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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 19
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - हेमन्तर्त्तुर्देवता छन्दः - निचृत्कृतिः स्वरः - निषादः
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    अ॒यमु॒पर्य॒र्वाग्व॑सु॒स्तस्य॑ सेन॒जिच्च॑ सु॒षेण॑श्च सेनानीग्राम॒ण्यौ। उ॒र्वशी॑ च पू॒र्वचि॑त्तिश्चाप्स॒रसा॑वव॒स्फूर्ज॑न् हे॒तिर्वि॒द्यु॒त्प्रहे॑ति॒स्तेभ्यो॒ नमो॑ऽअस्तु॒ ते नो॑ऽवन्तु॒ ते नो॑ मृडयन्तु॒ ते यं द्वि॒ष्मो यश्च॑ नो॒ द्वेष्टि॒ तमे॑षां जम्भे॑ दध्मः॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम्। उ॒परि॑। अ॒र्वाग्व॑सु॒रित्य॒र्वाक्ऽव॑सुः। तस्य॑। से॒न॒जिदिति॑ सेन॒ऽजित्। च॒। सु॒षेणः॑। सु॒सेन॒ इति॑ सु॒ऽसेनः॑। च॒। से॒ना॒नी॒ग्रा॒म॒ण्यौ᳖। से॒ना॒नी॒ग्रा॒म॒न्या᳖विति॑ सेनानीग्राम॒न्यौ᳖। उ॒र्वशी॑। च॒। पू॒र्वचि॑त्ति॒रिति॑ पू॒र्वऽचि॑त्तिः। च॒। अ॒प्स॒रसौ॑। अ॒व॒स्फूर्ज॒न्नित्य॑व॒ऽस्फूर्ज॑न्। हे॒तिः। वि॒द्युदिति॑ वि॒ऽद्युत्। प्रहे॑ति॒रिति॒ प्रऽहे॑तिः। तेभ्यः॑। नमः॑। अ॒स्तु॒। ते। नः॒। अ॒व॒न्तु॒। ते। नः॒। मृ॒ड॒य॒न्तु॒। ते। यम्। द्वि॒ष्मः। यः। च॒। नः॒। द्वेष्टि॑। तम्। ए॒षा॒म्। जम्भे॑। द॒ध्मः॒ ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयमुपर्यर्वाग्वसुस्तस्य सेनजिच्च सुषेणश्च सेनानीग्रामण्या । उर्वशी च पूर्वचित्तिश्चाप्सरसाववस्पूर्जन्हेतिर्विद्युत्प्रहेतिस्तेभ्यो नमोऽअस्तु ते नो वन्तु ते नो मृडयन्तु ते यन्द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषाञ्जम्भे दध्मः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अयम्। उपरि। अर्वाग्वसुरित्यर्वाक्ऽवसुः। तस्य। सेनजिदिति सेनऽजित्। च। सुषेणः। सुसेन इति सुऽसेनः। च। सेनानीग्रामण्यौ। सेनानीग्रामन्याविति सेनानीग्रामन्यौ। उर्वशी। च। पूर्वचित्तिरिति पूर्वऽचित्तिः। च। अप्सरसौ। अवस्फूर्जन्नित्यवऽस्फूर्जन्। हेतिः। विद्युदिति विऽद्युत्। प्रहेतिरिति प्रऽहेतिः। तेभ्यः। नमः। अस्तु। ते। नः। अवन्तु। ते। नः। मृडयन्तु। ते। यम्। द्विष्मः। यः। च। नः। द्वेष्टि। तम्। एषाम्। जम्भे। दध्मः॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 19
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    पदार्थ -
    পদার্থ –হে মনুষ্যগণ! যেমন (অয়ম্) এই (উপরি) উপর বর্ত্তমান (অর্বাগ্বসুঃ) বৃষ্টির পশ্চাৎ ধনের হেতু (তস্য) তাহার (সেনজিৎ) সেনা বিজেতা (চ) এবং (সুষেণঃ) সুন্দর সেনাপতি (চ) এই উভয়ে (সেনানীগ্রামণ্যৌ) সেনাপতি ও গ্রামাধ্যক্ষের তুল্য বর্ত্তমান অগ্রহায়ণ ও পৌষ মাস (উর্বশী) বহু খাওয়ার জন্য আন্তর্য্য দীপ্তি (চ) এবং (পূর্বচিত্তিঃ) আদি জ্ঞানের হেতু (চ) এই উভয়ে (অপ্সরসৌ) প্রাণ সকলের মধ্যে নিবাসকারী (অবস্ফূর্জন্) ভয়ংকর নাদ করিয়া (হেতিঃ) বজ্র তুল্য (বিদ্যুৎ) বিদ্যুতের চালক এবং (প্রহেতিঃ) উত্তম বজ্রের সমান রক্ষক প্রাণী (তেভ্যঃ) তাহাদের জন্য (নমঃ) অন্নাদি পদার্থ (অস্তু) হউক (তে) তাহারা (নঃ) আমাদিগকে (অবন্তু) রক্ষা করুক (তে) তাহারা (নঃ) আমাদেরকে (মৃডয়ন্তু) সুখী করুক (তে) সেই আমরা (য়ম্) যে দুষ্টের সহিত (দ্বিষ্মঃ) দ্বেষ করি (চ) এবং (য়ঃ) যে (নঃ) আমাদের সহিত (দ্বেষ্টি) দ্বেষ করে (তম্) তাহাকে আমরা (এষাম্) এই হিংসক প্রাণিদের (জম্ভে) মুখে (দধমঃ) ধারণ করি, সেইরূপ তোমরাও তাহাকে ধারণ কর ॥ ১ঌ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । ইহাও হেমন্ত ঋতুর শেষ ব্যাখ্যা । মনুষ্যদিগের উচিত যে, এই ঋতুর যুক্তিপূর্বক সেবন করিয়া বলবান হউক ॥ ১ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - অ॒য়মু॒পর্য়॒র্বাগ্ব॑সু॒স্তস্য॑ সেন॒জিচ্চ॑ সু॒ষেণ॑শ্চ সেনানীগ্রাম॒ণ্যৌ᳖ । উ॒র্বশী॑ চ পূ॒র্বচি॑ত্তিশ্চাপ্স॒রসা॑বব॒স্ফূর্জ॑ন্ হে॒তির্বি॒দ্যু॒ৎপ্রহে॑তি॒স্তেভ্যো॒ নমো॑ऽঅস্তু॒ তে নো॑ऽবন্তু॒ তে নো॑ মৃডয়ন্তু॒ তে য়ং দ্বি॒ষ্মো য়শ্চ॑ নো॒ দ্বেষ্টি॒ তমে॑ষাং জম্ভে॑ দধ্মঃ ॥ ১ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - অয়মুপরীত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । হেমন্তর্ত্তুর্দেবতা । নিচৃৎকৃতিশ্ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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