अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 39
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ता
छन्दः - आर्षी गायत्री
सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
13
स॑प्तऋ॒षीन॒भ्याव॑र्ते। ते मे॒ द्रवि॑णं यच्छन्तु॒ ते मे॑ ब्राह्मणवर्च॒सम् ॥
स्वर सहित पद पाठस॒प्त॒ऽऋ॒षीन् । अ॒भि॒ऽआव॑र्ते । ते । मे॒ । द्रवि॑णम् । य॒च्छ॒न्तु॒ । ते । मे॒ । ब्रा॒ह्म॒ण॒ऽव॒र्च॒सम् ॥५.३९॥
स्वर रहित मन्त्र
सप्तऋषीनभ्यावर्ते। ते मे द्रविणं यच्छन्तु ते मे ब्राह्मणवर्चसम् ॥
स्वर रहित पद पाठसप्तऽऋषीन् । अभिऽआवर्ते । ते । मे । द्रविणम् । यच्छन्तु । ते । मे । ब्राह्मणऽवर्चसम् ॥५.३९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(सप्तऋषीन्) सात व्यापनशीलों वा दर्शनशीलों [अर्थात् त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा, नाक, मन और बुद्धि, अथवा दो कान, दो नथने, दो आँख और मुख इन सात छिद्रों] की ओर (अभ्यावर्ते) मैं घूमता हूँ। (ते) वे (मे) मुझे (द्रविणम्) बल और (ते) वे (मे) मुझे (ब्राह्मणवर्चसम्) ब्राह्मण [ब्रह्मज्ञानी] का प्रताप (यच्छन्तु) देवें ॥३९॥
भावार्थ
मनुष्य इन्द्रियों से यथावत् उपकार लेकर बली और ब्रह्मवर्चसी होवें ॥३९॥
टिप्पणी
३९−(सप्तऋषीन्) अ० ४।११।९। त्वक्चक्षुःश्रवणरसनाघ्राणमनोबुद्धीः। अथवा। शीर्षण्यानि सप्तच्छिद्राणि। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
दिशाएँ, सप्तर्षि, ब्रह्म, ब्राह्मण
पदार्थ
१. मैं इन (ज्योतिषमती: दिश: अभि आवर्ते) = ज्योतिर्मय दिशाओं की ओर आवर्तनवाला होता है। प्रतिदिन सन्ध्या में इनका ध्यान करता हुआ इनसे आगे बढ़ने की [प्राची], नन बनने की [अवाची], इन्द्रियों को विषयों से वापस लौटाने की [प्रतीची] व ऊपर उठने की [उदीची]' प्रेरणा प्राप्त करता हूँ। २. इसी प्रकार मैं (सप्तऋषीन् अभि आवर्ते) = सात ऋषियों की ओर आवर्तनवाला होता हूँ। 'गोतम' ऋषि का स्मरण करके प्रशस्त इन्द्रियोंवाला [गावः इन्द्रियणि] बनता हूँ। 'भरद्वाज' का स्मरण मुझे शक्तिभरण का उपदेश देता है। विश्वामित्र' की तरह मैं भी सभी के प्रति प्रेमवाला होता हूँ। जाठराग्नि को न बुझने देकर 'जमदग्नि' बनता हूँ। उत्तम वसुओंवाला 'वसिष्ठ' बनता हुआ 'कश्यप'-ज्ञानी बनने के लिए अन्न करता हूँ और इसप्रकार 'अत्रि'-'काम, क्रोध, लोभ' इन तीनों से ऊपर उठता हूँ। २. (ब्रह्म अभि आवर्ते) = मैं अपने प्रत्येक अवकाश के क्षण में ज्ञान की ओर गतिवाला होता हूँ। इसी उद्देश्य से (ब्राह्मणान् अभि आवर्ते) = ज्ञानियों की ओर आवर्तनवाला होता हूँ। इनके सम्पर्क से ज्ञानी बनता हूँ। ये सब बातें मुझे द्रविण व ब्रह्मवर्चस् प्राप्त कराएँ।
भावार्थ
दिशाओं से प्रेरणा लेता हुआ, ससऋषियों के समान आचरण करता हुआ, अवकाश के प्रत्येक क्षण को ज्ञान-प्राप्ति में लगाता हुआ, ज्ञानियों के संपर्क में चलता हुआ मैं "द्रविण व ब्रह्मवर्चस्' प्राप्त करूँ।
