अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 25
ऋषिः - मातृनामा
देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त
113
पिङ्ग॒ रक्ष॒ जाय॑मानं॒ मा पुमां॑सं॒ स्त्रियं॑ क्रन्। आ॒ण्डादो॒ गर्भा॒न्मा द॑भ॒न्बाध॑स्वे॒तः कि॑मी॒दिनः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठपिङ्ग॑ । रक्ष॑ । जाय॑मानम् । मा । पुमां॑सम् । स्त्रिय॑म् । क्र॒न् । आ॒ण्ड॒ऽअद॑:। गर्भा॑न् । मा । द॒भ॒न् । बाध॑स्व । इ॒त: । कि॒मी॒दिन॑: ॥६.२५॥
स्वर रहित मन्त्र
पिङ्ग रक्ष जायमानं मा पुमांसं स्त्रियं क्रन्। आण्डादो गर्भान्मा दभन्बाधस्वेतः किमीदिनः ॥
स्वर रहित पद पाठपिङ्ग । रक्ष । जायमानम् । मा । पुमांसम् । स्त्रियम् । क्रन् । आण्डऽअद:। गर्भान् । मा । दभन् । बाधस्व । इत: । किमीदिन: ॥६.२५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गर्भ की रक्षा का उपदेश।
पदार्थ
(पिङ्ग) हे पराक्रमी पुरुष ! (जायमानम्) उत्पन्न होते हुए [सन्तान] को (रक्ष) बचा, (आण्डादः) अण्डे [गर्भ] खानेवाले [रोग वा कीड़े] (पुमांसम्) पुरुष [वा] (स्त्रियम्) स्त्री [बालक] को (मा क्रन्) न मारें और (गर्भान्) गर्भों को (मा दभन्) नष्ट न करें, (इतः) यहाँ से (किमीदिनः) लुतरों को (बाधस्व) हटा दे ॥२५॥
भावार्थ
पुरुषार्थी बलवान् पुरुष स्त्रियों की रक्षा करें, जिससे सन्तान और गर्भ नष्ट न होवें ॥२५॥
टिप्पणी
२५−(पिङ्ग) म० ६। हे पराक्रमिन् (रक्ष) (जायमानम्) उत्पद्यमानम् (पुमांसम्) पुरषसन्तानम् (स्त्रियम्) स्त्रीबालकम् (मा क्रन्) कृञ् हिंसायाम्-लुङ्। मन्त्रे घसह्वर०। पा० २।४।८०। च्लेर्लुक्। मा हिंसन्तु (आण्डादः) ञमन्ताड् डः। उ० १।११४। अम गत्यादिषु-ड। डस्य इत्त्वं न। प्रज्ञादित्वात् स्वार्थे-अण्। अदोऽनन्ने। पा० ३।२।६८। अद भक्षणे-विट् अण्डानां गर्भस्थसन्तानानां भक्षकाः (गर्भान्) (मा दभन्) मा हिंसन्तु (बाधस्व) पीडय (इतः) (किमीदिनः) म० २१ ॥
विषय
मां पुमांसं स्त्रियं क्रन्
पदार्थ
१. हे (पिङ्ग) = पीतवर्ण सर्षप! (जायमानं रक्ष) = उत्पद्यमान शिशु का तु रक्षण कर । (पुमांसं स्त्रियं मा क्रन्) = ये कृमि पुरुष व स्त्री को हिंसित न करें, अथवा जायमान गर्भ को ये स्त्रीगर्भ न कर दें। [केचित् भूतविशेषः पुंगर्भ स्त्रीगर्भ कुर्वन्ति] कई कृमि पुंगर्भ को स्त्रीगर्भ में परिवर्तित कर देते हैं। २. (आण्डाद:) = अण्डप्रदेश को खा जानेवाले ये कृमि (गर्भान् मा दभन्) = गों को हिंसित न करें। हे पिङ्ग! इन (किमीदिन:) = [किम् इदम् किम् इदम् इति चरतः] अब क्या खाएँ, अब क्या खाएं-इसप्रकार विचरते हुए इन कृमियों को (इत: बाधस्व) = यहाँ से-गर्भिणी के सान्निध्य से दर कर ।
भावार्थ
उन कृमियों को गर्भिणी की समीपता से दूर किया जाए जो [क] जायमान शिशुओं को नष्ट कर देते हैं, [ख] पुंगर्भ को स्त्रीगर्भ कर देते हैं, [ग] अण्डकोश-सम्बन्धी प्रदेशों को खा-सा जाते हैं।
भाषार्थ
(पिङ्ग) हे पिङ्ग सर्षप ! (जायमानम्) पैदा होते हुए शिशु को (रक्ष) सुरक्षित कर (पुमांसम्) गर्भस्थ पुमान् को [रोगकारी शक्तियां] (स्त्रियम) स्त्रीरूप में (मा क्रन्) न परिणत कर दें। तथा (आण्डादः) अण्डभक्षक रोगकीटाणु (गर्भान्) गर्भस्थ शिशुओं की (मा दभन्) हिंसा न करें, (किमीदिनः) पिशुन [मन्त्र २१] शक्तियों को (इतः) इस गर्भिणी से (बाधस्व) हे पिङ्ग ! तू पीड़ित कर ।
टिप्पणी
