ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 91/ मन्त्र 6
त्वं च॑ सोम नो॒ वशो॑ जी॒वातुं॒ न म॑रामहे। प्रि॒यस्तो॑त्रो॒ वन॒स्पति॑: ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । च॒ । सो॒म॒ । नः॒ । वशः॑ । जी॒वातु॑म् । न । म॒रा॒म॒हे॒ । प्रि॒यऽस्तो॑त्रः । वन॒स्पतिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं च सोम नो वशो जीवातुं न मरामहे। प्रियस्तोत्रो वनस्पति: ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्। च। सोम। नः। वशः। जीवातुम्। न। मरामहे। प्रियऽस्तोत्रः। वनस्पतिः ॥ १.९१.६
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 91; मन्त्र » 6
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
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अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।
अन्वयः
हे सोम यतस्त्वमयं च नोऽस्माकं जीवातुं वशः प्रियस्तोत्रो वनस्पतिर्भवसि भवति वा तदेतद् द्वयं विज्ञाय वयं सद्यो न मरामहे ॥ ६ ॥
पदार्थः
(त्वम्) (च) समुच्चये (सोम) सत्कर्मसु प्रेरक प्रेरको वा (नः) अस्माकम् (वशः) वशित्वगुणप्रापकः (जीवातुम्) जीवनम् (न) निषेधार्थे (मरामहे) अकालमृत्युं क्षणभङ्गदेहे प्राप्नुयाम। अत्र विकरणव्यत्ययः। (प्रियस्तोत्रः) प्रियं प्रति प्रियकारि स्तोत्रं गुणस्तवनं यस्य सः (वनस्पतिः) संभक्तस्य पदार्थसमूहस्य जङ्गलस्य वा पालकः श्रेष्ठतमो वा ॥ ६ ॥
भावार्थः
अत्र श्लेषालङ्कारः। ये मनुष्या ईश्वराज्ञापालिनो विदुषामोषधीनां च सेविनः सन्ति ते पूर्णमायुः प्राप्नुवन्ति ॥ ६ ॥
हिन्दी (5)
विषय
फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।
पदार्थ
हे (सोम) श्रेष्ठ कामों में प्रेरणा देनेहारे परमेश्वर ! वा श्रेष्ठ कामों में प्रेरणा देता जो (त्वम्) सो यह (च) और आप (नः) हमलोगों के (जीवातुम्) जीवन को (वशः) वश होने के गुणों का प्रकाश करने वा (प्रियस्तोत्रः) जिनके गुणों का कथन प्रेम करने-करानेवाला है वा (वनस्पतिः) सेवनीय पदार्थों की पालना करनेहारे वा यह सोम जङ्गली ओषधियों में अत्यन्त श्रेष्ठ है, इस व्यवस्था से इन दोनों को जानकर हम लोग शीघ्र (न) (मरामहे) अकाल मृत्यु और अनायास मृत्यु न पावें ॥ ६ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जो मनुष्य ईश्वर की आज्ञा पालनेहारे विद्वानों और ओषधियों का सेवन करते हैं, वे पूरी आयु पाते हैं ॥ ६ ॥
पदार्थ
पदार्थ = हे ( सोम ) = सत्कर्मों में प्रेरक प्रभो! आप ( नः ) = हमारे ( जीवातुम् ) = जीवन की ( वश: ) = कामना करनेवाले ( प्रियस्तोत्र: ) = और जिन के गुणों का कथन प्रेम उत्पन्न करनेवाला है ऐसे ( वनस्पतिः ) = आप अपने भक्तों की और सेवनीय पदार्थों की पालना करनेवाले हैं। आपको जान कर ( न मरामहे ) = हम मृत्यु को प्राप्त नहीं होते, किन्तु मोक्षरूप अमर अवस्था को प्राप्त होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ = जो मनुष्य परमेश्वर की भक्ति करते हैं और उसकी वैदिक आंज्ञा के अनुसार अपना जीवन बनाते हुए उसके नियमानुकूल चलते हैं, वे पूरी आयु पाते हैं और इस भौतिक देह को त्याग कर मुक्तिधाम को प्राप्त होते हैं ।
विषय
प्रभुरक्षा में मृत्यु कहाँ ?