यह 'द्रविण के साथ ब्रह्मवर्चस्' वाला व्यक्ति विशिष्ट हव्योंवाला होता है-उत्तम त्यागवाला बनता है। यज्ञों को करता हुआ यह "विहव्य' अगले नौ मन्त्रों का ऋषि है -
भाषार्थ
(सप्त ऋषीन् अभि) सात ऋषियों की ओर (आवर्ते) मैं सार्वभौम शासक आवर्तन करता हूं, आता हूं। (ते) वे (मे) मुझे (द्रविणम्) बल या धन (यच्छन्तु) देवें, (ते) वे (मे) मुझे (ब्राह्मणवर्चसम्) ब्राह्मणों की ज्योति देवें।
टिप्पणी
[मन्त्र में सप्तऋषि के दो अभिप्राय हैं। एक सप्तर्षिमण्डल द्युलोक में उत्तर दिशा में स्थित है, और दूसरा सप्तर्षि मनुष्य के शरीर में स्थित है। यथा "सप्त ऋषयः प्रतिहिताः शरीरे" (यजु० ३४।५५)। ऋषि है "षडिन्द्रियाणि विद्या सप्तमी" (निरुक्त १२।४।३८)। सार्वभौम शासक शरीरस्थ ५ ज्ञानेन्द्रियों, मन तथा विद्या (ज्ञान) को चाहता है, जोकि ऋषि रूप हो कर उसे सन्मार्ग का दर्शन करा सकें। सर्वसाधारण मानुष शरीर में ये सात् ऋषिरूप न हो कर, असूररूप में रहते है, जिस से मनुष्य प्रायः सन्मार्गदर्शी नहीं होते। इन सात ऋषियों से सार्व-भौमशासक सात्त्विकद्रविण चाहता है, और ब्राह्मणवर्चसम चाहता है]।
विषय
विजिगीषु राजा के प्रति प्रजा के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(सप्त ऋषीन् अभि आवर्ते। ते मे द्रविणं० इत्यादि) सातों ऋषियों के समीप जाता हूं। वे मुझे द्रव्य विभूति और ब्राह्मणों को तेज प्रदान करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-२४ सिन्धुद्वीप ऋषिः। २६-३६ कौशिक ऋषिः। ३७-४० ब्रह्मा ऋषिः। ४२-५० विहव्यः प्रजापतिर्देवता। १-१४, २२-२४ आपश्चन्द्रमाश्च देवताः। १५-२१ मन्त्रोक्ताः देवताः। २६-३६ विष्णुक्रमे प्रतिमन्त्रोक्ता वा देवताः। ३७-५० प्रतिमन्त्रोक्ताः देवताः। १-५ त्रिपदाः पुरोऽभिकृतयः ककुम्मतीगर्भा: पंक्तयः, ६ चतुष्पदा जगतीगर्भा जगती, ७-१०, १२, १३ त्र्यवसानाः पञ्चपदा विपरीतपादलक्ष्मा बृहत्यः, ११, १४ पथ्या बृहती, १५-१८, २१ चतुरवसाना दशपदा त्रैष्टुव् गर्भा अतिधृतयः, १९, २० कृती, २४ त्रिपदा विराड् गायत्री, २२, २३ अनुष्टुभौ, २६-३५ त्र्यवसानाः षट्पदा यथाक्ष शकर्योऽतिशक्वर्यश्च, ३६ पञ्चपदा अतिशाक्कर-अतिजागतगर्भा अष्टिः, ३७ विराट् पुरस्ताद् बृहती, ३८ पुरोष्णिक्, ३९, ४१ आर्षी गायत्र्यौ, ४० विराड् विषमा गायत्री, ४२, ४३, ४५-४८ अनुष्टुभः, ४४ त्रिपाद् गायत्री गर्भा अनुष्टुप्, ५० अनुष्टुप्। पञ्चशदर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Song of Victory
Meaning
I follow the course of the seven sages. May they give me strength and wealth of honour and glory of the Brahmanic order of peace and enlightenment.
Translation
I turn to the seven seers (sapta-rsīh): may they grant me wealth; may they grant me an intellectual person’s lustre.
