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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 19
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - विराडतिधृतिः स्वरः - षड्जः
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    नमो॒ रोहि॑ताय स्थ॒पत॑ये वृ॒क्षाणां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ भुव॒न्तये॑ वारिवस्कृ॒तायौष॑धीनां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ म॒न्त्रिणे॑ वाणि॒जाय॒ कक्षा॑णां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नम॑ऽउ॒च्चैर्घो॑षायाक्र॒न्दय॑ते पत्ती॒नां पत॑ये॒ नमः॑॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। रोहि॑ताय। स्थ॒पत॑ये। वृ॒क्षाणा॑म्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। भु॒व॒न्तये॑। वा॒रि॒व॒स्कृ॒ताय॑। वा॒रि॒वः॒कृ॒तायेति॑ वारिवःऽकृ॒ताय॑। ओष॑धीनाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। म॒न्त्रिणे॑। वा॒णि॒जाय॑। कक्षा॑णाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। उ॒च्चैर्घो॑षा॒येत्यु॒च्चैःऽघो॑षाय। आ॒क्र॒न्दय॑त॒ इत्या॑ऽक्र॒न्दय॑ते। प॒त्ती॒नाम्। पत॑ये। नमः॑ ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमो रोहिताय स्थपतये वृक्षाणाम्पतये नमो नमो भुवन्तये वारिवस्कृतायौषधीनाम्पतये नमो नमो मन्त्रिणे वाणिजाय कक्षाणाम्पतये नमो नमऽउच्चौर्घाषायाक्रन्दयते पत्तीनाम्पतये नमो नमः कृत्स्नायतया ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। रोहिताय। स्थपतये। वृक्षाणाम्। पतये। नमः। नमः। भुवन्तये। वारिवस्कृताय। वारिवःकृतायेति वारिवःऽकृताय। ओषधीनाम्। पतये। नमः। नमः। मन्त्रिणे। वाणिजाय। कक्षाणाम्। पतये। नमः। नमः। उच्चैर्घोषायेत्युच्चैःऽघोषाय। आक्रन्दयत इत्याऽक्रन्दयते। पत्तीनाम्। पतये। नमः॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 19
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    पदार्थ -
    १. (रोहिताय) = [वृद्धिकराय - द०] राष्ट्र की सम्पत्ति को बढ़ानेवाले (स्थपतये) = गृहादि के बनानेवाले शिल्पियों का (नमः) = हम आदर करते हैं। इसी शिल्प की उन्नति के लिए वृक्षाणां पतये शिल्पोपयोगी काष्ठों को प्राप्त करानेवाले वृक्षों के रक्षकों का (नमः) = हम आदर करते हैं। घर आदि के निर्माण में लकड़ी का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, घर का सारा परिच्छद [Furniture] लगभग इसी पर आश्रित है। २. (भुवन्तये) = भुवं तनोति - कृषि योग्य भूमि का विस्तार करनेवाले के लिए भूमि जोतनेवाले के लिए, और इस प्रकार (वारिवस्कृताय) = [वरिवः = धनं वरिवस्कृदेव वारिवस्कृत: स्वार्थे अण्] धन के उत्पादक के लिए (नमः) = हम नमस्कार करते हैं। इस कृषि के द्वारा (ओषधीनां पतये) = विविध ओषधियों के रक्षक व स्वामी के लिए हम (नमः) = आदर देते हैं। यहाँ 'भुवन्तये' शब्द से साम्राज्य - वृद्धि की भावना लेना उपयुक्त नहीं। ३. अब शिल्प व कृषि से उत्पन्न पदार्थों को विचारपूर्वक मण्डियों (Market) में ले-जानेवाले (मन्त्रिणे) = विचारशील (वाणिजाय) = व्यापारी के लिए (नमः) = हम नमस्कार करते हैं और व्यापार की रक्षा के लिए (कक्षाणां पतये) [कक्ष = Gate] = सब द्वारों के रक्षकों का हम (नमः) = आदर करते हैं। इन द्वारों की रक्षा न होने पर तस्कर - व्यापार [Smuggling] बढ़ जाता है। इसके रोकने के लिए देश में प्रविष्ट होने के साधनभूत सब द्वारों की रक्षा होनी चाहिए। कक्ष शब्द का अर्थ 'वनलतागुल्मवीरुध आदि' भी है। इनसे नाना प्रकार की ओषधियों का निर्माण होता है, अतः इनके रक्षक का हम आदर करते हैं। ४. ' कक्ष' का अर्थ सामन्त [border] प्रदेश भी है। व्यापार की रक्षा के लिए और विशेषत: तस्कर व्यापार को रोकने के लिए सामन्त देश में नियुक्त सेना का जो सेनापति है जो (उच्चैः घोषाम्) = खूब गर्जती हुई आवाज़वाला है और (आक्रन्दयते) = युद्ध में शत्रुओं का सामना करनेवाला है तथा (पत्तीनां पतये) = जो पत्तियों का स्वामी है उसका हम आदर करते हैं। 'एको रथो गजश्चाश्वस्त्रयः पंच पदातयः । एष सेनाविशेषोऽयं पत्तिरित्यभिधीयते ' = एक रथ, एक हाथी, तीन घोड़े, पाँच प्यादे - ये मिलकर 'पत्ति' कहलाती है। सामन्त प्रदेश में स्थान-स्थान पर इस प्रकार की पत्ति की व्यवस्था होती है। इन पत्तियों के स्वामी को हम आदर देते हैं।

    भावार्थ - भावार्थ - राष्ट्र में 'शिल्पी, कृषक या व्यापारी' ये सब उचित आदर पाएँ तथा प्रान्तभाग पर रक्षा के लिए नियत पत्तियों के पति का भी हमें आदर करना है।

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