ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 48/ मन्त्र 4
शं नो॑ भव हृ॒द आ पी॒त इ॑न्दो पि॒तेव॑ सोम सू॒नवे॑ सु॒शेव॑: । सखे॑व॒ सख्य॑ उरुशंस॒ धीर॒: प्र ण॒ आयु॑र्जी॒वसे॑ सोम तारीः ॥
स्वर सहित पद पाठशम् । नः॒ । भ॒व॒ । हृ॒दे । आ । पी॒तः । इ॒न्दो॒ इति॑ । पि॒ताऽइ॑व । सो॒म॒ । सू॒नवे॑ । सु॒ऽशेवः॑ । सखाऽइ॑व । सख्ये॑ । उ॒रु॒ऽशं॒स॒ । धीरः॑ । प्र । नः॒ । आयुः॑ । जी॒वसे॑ । सो॒म॒ । ता॒रीः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो भव हृद आ पीत इन्दो पितेव सोम सूनवे सुशेव: । सखेव सख्य उरुशंस धीर: प्र ण आयुर्जीवसे सोम तारीः ॥
स्वर रहित पद पाठशम् । नः । भव । हृदे । आ । पीतः । इन्दो इति । पिताऽइव । सोम । सूनवे । सुऽशेवः । सखाऽइव । सख्ये । उरुऽशंस । धीरः । प्र । नः । आयुः । जीवसे । सोम । तारीः ॥ ८.४८.४
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 48; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
O soma, drink of immortality, be good and blissful for the heart. O nectar soma, when drunk, be as good and blissful as father is to the child. Soma, universally admired, brave and heroic, patient and constant, as a friend for the friend, give us a long age of good health so that we may live a full life of joy to our heart’s content.
मराठी (1)
भावार्थ
असे अन्न व रस खा व प्या, ज्यामुळे शरीर व आत्म्याला लाभ व्हावा आणि आयुष्य वाढावे. ॥४॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे इन्दो=आनन्दकर । हे सोम=सर्वश्रेष्ठरस । हे शरीरपोषक अन्न ! त्वं पीतः सन् । नोऽस्माकम् । हृदे=हृदयाय । शं=सुखकारी । आभव । अत्र द्वौ दृष्टान्तौ । पितेव सूनवे । यथा पिता पुत्राय सुखकारी भवति । पुनः । सखेव । यथा सखा सखीन् । सख्ये नियोज्य । सुशेवः=सुखकरो भवति । हे उरुशंस=सर्वप्रशंसनीय ! त्वं धीरो भूत्वा । जीवसे=जीवनाय । नोऽस्माकम् । आयुः । प्रतारीः=प्रवर्धय ॥४ ॥
हिन्दी (4)
विषय
N/A
पदार्थ
(इन्दो) हे आह्लादप्रद (सोम) हे सर्वश्रेष्ठ रस तथा शरीरपोषक अन्न ! तू (पीतः) हम जीवों से पीत और भुक्त होकर (नः+हृदे) हमारे हृदय के लिये (शम्+आ+भव) कल्याणकारी हो । यहाँ दो दृष्टान्त देते हैं (पिता+इव+सूनवे) जैसे पुत्र के लिये पिता सुखकारी होता है, पुनः (सखा+इव) जैसे मित्र मित्रों को (सख्ये) मित्रता में रखकर अर्थात् जैसे मित्र मित्रों को अहित दुर्व्यसन आदि दुष्कर्मों से छुड़ाकर हितकार्य्य में लगा (सुशेवः) सुखकारी होता है, तद्वत् । (उरुशंस+सोम) हे बहुप्रशंसनीय सोम ! (धीरः) तू धीर होकर (जीवसे) जीवन के लिये (नः+आयुः) हमारी आयु को (प्र+तारीः) बढ़ा दे ॥४ ॥
भावार्थ
ऐसा अन्न और रस खाओ और पीओ, जिससे शरीर और आत्मा को लाभ पहुँचे और आयु बढ़े ॥४ ॥
विषय
सोम, ओषधि-रस के पान के समान ऐश्वर्य, वीर्य, पुत्र शिष्यादि को पालन।
भावार्थ