Translation
I turn me towards seven Rishis, the even organs of intellection and cognition and let them bestow upon me wealth and let them give me the glory of the Brahman the man who Knows the Veda and God.
Translation
I make proper use of the seven Rishis; may they bestow upon me wealth and glory of knowledge.
Footnote
Seven Rishis: Two eyes, two ears, two nostrils and mouth, or touch, sight. Hearing, Taste, Smell, Mind, Intellect.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३९−(सप्तऋषीन्) अ० ४।११।९। त्वक्चक्षुःश्रवणरसनाघ्राणमनोबुद्धीः। अथवा। शीर्षण्यानि सप्तच्छिद्राणि। अन्यत् पूर्ववत् ॥
हिंगलिश (1)
Word Meaning
सप्त ऋषियों के चक्राकार cyclic क्रम की हम परिक्रमा करते हैं जिस से हमें ऐसा सब धन प्राप्त हो जिस से हमारे अंदर ब्राह्मण वृत्तियों की तेजस्विता और सामर्थ्य उत्पन्न हो | सप्त ऋषि से अभिप्राय मनुष्य के शरीर में स्थित “ सप्त ऋषिय: प्रतिहीता: शरीरे” यजु0 34/55| और “षडिन्द्रियाणि विद्यासप्तमी “ –निरुक्त 12.4.38) संसारिक सामाजिक विषयों पर वेदादेशों के अतिरिक्त निर्णय के लिए (सप्त दिशो नानासूर्याः सप्त होतार ऋत्विजः | देवा आदित्या ये सप्त तेभिः सोमाभि रक्ष न इन्द्रयेन्दो परि स्रव || ऋ 9.114.3 Veda is describing that human observations/ knowledge based decisions should be taken. Men involved in planning and their actions are like 7 men performing Yajnas , motivated in 7 directions by senses (Seeing, Hearing, Smelling, Taste, Feeling by skin स्पर्श, Mind and intellect) . Every individual’s perception of the situations is illuminated - brought to light by looking at the same thing through 7 different colors of visible light. This reality has to be taken in to consideration in taking important decisions. (This is the Vedic wisdom describing how decisions are to be implemented in interest of national welfare in a planning commission. Modern Planners use a tool of Input /Output Matrix. Ved in this mantra is indicating a decision matrix of 7th order. A matrix of 7th order is considered the most complex. In practice hardly any planning decisions are taken on the basis of an analysis of an input /output matrix of the 7th order. But Economists base most of their decisions on study of Input/output Matrix. Decisions take under expediency without proper analysis by a complete matrix analyses lead to disastrous results. The examples of innovations made in the name of modern science and technology leading to disastrous consequences in all walks of life are pointing to this expedient approach.) सात दिशाएं ज्ञान की सप्तऋषि:इन को प्रकाश में लाने वाले नाना सूर्य (सूर्य की 7 रश्मियां , हर वस्तु स्थिति को समझने देखने के 7 तरीके) –7 विद्वान, सात ऋत्विज (पांच ज्ञानेन्द्रियां, मन और बुद्धि) बन कर यह जीवन यज्ञ कर रहे हैं. देवा आदित्या; को समझने के लिए यजुर्वेद 4.21 के अनुसार ”वस्वस्यादितिरस्यादित्यासि रुद्रासि चन्द्रासि | बृहस्पतिष्ट्वा सुम्ने रम्णातु रुद्रो वसुभिराचके ||” वस्वी असि- उत्तम निवास देने वाली है जो जीवन के लिए उत्तम साधनों का प्रतिपादन करके जीवन को उत्तम बनाती है, अदिति असि- हमारा खण्डन न होने देने वाले है, आदित्या असि- गुणों का आदान करने वाली है.(आदानात् आदित्या:) जिस के अध्ययन से हमारे गुणग्रहण की वृत्ति प्रबल होती है. इस ताने बाने को, संगलन पात्र को आधुनिक योजना विज्ञान Decision making Matrix का नाम देता है. इन सातों के आधार पर अध्यन करने से हानि /दु:ख कारक निर्णय न ले कर गुण ग्रहण करने की वृत्ति प्रबल होती है. सब निर्णय इस वैदिक मंत्रणा के आधार पर ही सोम-ज्ञान के आधार पर कार्यांवित योजनाएं समाज के लिए कल्याण कारी सिद्ध होती हैं.
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