यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 45
ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः
देवता - इन्द्रवायू देवते
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
16
इ॒न्द्र॒वा॒यू बृह॒स्पतिं॑ मि॒त्राग्निं पू॒षणं॒ भग॑म्।आ॒दि॒त्यान् मारु॑तं ग॒णम्॥४५॥
स्वर सहित पद पाठइ॒न्द्र॒वा॒यूऽइती॑न्द्रवा॒यू। बृह॒स्पति॑म्। मि॒त्रा। अ॒ग्निम्। पू॒षण॑म्। भग॑म् ॥ आ॒दि॒त्यान्। मारु॑तम्। ग॒णम् ॥४५ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रवायू बृहस्पतिम्मित्राग्निम्पूषणम्भगम् । आदित्यान्मारुतङ्गणम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्रवायूऽइतीन्द्रवायू। बृहस्पतिम्। मित्रा। अग्निम्। पूषणम्। भगम्॥ आदित्यान्। मारुतम्। गणम्॥४५॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
मनुष्या विद्युदादिपदार्थान् विज्ञाय किं कुर्युरित्याह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! यथा वयमिन्द्रवायू बृहस्पतिं मित्राग्निं पूषणं भगमादित्यान् मारुतं गणं विज्ञायोपयुञ्जीमहि तथा यूयमपि प्रयुङ्ग्ध्वम्॥४५॥
पदार्थः
(इन्द्रवायू) विद्युत्पवनौ (बृहस्पतिम्) बृहतां पालकं सूर्य्यम् (मित्रा) मित्रं प्राणम्। अत्र विभक्तेराकारादेशः। (अग्निम्) पावकम् (पूषणम्) पुष्टिकरम् (भगम्) ऐश्वर्यम् (आदित्यान्) द्वादशमासान् (मारुतम्) मरुत्सम्बन्धिनम् (गणम्) समूहम्॥४५॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैः सृष्टिस्थान् विद्युदादीन् पदार्थान् विज्ञाय संयुज्य कार्याणि साधनीयानि॥४५॥
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्य विद्युत् आदि पदार्थों को जान के क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! जैसे हम लोग (इन्द्रवायू) बिजुली पवन (बृहस्पतिम्) बड़े लोकों के रक्षक सूर्य्य (मित्रा) प्राण (अग्निम्) अग्नि (पूषणम्) पुष्टिकारक (भगम्) ऐश्वर्य (आदित्यान्) बारह महीनों और (मारुतम्) वायुसम्बन्धि (गणम्) समूह को जान के उपयोग में लावें, वैसे तुम लोग भी उसका प्रयोग करो॥४५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि सृष्टिस्थ विद्युत् आदि पदार्थों को जान और सम्यक् प्रयोग कर कार्य्यों को सिद्ध करें॥४५॥
विषय
विद्युत् आदि तत्वों का सदुप योग । पक्षान्तर में राष्ट्र के अध्यक्षों का कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( इन्द्रवायू ) विद्युत्, वायु, (बृहस्पतिम् ) बड़े लोकों के पालक सूर्य, (मित्राग्निम् ) मित्र, प्राण और अग्नि, (पूषणम् भगम् ) पुष्टिकारक, अन्न और सेवन करने योग्य ऐश्वर्य ( आदित्यान् ) सूर्य की किरणों या बारह मासों और (मरुतां गणम्) वायुओं के समूह का ज्ञान करके उत्तम उपयोग करो । ( २) राष्ट्र-पक्ष में- (वायू इन्द्र) इन्द्र राजा, वायु के समान प्रचण्ड सेनापति, (बृहस्पतिम् ) विद्वान् पुरुष (मित्राग्निम् ) सब-स्नेही न्यायकारी, अग्नि, अग्रणी नेता, (पूषणम् ) पोषक, पृथ्वी या भागधुग्, (भगम् ) ऐश्वर्यवान् ( आदित्यान् ) आदान प्रतिदान करने वाले वैश्यगण, सूर्य के समान तेजस्वी पुरुष, ( मारुतं गणम् ) मनुष्यों के गण इन सबको अपने अपने पद पर नियुक्त करो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
[ ४५, ४६ ] मेधातिथिर्ऋषिः । विश्वेदेवाः । गायत्री । षड्जः ॥
विषय
दिव्य गुणों का आराधन
पदार्थ
१. पिछले मन्त्र की समाप्ति पर कहा था कि रात्रि व उषा के प्रारम्भ में प्रथम पुकार [प्रार्थना] के समय 'वायु व पूषा' को पुकारते हैं। उसी प्रार्थना को कुछ विस्तार से प्रस्तुत मन्त्र में करते हैं। 'मेधातिथि' प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि है-जीवन-यात्रा में समझदारी से चलनेवाला। यह प्रातः सायं निम्न देवों का आराधन करता है १. (इन्द्रवायू) = मैं इन्द्र और वायु को पुकारता हूँ। 'इन्द्र', अर्थात् इन्द्रियों का अधिष्ठाता बनूँ, ऐश्वर्यशाली बनूँ [इदि परमैश्वर्ये] मेरे कर्म शक्तिशाली हों [सर्वाणि बलकर्माणि इन्द्रस्य] वायु बनूँ [वा गतिगन्धनयोः], निरन्तर क्रियाशीलता के द्वारा बुराई का संहार करनेवाला बनूँ। ३. (बृहस्पतिम्) = बृहस्पति को पुकारता हूँ। बृहस्पति ऊर्ध्वा दिशा का अधिपति है। मैं भी उन्नति के शिखर पर पहुँचता हूँ। बृहस्पति देवगुरु हैं। मैं भी ज्ञानियों का गुरु, ज्ञानियों का भी ज्ञानी, उत्कृष्ट ज्ञानी बनता हूँ। ४. (मित्राग्निम्) = मित्र और अग्नि को पुकारता हूँ। [मित्रः प्रमीतेः त्रायते] अपने को मृत्यु व पाप से बचाता हूँ और इस प्रकार आगे बढ़ता हूँ [ अग्निः अग्रेणी: ] । मित्र शब्द की भावना [मिद् स्नेहने] स्नेह करने की भी है। उन्नति-पथ वस्तुतः प्रेम-पथ ही है । ५. (पूषणं भगम्) = मैं पूषा व भग को पुकारता हूँ। अपना पोषण करके औरों के भी पोषण के लिए प्रयत्नशील होता हूँ। पोषण के लिए भग [ऐश्वर्य] को बाँटता हूँ। पोषण के लिए पर्याप्त धन से अधिक धन की कामना नहीं करता हूँ। ६. (आदित्यान्) = मैं आदित्यों को पुकारता हूँ। 