त्मने॑ मे वर्चो॒दा वर्च॑से पव॒स्वौज॑से मे वर्चो॒दा वर्च॑से पव॒स्वायु॑षे मे वर्चो॒दा वर्च॑से पवस्व॒ विश्वा॑भ्यो मे प्र॒जाभ्यो॑ वर्चो॒दसौ॒ वर्च॑से पवेथाम्॥२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒त्मने॑। मे॒। व॒र्चो॒दा इति॑ वर्चः॒ऽदाः। वर्च॑से। प॒व॒स्व॒। ओज॑से। मे॒। व॒र्चो॒दा इति॑ वर्चः॒ऽदाः। वर्च॑से। प॒व॒स्व॒। आयु॑षे। मे॒। व॒र्चो॒दा इति॑ वर्चः॒ऽदाः। वर्च॑से। प॒व॒स्व॒। विश्वा॑भ्यः। मे॒। प्र॒जाभ्य॒ इति॑ प्र॒ऽजाभ्यः॑। व॒र्चो॒दसा॒विति॑ वर्चः॒ऽदसौ॑। वर्च॑से। प॒वे॒था॒म् ॥२८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आत्मने मे वर्चादा वर्चसे पवस्वौजसे मे वर्चादा वर्चसे पवस्वायुषे मे वर्चादा वर्चसे पवस्व विश्वाभ्यो मे प्रजाभ्यो वर्चादसौ वर्चसे पवेथाम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आत्मने। मे। वर्चोदा इति वर्चःऽदाः। वर्चसे। पवस्व। ओजसे। मे। वर्चोदा इति वर्चःऽदाः। वर्चसे। पवस्व। आयुषे। मे। वर्चोदा इति वर्चःऽदाः। वर्चसे। पवस्व। विश्वाभ्यः। मे। प्रजाभ्य इति प्रऽजाभ्यः। वर्चोदसाविति वर्चःऽदसौ। वर्चसे। पवेथाम्॥२८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 7; मन्त्र » 28
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    भावार्थ -

    हे (वर्चोदाः ) तेज बल देने हारे 'आग्रयण' पद के अधिकारी पुरुष ! तू ( मे आत्मने वर्चसे पवस्व ) तू मेरे आत्मा या देह के समान राष्ट्र या राजा के बल की वृद्धि के लिये उद्योग कर । हे ( वर्चोदाः ) तेज देने वाले उक्थ्य पद के अधिकारी पुरुष ! ( ओजसे मे वर्चसे पवस्व ) मेरे शरीर में ओजस् के समान राष्ट्र के ओजस्, पराक्रम, वीर्य के बढ़ाने के लिये तू उद्योग कर। हे (वर्चोदाः ) तेज के बढ़ाने वाले ध्रुव पद के अधिकारी पुरुष ! तू ( आयुषे मे वर्चसे पवस्व ) मेरे शरीर में आयु के समान राष्ट्र के दीर्घ जीवन की वृद्धि के लिये उद्योग कर। हे (वर्चोदाः ) तेज के बढ़ाने वाले पूतभृत् और आहवनीय पद के अधिकारी पुरुषो ! आप दोनों ( मे विश्वाभ्यः प्रजाभ्यः वर्चसे पवेथाम् ) मेरी समस्त प्रजाओं के तेज बल बढ़ाने का उद्योग करो । 
    शरीर में जितने प्राण कार्य करते हैं तदनुरूप राष्ट्र में अधिकारियों को स्थापित करने का वर्णन मन्त्र ३ से २६ तक किया गया है। जिसका तुलनात्मक सार नीचे देते हैं । 

    शरीरगत प्राण         राष्ट्रगत पद नाम                मन्त्र संख्या 
    १ प्राण ...                 उपांशु सवन                देखो मन्त्र ३, ४, ५,
    २ व्यान ...                     ,,          .........    
    ३ उदान...               अन्तर्याम               ६, ७, 
    ४ वाक् ...               इन्द्रवायु         ८,
    ५ क्रतु दक्ष              मित्रावरुण        ९, १०,
    ६ श्रोत्र ...               आश्विन            ११,    
    ७ चक्षुः ...         शुक्रामन्थिन्         १२,१३,१४,१५,१६,१७,१८,    
    ८ आत्मा            आग्रयण        १९,२०,२१,        
    ९ ओजस             उक्थ्य            २२,२३,
    १० आयुष्                ध्रुव                         २४,२५,
    ११ प्रजा....           पूतभृत्-आहवनीय         २६,

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    यज्ञपतिर्देवता।आसुर्यनुष्टुभौ । गान्धारः । 

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