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  • यजुर्वेद - अध्याय 31/ मन्त्र 20
    ऋषिः - उत्तरनारायण ऋषिः देवता - सूर्य्यो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    यो दे॒वेभ्य॑ऽआ॒तप॑ति॒ यो दे॒वानां॑ पु॒रोहि॑तः।पूर्वो॒ यो दे॒वेभ्यो॑ जा॒तो नमो॑ रु॒चाय॒ ब्राह्म॑ये॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः। दे॒वेभ्यः॑। आ॒तप॒तीत्या॒ऽतप॑ति। यः। दे॒वाना॑म्। पु॒रोहि॑त॒ इति॑ पु॒रःऽहि॑तः ॥ पूर्वः॑। यः। दे॒वेभ्यः॑। जा॒तः। नमः॑। रु॒चाय॑। ब्राह्म॑ये ॥२० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो देवेभ्यऽआतपति यो देवानाम्पुरोहितः । पूर्वो यो देवेभ्यो जातो नमो रुचाय ब्राह्मये ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यः। देवेभ्यः। आतपतीत्याऽतपति। यः। देवानाम्। पुरोहित इति पुरःऽहितः॥ पूर्वः। यः। देवेभ्यः। जातः। नमः। रुचाय। ब्राह्मये॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 31; मन्त्र » 20
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    পদার্থ -

    যো দেবেভ্যঽআতপতি যো দেবানাং পুরোহিতঃ।

    পূর্বো যো দেবেভ্যো জাতো নমো রুচায় ব্রাহ্ময়ে।।৮১।।

    (যজু ৩১।২০)

    পদার্থঃ (যঃ) যে (দেবেভ্যঃ) দিব্যগুণসম্পন্ন পরমেশ্বর (আতপতি) সকলকে আলোকিত করেন (যঃ) যিনি (দেবানাম্) দিব্য শক্তিরও (পুরঃ হিতঃ) আদি থেকেই বিদ্যমান (যঃ) যিনি (দেবেভ্যঃ) তেজোময় সূর্য নক্ষত্রাদিরও (পূর্বঃ) পূর্ব হতে (জাতঃ) বর্তমান সেই (রুচায়) ব্রহ্মজ্যোতিধারী কান্তিময় (ব্রাহ্ময়ে) পরমাত্মাকে (নমঃ) বারবার  নমস্কার।

     

    ভাবার্থ -

    ভাবার্থঃ সূর্য যেমন ভোরে সকলের অগ্রে দেখা দিয়ে জগতকে আলোকিত করে; সূর্য সহ সকল নক্ষত্রের আলোকের উৎস পরমাত্মা সেই সূর্য, নক্ষত্রাদিরও বহু পূর্ব হতেই বিদ্যমান। সেই ব্রহ্মজ্যোতিধারী কান্তিময় পরমাত্মাকে বারবার নমস্কার।। ৮১।। 

     

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