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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 85
    ऋषिः - भिषगृषिः देवता - वैद्यो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    यदि॒मा वा॒जय॑न्न॒हमोष॑धी॒र्हस्त॑ऽआद॒धे। आ॒त्मा यक्ष्म॑स्य नश्यति पु॒रा जी॑व॒गृभो॑ यथा॥८५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। इ॒माः। वा॒जय॑न्। अ॒हम्। ओष॑धीः। हस्ते॑। आ॒द॒ध इत्या॑ऽद॒धे। आ॒त्मा। यक्ष्म॑स्य। न॒श्य॒ति॒। पु॒रा। जी॒व॒गृभ॒ इति॑ जीव॒ऽगृभः॑। य॒था॒ ॥८५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदिमा वाजयन्नहमोषधीर्हस्तऽआदधे । आत्मा यक्ष्मस्य नश्यति पुरा जीवगृभो यथा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। इमाः। वाजयन्। अहम्। ओषधीः। हस्ते। आदध इत्याऽदधे। आत्मा। यक्ष्मस्य। नश्यति। पुरा। जीवगृभ इति जीवऽगृभः। यथा॥८५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 85
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! (য়থা) যে প্রকার (পুরা) পূর্বে (বাজয়ন্) প্রাপ্ত করিয়া (অহম্) আমি (য়ৎ) যে (ইমাঃ) এই সব (ওষধীঃ) ওষধীগুলিকে (হস্তে) হস্তে (আদধে) ধারণ করি যদ্দ্বারা (জীবগৃভঃ) জীবের গ্রাহক ব্যাধি ও (য়ক্ষস্য) ক্ষয় রাজরোগের (আত্মা) মূলতত্ত্ব (নশ্যতি) নষ্ট হইয়া যায় । সেই সব ওষধীগুলিকে শ্রেষ্ঠ যুক্তি দ্বারা উপযোগে আানিও ।

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । মনুষ্যদিগের উচিত যে, সুন্দর হস্তক্রিয়া দ্বারা ওষধীগুলিকে প্রতিপন্ন করিয়া ঠিক ঠিক ক্রমে কাজে লাগাও এবং ক্ষয়াদি বড় রোগগুলিকে নিবৃত্ত করিয়া আনন্দের জন্য প্রযত্নশীল হও ॥ ৮৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - য়দি॒মা বা॒জয়॑ন্ন॒হমোষ॑ধী॒র্হস্ত॑ऽআদ॒ধে ।
    আ॒ত্মা য়ক্ষ্ম॑স্য নশ্যতি পু॒রা জী॑ব॒গৃভো॑ য়থা ॥ ৮৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - য়দিমা ইত্যস্য ভিষগৃষিঃ । বৈদ্যো দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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