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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 11
    ऋषिः - मातृनामा देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त
    80

    ये कु॒कुन्धाः॑ कु॒कूर॑भाः॒ कृत्ती॑र्दू॒र्शानि॒ बिभ्र॑ति। क्ली॒बा इ॑व प्र॒नृत्य॑न्तो॒ वने॒ ये कु॒र्वते॒ घोषं॒ तानि॒तो ना॑शयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । कु॒कुन्धा॑: । कु॒कूर॑भा: । कृत्ती॑: । दू॒र्शानि॑ । बिभ्र॑ति । क्ली॒बा:ऽइ॑व । प्र॒ऽनृत्य॑न्त: । वने॑ । ये । कु॒र्वते॑ । घोष॑म् । तान् । इ॒त: । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥६.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये कुकुन्धाः कुकूरभाः कृत्तीर्दूर्शानि बिभ्रति। क्लीबा इव प्रनृत्यन्तो वने ये कुर्वते घोषं तानितो नाशयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । कुकुन्धा: । कुकूरभा: । कृत्ती: । दूर्शानि । बिभ्रति । क्लीबा:ऽइव । प्रऽनृत्यन्त: । वने । ये । कुर्वते । घोषम् । तान् । इत: । नाशयामसि ॥६.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गर्भ की रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो (कुकुन्धाः) कुत्सित ध्वनि रखनेवाले [भिनभिनानेवाले], (कुकूरभाः) भूसे के अग्नि समान चमकनेवाले [कीड़े] (कृत्तीः) कतरनियों [छेदन शक्तियों] और (दूर्शानि) दुष्ट हिंसाकर्मों को (बिभ्रति) रखते हैं। (ये) जो (क्लीबाः इवः) हिजड़ों के समान (प्रनृत्यन्तः) नाचते हुए [कीड़े] (वने) घर में (घोषम्) कूक (कुर्वते) करते हैं, (तान्) उन को (इतः) यहाँ से (नाशयामसि) हम नाश करते हैं ॥११॥

    भावार्थ

    मनुष्य रोगजनक छोटे-छोटे कीड़ों को सुगन्धित द्रव्यों के धूम आदि से नाश करते रहें ॥११॥

    टिप्पणी

    ११−(ये) क्रमयः (कुकुन्धाः) कु कुत्सितम्। डु प्रकरणे मितद्र्वादिभ्य उपसंख्यानम्। वा० पा० ३।२।१८०। कु शब्दे−डु। आतोऽनुपसर्गे कः। पा० ३।२।३। कु+कु+दधातेः-क। अलुक्समासः। कुत्सितध्वनिधारकाः (कुकूरभाः) कोः भूमेः कूलं कुत्सितं वा कूलम्, कु शब्दे-ऊलच्, धातोः कुगागमश्च। भा दीप्तौ-क, लस्य रः। कुकूल इव तुषानलो यथा भान्ति ये (कृत्तीः) कृती छेदने-क्तिन्। छेदनशक्तीः (दूर्शानि) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। दुर्+शॄ हिंसायाम्-ड, दीर्घश्छान्दसः। दुर्दुष्टानि शानि हिंसाकर्माणि (बिभ्रति) धारयन्ति (क्लीबाः) क्लीबृ प्रागल्भ्ये-अच्। नपुंसकाः (इव) यथा (प्रनृत्यन्तः) गात्रविक्षेपणं कुर्वन्तः (वने) वन सेवने-अच्। निवासे (ये) (कुर्वते) कुर्वन्ति (घोषम्) नादम् (तान्) क्रमीन् (इतः) अस्मात् स्थानात् (नाशयामसि) घातयामः ॥

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    विषय

    'कुकुन्ध' आदि कृमियों का विनाश

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (कुकुन्धा:) = [कु+कु+धा] बुरा शब्द करते हैं, (कुकूरभा:) = [कुकूल: तुषानल: तद्वद् भान्ति] कुछ थोड़ा-सा चमकनेवाले हैं, (कृत्ती:) = काटनेवाले तथा (दर्शानि) = दंश करने के साधनों को (बिभ्रति) = धारण करते हैं, (ये) = जो (क्लीबाः इव प्रनृत्यन्तः) = नुपंसकों की भाँति नृत्य करते हुए (वने घोषं कुर्वते) = वन में शब्द करते हैं, (तान्) = उन कृमियों को (इतः) = यहाँ से (नाशयामसि) = नष्ट करते हैं।

    भावार्थ

    बुरा शब्द करनेवाले, कुछ-कुछ चमकनेवाले, मुख से काटने व दंश का साधन रखनेवाले, वन में नृत्य के साथ घोष करनेवाले मच्छरादि को यहाँ से दूर कर दो।