पदार्थ
१. हे (सोम) = शान्त प्रभो ! (त्वम्) = आप (नः) = हमारे (जीवातुम्) = जीवन को (वशः) = चाहते हो (च) = और हम भी उस जीवन को चाहते हुए उसके लिए यत्नशील होते हैं तो (न मरामहे) = हम असमय में मरते नहीं । यहाँ 'त्वं च', 'और आप भी' - ये शब्द बड़े महत्त्वपूर्ण हैं । हम तो चाहें ही और हमारी वह इच्छा पुरुषार्थ के रूप में प्रकट हो । तब प्रभुकृपा होने पर हमारी मृत्यु नहीं होती । २. आप (प्रियस्तोत्रः) = "प्रिय हैं स्तोत्र जिनके ' - ऐसे हैं । आपके स्तोत्रों के उच्चारण से प्रीति का अनुभव होता है । (वनस्पतिः) = आप हमारे सौन्दर्यों के रक्षक हैं [loveliness] । आप ही यश [glory] व धन [wealth] के साथी हैं । आपका स्तवन करता हुआ मैं सौन्दर्य, यश व धन प्राप्त करता है ।
भावार्थ
भावार्थ = हम दीर्घजीवन के लिए यत्नशील हों । प्रभु का स्तवन करते हुए प्रभु की कृपा के पात्र बनें तो असमय की मृत्यु से बचकर हम सौन्दर्य, यश व धनसम्पन्न जीवन बितानेवाले होते हैं ।
विषय
अकाल मृत्यु
शब्दार्थ
(सोम) हे श्रेष्ठ कर्मों की प्रेरणा देनेवाले परमेश्वर ! (त्वं च) आप (न:) हम लोगों के (जीवातुम्) जीवन को (वशः) वश में रखनेवाले, स्थिर रखनेवाले और प्रकाशित करनेवाले हो । आप (प्रिय स्तोत्रः) प्रियस्तोत्र हैं, आपके स्तुति-वचन सुनकर हृदय में प्रेम उत्पन्न होता है । (वनस्पति:) सेवनीय पदार्थो के रक्षक हैं अतः आपकी कृपा से (न मरामहे) हम अकाल मृत्यु और अनायास मृत्यु न पाएँ ।
भावार्थ
१. परमात्मा मनुष्यों के जीवन को वश में रखनेवाला और प्रकाशित करनेवाला है । २. परमेश्वर प्रियस्तोत्र है क्योंकि उसके स्तुति-वचन सुनकर हृदय में आनन्द उत्पन्न होता है । ३. परमेश्वर अपनी महान् शक्ति से मनुष्यों द्वारा सेवनीय पदार्थों की रक्षा करता है । ४. प्रभु की कृपा से हम अकाल मृत्यु के वश में न जाएँ । ‘न मरामहे’ का अर्थ करते हुए हमने महर्षि दयानन्द के शब्दों को ही रख दिया है । इस मन्त्र और इसके महर्षि भाष्य से यह सिद्ध होता कि स्वामी जी अकाल मृत्यु को मानते थे ।
विषय
पक्षान्तर में उत्पादक परमेश्वर और विद्वान् का वर्णन ।
भावार्थ
हे (सोम) राजन् ! और परमेश्वर ! ( त्वं च ) और आप ( नः ) हमारे ( जीवातुम् ) जीवन को ( वशः ) वश या स्थिर करने वाले और उसके चाहने वाले हो तब हम ( न मरामहे ) मृत्यु को प्राप्त न हों ! तू ( वनस्पतिः ) सेवनीय ऐश्वर्यो का, जीवों का और वनों तक का पालक, स्वामी और ( प्रियस्तोत्रः ) प्रिय प्रीतिकारी स्तुति वचनोंवाला है । तेरे स्तुति-वचन सुन कर हृदय में प्रेम उत्पन्न होता है इसीसे तू प्रियस्तोत्र है । (२) देह में शुक्र रस, जीवन का स्थापक, उसमें तेज बल का धारक, होने से मृत्यु को दूर करता है । ‘वन’ अर्थात् इन्द्रियों का पालक उत्तम गुणों से युक्त है। (३) सोम रस, जीवन में बलदायक, मृत्यु आदि दुःखों का नाशक, उत्तम गुणों वाला वनस्पति है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो रहूगणपुत्र ऋषिः ॥ सोमो देवता ॥ छन्दः—१, ३, ४ स्वराट्पङ्क्तिः ॥ - २ पङ्क्तिः । १८, २० भुरिक्पङ्क्तिः । २२ विराट्पंक्तिः । ५ पादनिचृद्गायत्री । ६, ८, ९, ११ निचृद्गायत्री । ७ वर्धमाना गायत्री । १०, १२ गायत्री। १३, १४ विराङ्गायत्री । १५, १६ पिपीलिकामध्या निचृद्गायत्री । १७ परोष्णिक् । १९, २१, २३ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ त्रयोविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. जी माणसे ईश्वराची आज्ञा पालन करणाऱ्या विद्वानांचे व औषधांचे सेवन करतात ती पूर्ण आयुष्य भोगतात. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Soma, you are the pleasure, beauty and charm of our life for health and age. By virtue of you, we shall not die. You are the darling magic mantra against mortality, the ultimate Tree of Life and freedom.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is Soma is taught further in the 6th. Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Gon-Inspirer of good acts, Thou givest us power to us as Thou control ourselves. Thy glorification is dear to art the lord of all objects. knowing Thee O Lord and the Soma plant which is admirable and giver of vitality, may we not die prematurely.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(वश:) वशित्वगुणप्रापक: = Enabling to have control (वनस्पतिः) संभक्तस्य पदार्थसमूहस्य जंगलस्य वा पालक: श्रेष्ठतमोवा ! = The lord or protector of all objects and the best. (वन-संभक्तौ )
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
There is Shleshalankara (Double entendre) in the Mantra. Those persons who obey the commands of God and who serve learned persons and take Soma and other medicinal herbs properly, attain full age (of atleast 100 years).
बंगाली (1)
পদার্থ
ত্বং চ সোম নো বশো জীবাতুং ন মরামহে।
প্রিয়ন্তোত্রো বনস্পতিঃ।।৬৭।।
(ঋগ্বেদ ১।৯১।৬)
পদার্থঃ হে (সোম) সৎকর্মের প্রেরক পরমাত্মা! (ত্বম্) তুমি (নঃ) আমাদের (জীবাতুম্) জীবনের (বশঃ) কামনাকারী (চ) এবং (প্রিয়স্তোত্রঃ) তোমার গুণের স্তোত্র গাইলে হৃদয়ে প্রেমের উৎপত্তি হয়। (বনস্পতিঃ) তুমি তোমার ভক্ত ও সমগ্র জগতের পালনকারী। তোমাকে জেনে (ন মরামহে) আমরা মৃত্যুকে অতিক্রম করে মোক্ষরূপী অমর অবস্থাকে প্রাপ্ত হই।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ যে মনুষ্য পরমেশ্বরকে ভক্তি করেন এবং তাঁর বৈদিক আজ্ঞা অনুযায়ী নিজের জীবন গড়েন, তাঁর নিয়মানুকূলে চলেন, তাঁকে জানেন; তিনি সম্পূর্ণ আয়ু প্রাপ্ত হন এবং মরণান্তে এই ভৌতিক দেহকে ত্যাগ করে মুক্তিধাম প্রাপ্ত হন।।৬৭।।
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