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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 35
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    अग्ने॒ वाज॑स्य॒ गोम॑त॒ऽईशा॑नः सहसो यहो। अ॒स्मे धे॑हि जातवेदो॒ महि॒ श्रवः॑॥३५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑। वाज॑स्य। गोम॑त॒ इति॒ गोऽम॑तः। ईशा॑नः। स॒ह॒सः॒। य॒हो॒ इति॑ यहो। अ॒स्मे इत्य॒स्मे। धे॒हि॒। जा॒त॒वे॒द॒ इति॑ जातऽवेदः। महि॑। श्रवः॑ ॥३५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने वाजस्य गोमतऽईशानः सहसो यहो । अस्मे धेहि जातवेदो महि श्रवः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। वाजस्य। गोमत इति गोऽमतः। ईशानः। सहसः। यहो इति यहो। अस्मे इत्यस्मे। धेहि। जातवेद इति जातऽवेदः। महि। श्रवः॥३५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 35
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (সহসঃ) বলবান পুরুষের (য়হো) সন্তান! (জাতবেদঃ) বিজ্ঞানকে প্রাপ্ত (অগ্নে) তেজস্বী বিদ্বান্ আপনি অগ্নির তুল্য (গোমতঃ) প্রশস্ত গাভি ও পৃথিবী দ্বারা যুক্ত (বাজস্য) অন্নের (ঈশানঃ) স্বামী সক্ষম (অস্মৈ) আমাদের জন্য (মহি) বৃহৎ (শ্রবঃ) ধনকে (ধেহি) ধারণ করুন ॥ ৩৫ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । উত্তম রীতি পূর্বক উপযুক্ত অগ্নি বহু ধন প্রদান করে এমন জানা উচিত ॥ ৩৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - অগ্নে॒ বাজ॑স্য॒ গোম॑ত॒ऽঈশা॑নঃ সহসো য়হো ।
    অ॒স্মে ধে॑হি জাতবেদো॒ মহি॒ শ্রবঃ॑ ॥ ৩৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - অগ্নে বাজস্যেত্যত্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । উষ্ণিক্ ছন্দঃ ।
    ঋষভঃ স্বরঃ ॥

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