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    भाषार्थ

    (ये) जो (कुकुन्धाः कुकूरभा) कुत्सित गतियों को धारण करने वाले तथा कुकूर अर्थात् कुक्कुरों, कुत्तों के सदृश भासित होने वाले व्याघ्र आदि, (दूर्शानि= दूषणीयानि, सायण) दुषणीय (कृत्तीः) चमड़ों को (बिभ्रति) धारण करते हैं, और (ये) जो (क्लीबाः इव) मानो उन्मत्तों के सदृश (प्रनृत्यन्तः) नृत्य करते हुए (वने) वन में (घोषम्) अव्यक्त शब्द (कुर्वते) करते हैं, (तान्) उन्हें (इतः) इस वन से (नाशयामसि) हम नष्ट करते हैं।

    टिप्पणी

    [वनों में निवास करने वाले वानप्रस्थी तथा वनवासी, श्वापदों तथा मच्छर आदि का विनाश करते हैं]।

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    विषय

    कन्या के लिये अयोग्य और वर्जनीय वर और स्त्रियों की रक्षा।

    भावार्थ

    (ये) जो पुरुष (कुकुन्धाः) कुत्सित कुत्सित मांस, हड्डी आदि मलिन पदार्थों को धारण करने वाले, (कुकूरभाः) कुत्सित कुत्सित पदार्थों को खोजने और गन्दे गन्दे शब्द बोलने वाले, और (कृत्तीः) पशुओं की खालों और (दूर्शानि) दुःखदायी जन्तुओं को (बिभ्रति) धारण करते हैं, और जो (क्लीबा इव) नपुंसक, हीजड़ों और कंजरों के समान (प्रनृत्यन्तः) नाचते कूदते हुए (वने) जंगलों में (घोषम्) शोर (कुर्वते) मचाते हैं, या (वने घोषं कुर्वते) वनमें अपनी झोंपडी बनाकर रहते हैं, (तान्) उनको (इतः) इस राष्ट्र से (नाशयाग्सि) परे मार भगावें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मातृनामा ऋषिः। मातृनामा देवता। उत मन्त्रोक्ता देवताः। १, ३, ४-९,१३, १८, २६ अनुष्टुभः। २ पुरस्ताद् बृहती। १० त्र्यवसाना षट्पदा जगती। ११, १२, १४, १६ पथ्यापंक्तयः। १५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी। १७ त्र्यवसाना सप्तपदा जगती॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Foetus Protection

    Meaning

    Those that buzz, gleam, bite through, destroy, have dangerous habits, fly round thickets and produce annoying noise, all these dancing like mad, we destroy from here and around.

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    Translation

    Kukukundhas and kukurabhas (making ku ku sounds), who are equipped with biting stings; dancing like eunuchs, who make a much noise in the forest - all those we make disappear from here.

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    Translation

    We, the physicians and banish away from here all those germs known as Kukundha (those which make bad sound), Kukurbha (those which are of grey colour), Kritir which possess scissor-like instrument in their mouths and which dancing like eunuchs in the wood make sounds.

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    Translation

    Eaters of flesh and bones, users of foul language, who dress themselves in hides and skins, who dance about like eunuchs, who raise a wild clamor in the wood, all these we banish far away.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(ये) क्रमयः (कुकुन्धाः) कु कुत्सितम्। डु प्रकरणे मितद्र्वादिभ्य उपसंख्यानम्। वा० पा० ३।२।१८०। कु शब्दे−डु। आतोऽनुपसर्गे कः। पा० ३।२।३। कु+कु+दधातेः-क। अलुक्समासः। कुत्सितध्वनिधारकाः (कुकूरभाः) कोः भूमेः कूलं कुत्सितं वा कूलम्, कु शब्दे-ऊलच्, धातोः कुगागमश्च। भा दीप्तौ-क, लस्य रः। कुकूल इव तुषानलो यथा भान्ति ये (कृत्तीः) कृती छेदने-क्तिन्। छेदनशक्तीः (दूर्शानि) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। दुर्+शॄ हिंसायाम्-ड, दीर्घश्छान्दसः। दुर्दुष्टानि शानि हिंसाकर्माणि (बिभ्रति) धारयन्ति (क्लीबाः) क्लीबृ प्रागल्भ्ये-अच्। नपुंसकाः (इव) यथा (प्रनृत्यन्तः) गात्रविक्षेपणं कुर्वन्तः (वने) वन सेवने-अच्। निवासे (ये) (कुर्वते) कुर्वन्ति (घोषम्) नादम् (तान्) क्रमीन् (इतः) अस्मात् स्थानात् (नाशयामसि) घातयामः ॥

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