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  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 28
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    मधु॒ नक्त॑मु॒तोषसो॒ मधु॑म॒त् पार्थि॑व॒ꣳ रजः॑। मधु॒ द्यौर॑स्तु नः पि॒ता॥२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मधु॑। नक्त॑म्। उ॒त। उ॒षसः॑। मधु॑म॒दिति॒ मधु॑ऽमत्। पार्थि॑वम्। रजः॑। मधु॑। द्यौः॑। अ॒स्तु॒। नः॒। पि॒ता ॥२८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवँ रजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मधु। नक्तम्। उत। उषसः। मधुमदिति मधुऽमत्। पार्थिवम्। रजः। मधु। द्यौः। अस्तु। नः। पिता॥२८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 28
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    पदार्थ -
    १. गत मन्त्र के अनुसार अपना सुन्दर जीवन बनानेवाले व्यक्ति ही 'ऋतायन्' हैं, (ऋतम् आत्मन इछन्ति) = जो अपने जीवन में सब क्रियाएँ ऋत के अनुसार करते हैं। (ऋत) = right= ठीक, उनकी सब क्रियाएँ ठीक स्थान व ठीक समय पर ही होती हैं। ऋत का अर्थ यज्ञ भी है। इनका जीवन यज्ञिय होता है। ये लोग स्वार्थ से ऊपर उठकर यज्ञमय जीवनवाले बनते हैं, सर्वभूतहिते रतः होते हैं । २. इस (ऋतायते) = ऋतमय जीवनवाले के लिए (वाता:) = वायुएँ मधु-मधुर होकर बहती हैं, हानिकर नहीं होती । (सिन्धवः) = नदियाँ भी इसके लिए (मधु) = मधुर बनकर (क्षरन्ति) = चलती हैं। इसके लिए नदियों का जल सदा स्वास्थ्यवर्धक ही होता है। (नः) = हम ऋत का पालन करनेवालों के लिए (ओषधी:) = ओषधियाँ (माध्वी:) = माधुर्यवाली (सन्तु) = हों। ३. मन्त्र में यह क्रम द्रष्टव्य है कि वर्षा की वायुएँ चलती हैं, नदियाँ बहती हैं और ओषधियाँ उत्तम होती हैं। ४. (नक्तं मधु) = रात्रि इसके लिए माधुर्यवाली हो (उत) = और (उषसः) = उषःकाल भी मधुर हों। रात्रि में यह मीठी नींद सोये, (उषः) = इसके सब दोषों का दहन करती हुई इसे प्राणशक्ति सम्पन्न बना दे। ५. (पार्थिवं रजः) = यह पार्थिवलोक या पृथिवी की मिट्टी इसके लिए (मधुमत्) = माधुर्यवाली हो। इसके शरीर पर मलने से इसके सब विष दूर हों पिता (द्यौ:) = पितृतुल्य यह द्युलोक (नः) = हमारे लिए (मधुः अस्तु) = माधुर्यवाला हो। पृथिवी माता हो और द्युलोक पिता। माता-पिता की भाँति ये (ऋतायन्) = के लिए हितकारी हों । संक्षेप में दिन-रात तथा पृथिवी व द्युलोक सब इसके लिए हितकारी हों । ६. (नः) = हमारे लिए (वनस्पतिः) = सब वनस्पतियाँ मधुमान् माधुर्य को लिये हुए हों, (सूर्यः मधुमान् अस्तु) = सूर्य माधुर्यवाला हो। (गावः) = गौवें भी (नः) = हमारे लिए (माध्वी:) = माधुर्यपूर्ण दूध देनेवाली (भवन्तु) = हों। वस्तुतः सूर्य किरणों से वनस्पतियाँ भी प्राणशक्ति सम्पन्न होती हैं और उनका सेवन करनेवाली गौवें भी उत्तम दूध देनेवाली होती हैं । ७. एवं हमारा जीवन ऋतमय हो तो सारा ही आधिदैविक जगत् हमारे अनुकूल होता है, हमारे लिए मधुर होता है। जीवन में से ऋत के चले जाने पर ही आधिदैविक कष्ट आया करते हैं।

    भावार्थ - भावार्थ- हमारा जीवन ऋतमय हो, जिससे हमारा संसार मधुर बने। ऋतमय जीवनवाला ही गोतम, प्रशस्तेन्द्रिय होता है। ऐसा होने पर ही इन्द्र की कृपा होती है।

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