अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 46
ऋषिः - सिन्धुद्वीपः
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
16
अ॒पो दि॒व्या अ॑चायिषं॒ रसे॑न॒ सम॑पृक्ष्महि। पय॑स्वानग्न॒ आग॑मं॒ तं मा॒ सं सृ॑ज॒ वर्च॑सा ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒प: । दि॒व्या: । अ॒चा॒यि॒ष॒म् । रसे॑न । सम् । अ॒पृ॒क्ष्म॒हि॒ । पय॑स्वान् । अ॒ग्ने॒ । आ । अ॒ग॒म॒म् । तम् । मा॒ । सम् । सृ॒ज॒ । वर्च॑सा ॥५.४६॥
स्वर रहित मन्त्र
अपो दिव्या अचायिषं रसेन समपृक्ष्महि। पयस्वानग्न आगमं तं मा सं सृज वर्चसा ॥
स्वर रहित पद पाठअप: । दिव्या: । अचायिषम् । रसेन । सम् । अपृक्ष्महि । पयस्वान् । अग्ने । आ । अगमम् । तम् । मा । सम् । सृज । वर्चसा ॥५.४६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रुओं के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(दिव्याः) दिव्य गुण स्वभाववाले (अपः) जलों [के समान शुद्ध करनेवाले विद्वानों] को (अचायिषम्) मैंने पूजा है (रसेन) पराक्रम से (सम् अपृक्ष्महि) हम संयुक्त हुए हैं। (अग्ने) हे विद्वान् ! (पयस्वान्) गतिवाला मैं (आ अगमम्) आया हूँ (तम्) उस (मा) मुझको (वर्चसा) [वेदाध्ययन आदि के] तेज से (सम् सृज) संयुक्त कर ॥४६॥
भावार्थ
मनुष्य उद्योग करके विद्वानों से और वेद आदि शास्त्रों से विद्या प्राप्त करके यशस्वी होवें ॥४६॥ यह मन्त्र आ चुका है-अ० ७।८९।१ ॥
टिप्पणी
४६−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ७।८९।१ ॥
भाषार्थ
(दिव्या अपः) द्युलोक सम्बन्धी जल की (अयाचिषम्) मैंने याचना की थी, (रसेन) रस से (समपृक्ष्महि) हम संपृक्त हुए हैं। (अग्ने) हे अग्रणी प्रधानमन्त्रिन् ! (पयस्वान्) प्रभूत दुग्धवाला (आगमम्) मैं तेरे पास आया हूँ, (तम्, मा) उस मुझ को (वर्चसा) दीप्ति अर्थात् ख्याति से (संसृज) संसर्ग कर, मेरी प्रसिद्धि कर।
टिप्पणी
[दिव्य जल वर्षा द्वारा प्राप्त होते हैं। ये मीठे होते हैं, खारे नहीं होते। अतः कृषि के लिये उत्तम होते हैं। प्रधानमन्त्री से यह प्रार्थना की गई है। यज्ञ१ विधि द्वारा प्रधानमन्त्री वर्षा कराकर प्रजा को यह जल प्रदान करता है। इस से ओषधियां रसवती होती हैं। गौएं इन्हें खा कर प्रभूत दुग्ध देती हैं- कृषक या भूमिपति प्रधानमन्त्री से कहता है कि मैं प्रभूत दुग्ध से सम्पन्न हुआ आया हूं, मुझे इस निमित्त तू यशस्वी कर। पयस्वान् = भूमार्थे मतुप् प्रत्यय। सात्विक जीवन के लिये दुग्ध और रसों की प्रशंसा वेद में हुई है। यथा “पयः पशूनां रसमोषधीनां बृहस्पतिः सविता मे नियच्छात् (अथर्व० १९। ३१।५)। दिव्याः = दिवि भवाः (अथवा दिव्याः = दिव्य गुण वाले, पार्थिव जल, नदी कुल्या२ कूप आदि के जल) अग्निरग्रणीर्भवति (निरुक्त० ७॥४।१५)] [१. देखो देवादि और शन्तनु के आख्यानसम्बन्धी ऋचा (ऋ० १०।९८।५), तथा निरुक्त २।३।११; समुद्र पद की व्याख्या में निरुक्त २॥३॥१०)। २. अथर्व० २०।१९।७।७; ११।३।१३)। कुल्या= नहर। कुल्या का निर्माण पृथिवी में कृषिकर्म के लिये होता है, इस का जल पृथिवी में ही विलीन हो जाता है, समुद्र तक नहीं पहुंचता। "कौ पृथिव्यां लीयते इति कुल्या"।]
विषय
विजिगीषु राजा के प्रति प्रजा के कर्त्तव्य।
भावार्थ
इन दोनों मन्त्रों की व्याख्या देखो अथर्व० [ कां० ७। ८६। १,२ ]।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-२४ सिन्धुद्वीप ऋषिः। २६-३६ कौशिक ऋषिः। ३७-४० ब्रह्मा ऋषिः। ४२-५० विहव्यः प्रजापतिर्देवता। १-१४, २२-२४ आपश्चन्द्रमाश्च देवताः। १५-२१ मन्त्रोक्ताः देवताः। २६-३६ विष्णुक्रमे प्रतिमन्त्रोक्ता वा देवताः। ३७-५० प्रतिमन्त्रोक्ताः देवताः। १-५ त्रिपदाः पुरोऽभिकृतयः ककुम्मतीगर्भा: पंक्तयः, ६ चतुष्पदा जगतीगर्भा जगती, ७-१०, १२, १३ त्र्यवसानाः पञ्चपदा विपरीतपादलक्ष्मा बृहत्यः, ११, १४ पथ्या बृहती, १५-१८, २१ चतुरवसाना दशपदा त्रैष्टुव् गर्भा अतिधृतयः, १९, २० कृती, २४ त्रिपदा विराड् गायत्री, २२, २३ अनुष्टुभौ, २६-३५ त्र्यवसानाः षट्पदा यथाक्ष शकर्योऽतिशक्वर्यश्च, ३६ पञ्चपदा अतिशाक्कर-अतिजागतगर्भा अष्टिः, ३७ विराट् पुरस्ताद् बृहती, ३८ पुरोष्णिक्, ३९, ४१ आर्षी गायत्र्यौ, ४० विराड् विषमा गायत्री, ४२, ४३, ४५-४८ अनुष्टुभः, ४४ त्रिपाद् गायत्री गर्भा अनुष्टुप्, ५० अनुष्टुप्। पञ्चशदर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Song of Victory
Meaning
I have sought for a drink of the celestial waters of life. Let us be regaled with nectar to satiety. Hey Agni, I have come with the offer of milky oblations. Pray bless me with the divine lustre and splendour of life.
Translation
The heavenly waters have been honouréd by me; with their rasa or sap, we have been mixed; O Agni, fire-divine, I have now come; here I shall get mingled with all splendour. (Also Av. VII.89.1)
Translation
I seek the celestial waters mixed with other juice and I come to the fire of yajna which consumes the oblations of milk and let it bestow upon me splendid strength.
Translation
I have worshipped the noble learned persons, purifiers like water. We have been equipped with prowess. O learned person, I, a hero, have come. Bestow upon me splendid strength.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४६−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ७।८९।१ ॥
हिंगलिश (1)
Subject
Rain Water Bounty
Word Meaning
याचना (प्रकृति में पर्यावरण संरक्षण के सब नियमों का पालन करो जिस से दिव्य गुण प्रदान करने वाले अनुकूल वर्षा के जल प्राप्त हों जो गोदुग्ध के समान ऊर्जा और वर्चस्व प्रदान करें
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