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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 15
    ऋषिः - दधिक्रावा ऋषिः देवता - बृहस्पतिर्देवता छन्दः - जगती, स्वरः - निषादः
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    उ॒त स्मा॑स्य॒ द्रव॑तस्तुरण्य॒तः प॒र्णं॑ न वेरेनु॑वाति प्रग॒र्धिनः॑। श्ये॒नस्ये॑व॒ ध्रज॑तोऽअङ्क॒सं परि॑ दधि॒क्राव्णः॑ स॒होर्जा तरि॑त्रतः॒ स्वाहा॑॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त। स्म॒। अ॒स्य॒। द्रव॑तः। तु॒र॒ण्य॒तः। प॒र्णम्। न। वेः। अनु॑। वा॒ति॒। प्र॒ग॒र्धिन॒ इति॑ प्रऽग॒र्धिनः॑। श्ये॒नस्ये॒वेति॑ श्ये॒नस्य॑ऽइव। ध्रज॑तः। अ॒ङ्क॒सम्। परि॑। द॒धि॒क्राव्ण॒ इति॑ दधि॒ऽक्राव्णः॑। स॒ह। ऊ॒र्जा। तरित्र॑तः स्वाहा॑ ॥१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत स्मास्य द्रुवतस्तुरणयतः पर्णन्न वेरनुवाति प्रगर्धिनः । श्येनस्येव ध्रजतो अङ्कसम्परि दधिक्राव्णः सहोर्जा तरित्रः स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत। स्म। अस्य। द्रवतः। तुरण्यतः। पर्णम्। न। वेः। अनु। वाति। प्रगर्धिन इति प्रऽगर्धिनः। श्येनस्येवेति श्येनस्यऽइव। ध्रजतः। अङ्कसम्। परि। दधिक्राव्ण इति दधिऽक्राव्णः। सह। ऊर्जा। तरित्रतः स्वाहा॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 15
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    भावार्थ -

     ( उत ) और ( अस्त्र एव ) इसके ही ( दवत: ) भागते हुए और ( तुरण्यतः ) वेग से जाते हुए ( प्रगधिनः ) प्रबल वेग से अगले मार्ग को पहुंचने की अभिलाषा करनेवाले ( ऊर्जा सह ) पराक्रम के साथ ( परि तरित्रतः ) बड़े वेग से भागते हुए ( दधिक्रावृणः ) मार्ग की समस्त बाधाओं को लांघते हुए अश्व को ( अक्ङसम् ) ध्वज, चामर आदि चिह्न ( वेः पर्ण न ) वेग से जाते हुए पक्षी या तीर के पंखों के समान और ( प्रगर्धिनः ) मांस या शिकार के अभिलाषी, ( ध्रजतः ) वेग से झपटते हुए ( श्येनस्य इव ) सेन के पंखों के समान ( अनुवीति ) उसके पीछे ही बेग से जाता है । शत० ५ । १ । ५। २० ॥ 
    अथवा -- ( अङ्कसं परित्रतः ) चिह्नों से युक्त मार्ग पर दौड़ते हुए अश्व का ( पर्णम् ) पालनकारी पूंछ और वस्त्रादि शिकार पर झपटते 
    हुए बाज के पंखों के समान पीछे को होजाते हैं। इस स्थल में 'पर्णम्' शब्द दीपकालंकार से है । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    दधिक्रावा ऋषिः । दधि क्रावा अश्वो देवता । जगती । निषादः ॥ 
     

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