( आपीतः हृदे शम् ) जिस प्रकार पान किया हुआ सोमरस, या ओषधिरस हृदय को शान्तिदायक होता है उसी प्रकार (आपीतः) सब प्रकार से पालित, रक्षित वीर्य, पुत्र और शिष्य भी (नः हृदे शं भव) हमारे हृदय को शान्तिकारक हो। हे ( इन्दो) प्रेमरस से आर्द्र ! ऐश्वर्यवन् ! हे ( सोम ) सोम ! ( सूनवे पिता इव ) पुत्र के लिये पिता के समान तू ( सु-शेवः ) उत्तम सुखदायक हो। हे ( उरुशंस ) बहुत २ उत्तम उपदेश वचन करने हारे विद्वन् ! बहुत स्तुतियुक्त प्रभो ! बहुतसी विद्याओं के उपदेश योग्य शिष्य ! ( सख्ये सखा इव ) मित्र के लिये मित्र के तुल्य होकर ( धीरः ) बुद्धिमान् होकर ( जीवसे ) दीर्घ जीवन के लिये ( नः आयुः प्र तारीः ) हमारी आयु की वृद्धि कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रगाथः काण्व ऋषिः॥ सोमो देवता॥ छन्द:—१, २, १३ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। १२, १५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३, ७—९ विराट् त्रिष्टुप्। ४, ६, १०, ११, १४ त्रिष्टुप्। ५ विराड् जगती॥ पञ्चदशचं सूक्तम्॥
विषय
'शान्ति-कल्याण - बुद्धि व दीर्घजीवन' का दाता सोम
पदार्थ
[१] हे (इन्दो) = सोम ! तू (आपीतः) = शरीर में समन्तात् पिया हुआ (नः) = हमारे (हृदे) = हृदय के लिए (शं) = शान्ति को देनेवाला (भव) = हो। हे सोम वीर्यशक्ते ! तू (सूनवे पिता इव) = पुत्र के लिए पिता की तरह (सुशेवः) = उत्तम कल्याण को करनेवाला हो। [२] हे (उरुशंस) = बहुधा शंसनीय सोम ! तू (धीरः) = बुद्धि को प्रेरित करनेवाला है-बुद्धि को सूक्ष्म बनानेवाला है। तू (सख्ये) = मित्र के लिए (सखा इव) = मित्र की तरह है। अपने रक्षक का तू रक्षण करता है। हे सोम ! तू (जीवसे) = जीवन के लिए (नः) = हमारे (आयुः) = जीवन को (प्रतारी:) = प्रकर्षेण बढ़ानेवाला हो ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम [१] हृदय में शान्ति को देता है, [२] कल्याण करता है, [३] बुद्धि को सूक्ष्म बनाता है [४] तथा दीर्घजीवन का कारण होता है।
मन्त्रार्थ
(इन्दो) हे सोम-परमात्मन् या ओषधि! तू (पीत:) भली भाँति पीया हुआ (न:-हृदे शं भव) हमारे हृदय के लिये कल्याण रूप हो जा (सोम सूनवे पिता-इव सुशेवः) हे सोम! तू पुत्र के लिए जैसे पिता अच्छा सुखकर होता है ऐसा हो जा "शेवं सुखम्" (निघ० ३।६) (उरुशंस सोम) हे बहुत प्रशंसनीय सोम-परमात्मन् या ओषधि ! तू (सखा-इव सख्ये) सखा मित्र के लिये अच्छा सुखकर होता है ऐसे अच्छा सुख कर हो (धीर:-जीवसे नः-आयुः-प्रतारी:) तू धीर बुद्धि देने वाला जीने को हमारे आयु को प्रवृद्ध कर चढा ॥४॥
विशेष
ऋषिः– प्रगाथः काणव: (कण्व-मेधावी का शिष्य "कण्वो मेधावी" [ निघ० ३।१५] प्रकृष्ट गाथा-वाक्-स्तुति, जिसमें है "गाथा वाक्" [निघ० १।११] ऐसा भद्र जन) देवता - सोमः आनन्द धारा में प्राप्त परमात्मा “सोमः पवते जनिता मतीनां जनिता दिवो जनिता पृथिव्याः। जनिताग्नेर्जनिता सूर्यस्य जनितेन्द्रस्य जनितोत विष्णोः” (ऋ० ९।९६।५) तथा पीने योग्य ओषधि "सोमं मन्यते पपिवान् यत् सम्पिषंम्त्योषधिम् ।” (ऋ० १०।८५।३)
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