ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 58/ मन्त्र 11
ऋषिः - बन्ध्वादयो गौपायनाः
देवता - मन आवर्त्तनम्
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
यत्ते॒ परा॑: परा॒वतो॒ मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ते॒ । पराः॑ । प॒रा॒ऽवतः॑ । मनः॑ । ज॒गाम॑ । दूर॒कम् । तत् । ते॒ । आ । व॒र्त॒या॒म॒सि॒ । इ॒ह । क्षया॑य । जी॒वसे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्ते परा: परावतो मनो जगाम दूरकम् । तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । ते । पराः । पराऽवतः । मनः । जगाम । दूरकम् । तत् । ते । आ । वर्तयामसि । इह । क्षयाय । जीवसे ॥ १०.५८.११
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 58; मन्त्र » 11
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ते) हे मानसरोग में ग्रस्त जन ! तेरा (यत्-मनः) जो मन (पराः परावतः) दूर दिशाओं तथा दूर देशों के प्रति (दूरकं जगाम) दूर चला गया है (ते तत्……) पूर्ववत् ॥११॥
भावार्थ
मानसिकरोगग्रस्त मनुष्य का मन भ्रान्त हुआ दूर दिशाओं और दूर देशों में भटकता प्रतीत होता है, उसे भी यथोचित उपचारों एवं आश्वासनों से ठीक बनाना चाहिए ॥११॥
विषय
मनः-आवर्त्तन। इस लोक में पुनः आने, जन्म लेने आदि के निमित्त मन का पुनः २ आवर्तन।
भावार्थ
(यत् ते मनः पराः परावतः दूरकं जगाम) जो तेरा मन दूर दूर के देशों को लक्ष्य करके भी दूर तक चला जाता है (ते तत् इह क्षयाय जीवसे) तेरे उस चित्त को भी हम यहां रहने और जीने के लिये लौटाते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बन्ध्वादयो गौपायना ऋषयः। देवता-मन आवर्तनम्॥ निचृदनुष्टुप् छन्दः॥ द्वादशर्चं सूकम्॥
विषय
दूर से दूर
पदार्थ
[१] (यत्) = जो (ते) = तेरा (मनः) = मन (पराः परावतः) = दूर से दूर प्रदेशों में भटकता हुआ (दूरकं जगाम) = अनन्त दूर चला जाता है, (ते) = तेरे (तत्) = उस मन को (इह) = यहां ही (क्षयाय) = निवास व गति के लिये आवर्तयामसि लौटाते हैं जिससे (जीवसे) = यह मन दीर्घ व उत्तम जीवन का साधन बने । [२] मन (स्वभावतः) = दूर-दूर भटकता है। इसका निरोध करके ही हम किसी भी कार्य में सफल हो पाते हैं। जीवन भी शक्तियों के केन्द्रित हो जाने से उत्तम व दीर्घ होता है ।
भावार्थ
भावार्थ - हम इस दूर-दूर जानेवाले मन का निरोध करें ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ते) हे मानसरोगग्रस्त जन ! तव (यत्-मनः) यत् खलु मनः (पराः परावतः) परदिशो यद्वा परदेशान् (दूरकं जगाम) दूरं गतम् (ते तत्……) पूर्ववत् ॥११॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Your mind that wanders far and farther over regions unknown, we bring back to normalcy, here to be at peace for your good life.
मराठी (1)
भावार्थ
मानसिक रोगग्रस्त माणसाचे मन भ्रमित होऊन दूर दिशा व दूर देशात भटकत असते त्यालाही यथोचित उपचार व आश्वासनांनी ठीक केले पाहिजे. ॥११॥
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