अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 46
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - आसुरी गायत्री
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
24
भूया॒निन्द्रो॑ नमु॒राद्भूया॑निन्द्रासि मृ॒त्युभ्यः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठभूया॑न् । इन्द्र॑: । न॒मु॒रात् । भूया॑न् । इ॒न्द्र॒ । अ॒सि॒ । मृ॒त्युऽभ्य॑: ॥८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
भूयानिन्द्रो नमुराद्भूयानिन्द्रासि मृत्युभ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठभूयान् । इन्द्र: । नमुरात् । भूयान् । इन्द्र । असि । मृत्युऽभ्य: ॥८.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
[हे परमेश्वर !] (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवान् तू (नमुरात्) न मरनेवाले [नित्य परमारमाणु रूप जगत्] से (भूयान्) अधिक बलवान् है, (इन्द्र) हे परम ऐश्वर्यवाले ! तू (मृत्युभ्यः) मरणवालों से [अनित्य कार्यरूप जगत्] से (भूयान्) अधिक बलवान् (असि) है ॥४६॥
भावार्थ
सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर दोनों प्रकार के नित्य धारणरूप और अनित्य कार्यरूप जगत् को अपने वश में रखता है ॥४६॥
टिप्पणी
४६−(भूयान्) अधिकतरो बलवान् (इन्द्रः) परमेश्वर्यवांस्त्वम् (नमुरात्) कप्रकरणे मूलविभुजादिभ्य उपसंख्यानम्। वा० पा० ३।२।५। मॄ हिंसायाम्, वेदे तु मरणे-क। उदोष्ठ्यपूर्वस्य। पा० ७।१।१०२। उत्वम्। अमरणस्वभावात् (भूयान्) (इन्द्र) (असि) (मृत्युभ्यः) मतुपो लोपः। मृत्युवद्भ्यः ॥
विषय
विभूः प्रभूः
पदार्थ
१. (इन्द्रः) = वह परमैश्वर्यशाली प्रभु (न-मुरात्) = न नष्ट होनेवाले कारणजगत् से (भूयान्) = बड़े हैं, अधिक है, इसीप्रकार (इन्द्र) = हे परमैश्वर्यशाली प्रभो! आप (मृत्युभ्यः) = न मरणधर्मा कार्यजगत् से (भूयान् असि) = अधिक हैं। यह प्रकृति व प्रकृतिजनित सारा ब्रह्माण्ड प्रभु के एक देश में ही है। २. हे प्रभो। आप (अरात्या:) = मानव-शान्ति की नाशिका अशुभवृत्ति से (भूयान्) = अधिक हैं। आपके उपासक को यह 'अराति' विनष्ट शान्तिवाला नहीं कर पाती। है इन्द्र-प्रभो! आप (शच्याः पति: असि) = शक्ति व प्रज्ञान के पति हैं। (वयम्) = हम (त्वा) = आपको (विभू:) = सर्वव्यापक तथा प्रभू: सर्वशक्तिमान् इति इस रूप में उपास्महे-उपासित करते हैं।
भावार्थ
यह कारणजगत् व कार्यजगत् प्रभु के एक देश में है। प्रभु अपने उपासक की शान्ति को नष्ट नहीं होने देते। वे शक्ति व प्रज्ञान के स्वामी हैं। प्रभु सर्वव्यापक व सर्वशक्तिमान् हैं।
भाषार्थ
(नमुराद्) न मरने वाले अर्थात् नित्य पदार्थों से (इन्द्रः) परमेश्वर (भूयान्) बड़ा है, (इन्द्र) हे परमेश्वर ! (मृत्युभ्यः) मरने वाले अर्थात् अनित्य पदार्थों से (भूयान्) बड़ा (असि) तू है।
टिप्पणी
[इन्द्रः = इदि परमैश्वर्ये। अतः इन्द्रः= परमेश्वर सविता को इन्द्र कहा है]
विषय
परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
(इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (नमुराद् भूयान्) नमुर अर्थात् मृत्यु के न होने अर्थात् अमर रहने से भी अधिक ऐश्वर्यवान् है और हे इन्द्र ! परमेश्वर तू (मृत्युभ्यः) सब मौतों से भी (भूयान्) बड़ा और अधिक शक्तिशाली है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
४६ आसुरी गायत्री, ४७ यवमध्या गायत्री, ४८ साम्नी उष्णिक्, ४९ निचृत् साम्नी बृहती, ५० प्राजापत्यानुष्टुप, ५१ विराड गायत्री। षडृचात्मक पञ्चमं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Savita, Aditya, Rohita, the Spirit
Meaning
Indra is greater than the immortals, Prakrti, particles and Jiva, Indra is greater than all the mortal and mutable forms of Prakrti.
Subject
PARYAYA V
Translation
Mightier than the non-dying is the resplendent Lord, O resplendent Lord, you are mightier than deaths.
Translation
The Almighty God is mightier than that of immortal ones(JIvas and atoms or matter),He is mightier than immortaties.
Translation
O God, Thou art stronger than the Eternal Matter in its atomic shape, Thou are stronger than the created world which lasts not for ever.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४६−(भूयान्) अधिकतरो बलवान् (इन्द्रः) परमेश्वर्यवांस्त्वम् (नमुरात्) कप्रकरणे मूलविभुजादिभ्य उपसंख्यानम्। वा० पा० ३।२।५। मॄ हिंसायाम्, वेदे तु मरणे-क। उदोष्ठ्यपूर्वस्य। पा० ७।१।१०२। उत्वम्। अमरणस्वभावात् (भूयान्) (इन्द्र) (असि) (मृत्युभ्यः) मतुपो लोपः। मृत्युवद्भ्यः ॥
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