'आदानात् आदित्यः' आदित्य वे हैं जो अपनी 'मैं' में सभी को समाविष्ट कर लेते हैं। उदार हृदय बनकर मैं वसुधा को कुटुम्ब समझने का प्रयत्न करता हूँ। इस हृदय की विशालता के लिए ही ७. (मारुतं गणम्) = प्राणसमूह को पुकारता हूँ। वस्तुतः प्राणसाधना से ही हृदय निर्दोष व विशाल बनेगा।
भावार्थ
भावार्थ- मैं प्राणसाधना के द्वारा इन्द्र, वायु, बृहस्पति, मित्र, अग्नि, पूषन्, भग व आदित्य को अपने अन्दर धारण करता हूँ।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी सृष्टीतील विद्युत इत्यादी पदार्थांचे ज्ञान प्राप्त करावे व त्याचा उपयोग करून घ्यावा.
विषय
मनुष्यांनी विद्युत आदी पदार्थांचे ज्ञान संपादित करून काम करावे, -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, ज्याप्रमाणे आम्ही (वैज्ञानिकगण) (इन्द्रवायू) विद्युत आणि वायू यांविषयी तसेच (बृहस्पतिम्) मोठमोठ्या ग्रहादीचा रक्षक सूर्य आणि (मित्रा) प्राणाविषयी (ज्ञान प्राप्त करून त्याचा उपयोग येतो, तसे तुम्हीही घ्या) तसेच (पूषणम्) पुष्टिकर (भगम्) ??? (आदित्यान्) बारा महिने आणि (मारूतम्) वायू विषयक (गणम्) समूह (अग्नि, जल आदी विषयी) (आम्ही वैज्ञानिक) ज्याप्रमाणे ज्ञान प्राप्त करून त्याला उपयोगात आणतो, तसे तुम्हीही त्या शक्तीचा उपयोग करा ॥45॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकुप्तोपमा अलंकार आहे. मनुष्यांनी या सृष्टीतील विद्युत आदी पदार्थांचे ज्ञान संपादित करून त्या शक्तीचा योग्य त्या कार्यात वापर करून आपले कार्यें पूर्ण करून घ्यावीत. ॥45॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Electricity, air, Sun, breath, fire, invigorating wealth twelve months, and the host of wind should be properly utilised.
Meaning
For the good of all the people of the earth, invoke Indra, universal electric energy, Vayu, the wind, Brihaspati, light of the universe, Mitra, pranic energy, Agni, fire energy, Pusha, the spirit of health and nourishment, Bhaga, the wealth vested in nature, Adityas, the various phases of the solar movements of the earth, and Maruts, various forms of air and modes of the wind. Invoke these divinities of nature working in unison as a united group of powers.
Translation
We invoke you, the supreme source of intellect, with names such as resplendent, the source of Vitality, supreme Lord, surveyor, adorable, nourisher, gracious, and the vital complex. (1)
Notes
I invoke all these deities: Indra, Väyu, Brhaspati, Mitra, Agni, Püşan, Bhaga, Adityas and the group of Maruts.
बंगाली (1)
विषय
মনুষ্যা বিদ্যুদাদিপদার্থান্ বিজ্ঞায় কিং কুর্য়ুরিত্যাহ ॥
মনুষ্য বিদ্যুৎ আদি পদার্থগুলিকে জানিয়া কী করিবে, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যেমন আমরা (ইন্দ্রবায়ূ) বিদ্যুৎ, পবন (বৃহস্পতিম্) বৃহৎ লোক-লোকান্তরের রক্ষক সূর্য্য (মিত্রা) প্রাণ (অগ্নিম্) অগ্নি (পূষণম্) পুষ্টিকারক (ভগম্) ঐশ্বর্য্য (আদিত্যান্) দ্বাদশ মাস এবং (মারুতম্) বায়ুসম্পর্কীয় (গণম্) সমূহকে জানিয়া উপযোগে আনি, সেইরূপ তোমরাও তাহার প্রয়োগ কর ॥ ৪৫ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । মনুষ্যদিগের উচিত যে, সৃষ্টিস্থ বিদ্যুতাদি পদার্থগুলিকে জানিয়া এবং সম্যক্ প্রয়োগ করিয়া কার্য্যগুলিকে সিদ্ধ করিবে ॥ ৪৫ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ই॒ন্দ্র॒বা॒য়ূ বৃহ॒স্পতিং॑ মি॒ত্রাগ্নিং পূ॒ষণং॒ ভগ॑ম্ ।
আ॒দি॒ত্যান্ মার॑ুতং গ॒ণম্ ॥ ৪৫ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ইন্দ্রবায়্বিত্যস্য মেধাতিথির্ঋষিঃ । ইন্দ্রবায়ূ দেবতে । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
ষড্জঃ স্বরঃ ॥
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