ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 107/ मन्त्र 25
पव॑माना असृक्षत प॒वित्र॒मति॒ धार॑या । म॒रुत्व॑न्तो मत्स॒रा इ॑न्द्रि॒या हया॑ मे॒धाम॒भि प्रयां॑सि च ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑मानाः । अ॒सृ॒क्ष॒त॒ । प॒वित्र॑म् । अति॑ । धार॑या । म॒रुत्व॑न्तः । म॒त्स॒राः । इ॒न्द्रि॒याः । हयाः॑ । मे॒धाम् । अ॒भि । प्रयां॑सि । च॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमाना असृक्षत पवित्रमति धारया । मरुत्वन्तो मत्सरा इन्द्रिया हया मेधामभि प्रयांसि च ॥
स्वर रहित पद पाठपवमानाः । असृक्षत । पवित्रम् । अति । धारया । मरुत्वन्तः । मत्सराः । इन्द्रियाः । हयाः । मेधाम् । अभि । प्रयांसि । च ॥ ९.१०७.२५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 107; मन्त्र » 25
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(धारया) स्वकृपामयवृष्ट्या (पवित्रम्) पवित्रान्तःकरणं (अभि) अभिलक्ष्य (अति, असृक्षत) त्वत्साक्षात्कारः क्रियते (पवमानाः) तव पवित्रं स्वभावाः (मरुत्वन्तः) विद्वद्भिः साक्षात्कृताः (मत्सराः) आनन्दप्रदाः (इन्द्रियाः) कर्मयोगिहिताः (हयाः) गतिशीलाः (च) तथा (मेधां) बुद्धिम् (प्रयांसि) ऐश्वर्यं च ददतः, तैः पवस्व ॥२५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(धारया) अपनी कृपामयी वृष्टि से (पवित्रम्) पवित्र अन्तःकरण को (अभि) लक्ष्य रखकर (अति, असृक्षत) तुम्हारा साक्षात्कार किया जाता है। (पवमानाः) तुम्हारे पवित्र स्वभाव (मरुत्वन्तः) जो विद्वानों द्वारा साक्षात्कार किये गये हैं, (मत्सराः) आनन्ददायक हैं, (इन्द्रियाः) कर्मयोगियों के लिये हितकर हैं, (हयाः) गतिशील हैं (च) और (मेधाम्) बुद्धि तथा (प्रयांसि) ऐश्वर्य्यों को देनेवाले जो आपके स्वभाव हैं, उनसे आप हमको पवित्र करें ॥२५॥
भावार्थ
परमात्मा के अपहतपाप्मादि स्वभाव उपासना द्वारा मनुष्य को शुद्ध करते हैं, इसलिये मनुष्य को उसकी उपासना में सदा रत रहना चाहिये ॥२५॥
विषय
मरुत्वन्तः मत्सराः
पदार्थ
(पवित्रम्) = पवित्र हृदय वाले पुरुष (धारया) = अपनी धारणशक्ति से (पवमाना:) = सर्वथा रोगकृमि आदि शत्रुओं के विनाश से पवित्र करते हुए (अति असृक्षत) = अतिशयेन सृष्ट होते हैं। हम वासनाओं से ऊपर उठकर ही सोम का रक्षण कर सकते हैं। सुरक्षित होकर ये हमारे जीवन को पूर्ण पवित्र बनायेंगे। ये सोम (मरुत्वन्तः) = प्रशस्त प्राणों वाले हैं, प्राणशक्ति का वर्धन करते हैं । (मत्सराः) = आनन्द का संचार करनेवाले हैं। (इन्द्रियाः) = बल को देनेवाले हैं [इन्द्रियं वीर्यं बलम्] । (हया:) = हमें गतिशील बनाते हैं। (मेधाम् अभि) = बुद्धि की ओर ले चलते हैं (च) = और (प्रयांसि) = उत्कृष्ट यत्नशीलता की ओर [प्रयस्] अथवा सात्त्विक अन्नों की ओर । यह सोम हमें सात्त्विक वृत्तिवाला बनाता है।
भावार्थ
भावार्थ- पवित्र हृदय वाले पुरुष में सुरक्षित हुआ हुआ सोम प्राणों को प्रशस्त बनाता है, आनन्द का संचार करता है, बल को देता है, हमें गतिशील बनाता है, बुद्धि और श्रमशील वृत्ति को प्राप्त कराता है ।
विषय
ज्ञानियों को मोक्ष-लाभ।
भावार्थ
(मरुत्वन्तः) प्राणों से युक्त (पवमानाः) वेद वाणी द्वारा पवित्र होते हुए, विद्वान् जन (पवित्रं अति असृक्षत) सब बन्धनों को पार कर परम पावन प्रभु को प्राप्त होते हैं। वे (मत्सराः) अति आनन्दयुक्त (इन्द्रियाः) परमेश्वर को भजन करते हुए उसी में दत्तचित्त होकर (हयाः) आगे बढ़ते हुए (मेधाम् अभि) परम बुद्धि और (प्रयांसि अभि च असृक्षत) उत्तम अन्नों के तुल्य उत्तम कर्म-फलों का निर्माण करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सप्तर्षय ऋषयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ६, ९, १४, २१ विराड् बृहती। २, ५ भुरिग् बृहती। ८,१०, १२, १३, १९, २५ बृहती। २३ पादनिचृद् बृहती। ३, १६ पिपीलिका मध्या गायत्री। ७, ११,१८,२०,२४,२६ निचृत् पंक्तिः॥ १५, २२ पंक्तिः॥ षड्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Purifying, energising and inspiring currents of ecstasy and nourishment for the senses, will, intellect and imagination flow by stream and shower at the speed of winds to the holy heart of the sagely celebrant.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराचा स्वभाव पापाचा नाश करणारा आहे. तो उपासनेद्वारे मनुष्याला शुद्ध करतो. त्यासाठी माणसाने त्याच्या उपासनेत राहावे. ॥२५॥
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