[मनुष्य समाज में कभी-कभी यह घटना हो जाती है कि जो पहले पुमान् था वह कालान्तर में स्त्री घोषित किया जाता है, और जो स्त्री थी वह पुमान् घोषित की जाती है। इन में लिंग परिवर्तन हो जाता है। सायण ने निम्नलिखित अर्थ भी दिया है, "जायमानं पुमासं, जायमानां स्त्रियं वा मा कुर्वन्तु, पीडायामिति शेषः"। लिङ्गपरिवर्तन सम्बन्धी यह अर्थ "पिङ्ग" अर्थात् गौर सर्षप सम्बन्धित है। "पिङ्ग" का अर्थ राज्यरक्षक [मन्त्र २१] तथा “किमीदिनः" का अर्थ "पिशुन" होने पर मन्त्र का भाव निम्नलिखित होगा। हे पिङ्ग ! तू जायमान शिशु की रक्षा कर ताकि कोई माता उत्पन्न होते हुए शिशु की हत्या न कर पाए, तथा कोई व्यक्ति पुमान् को डरा-धमका कर स्त्री न करे, उसे निःशक्त अबलारूप न कर दे, अर्थात् बली निर्बल को दबा न सके। तथा अण्ड-भक्षक, पक्षियों की उत्पत्ति के कारण रूप, अण्डों को न खाएं]।
विषय
कन्या के लिये अयोग्य और वर्जनीय वर और स्त्रियों की रक्षा।
भावार्थ
हे (पिङ्ग) बलवान् ओषधे तापकारिन् ! (जायमानम्) उत्पन्न होते हुए बालक की (रक्ष) रक्षा कर। (पुमांसम् स्त्रियम्) पुमान् बालक को या स्त्री बालक को भी (मा क्रन्) विक्षिप्त या दुखी न करें। (आण्डादः) बालक के अण्डकोष भागों को काटकर खाजाने वाला रोगकीट (गर्भान्) गर्भ-गत बालकों का (मा दभन्) विनाश न करे, इसलिए हे वैद्य या ओषधे ! (तान्) उन (किमीदिनः) तुच्छ भुक्खड़ क्षुद्र प्राणियों का (इतः) यहां से (बाधस्व) विनाश कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मातृनामा ऋषिः। मातृनामा देवता। उत मन्त्रोक्ता देवताः। १, ३, ४-९,१३, १८, २६ अनुष्टुभः। २ पुरस्ताद् बृहती। १० त्र्यवसाना षट्पदा जगती। ११, १२, १४, १६ पथ्यापंक्तयः। १५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी। १७ त्र्यवसाना सप्तपदा जगती॥
इंग्लिश (4)
Subject
Foetus Protection
Meaning
Let Pinga protect the life of new born male or female baby. Destroyers of the egg must not damage the foetuses. O physician, drive away the life destroyers from here.
Translation
O pinga (white mustard), may you protect the baby at birth. Do not turn a male (baby) into a female. May not the eaters cause harm to embryos. Drive the devouring germs away from here.
Translation
Let the Pinga protect the babe at the birth, let it protect the male child and female child and let not the disease eating the testicles of the babe destroy the babe in the womb, O physician ! drive away these troublesome germs.
Translation
O physician, preserve the babe at birth, let not the male or female child be put to trouble. Let not the germ that devours the unborn babe, destroy the embryos. Drive far away such mean, hungry worms.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२५−(पिङ्ग) म० ६। हे पराक्रमिन् (रक्ष) (जायमानम्) उत्पद्यमानम् (पुमांसम्) पुरषसन्तानम् (स्त्रियम्) स्त्रीबालकम् (मा क्रन्) कृञ् हिंसायाम्-लुङ्। मन्त्रे घसह्वर०। पा० २।४।८०। च्लेर्लुक्। मा हिंसन्तु (आण्डादः) ञमन्ताड् डः। उ० १।११४। अम गत्यादिषु-ड। डस्य इत्त्वं न। प्रज्ञादित्वात् स्वार्थे-अण्। अदोऽनन्ने। पा० ३।२।६८। अद भक्षणे-विट् अण्डानां गर्भस्थसन्तानानां भक्षकाः (गर्भान्) (मा दभन्) मा हिंसन्तु (बाधस्व) पीडय (इतः) (किमीदिनः) म० २१ ॥
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