यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 14
ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः
देवता - विद्वांसो देवता
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
0
इडा॑भिर॒ग्निरीड्यः॒ सोमो॑ दे॒वोऽअम॑र्त्यः।अ॒नु॒ष्टुप् छन्द॑ऽइन्द्रि॒यं पञ्चा॑वि॒गौर्वयो॑ दधुः॥१४॥
स्वर सहित पद पाठइडा॑भिः। अ॒ग्निः। ईड्यः॑। सोमः॑। दे॒वः। अम॑र्त्यः। अ॒नु॒ष्टुप्। अ॒नु॒स्तुबित्य॑नुऽस्तुप्। छन्दः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। पञ्चा॑वि॒रिति॒ पञ्च॑ऽअविः। गौः। वयः॑। द॒धुः॒ ॥१४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इडाभिरग्निरीड्यः सोमो देवो अमर्त्यः । अनुष्टुप्छन्द इन्द्रियम्पञ्चाविर्गौर्वयो दधुः ॥
स्वर रहित पद पाठ
इडाभिः। अग्निः। ईड्यः। सोमः। देवः। अमर्त्यः। अनुष्टुप्। अनुस्तुबित्यनुऽस्तुप्। छन्दः। इन्द्रियम्। पञ्चाविरिति पञ्चऽअविः। गौः। वयः। दधुः॥१४॥
विषय - पञ्चाविर्गौः
पदार्थ -
१. स्वस्त्यात्रेय के जीवन में निम्न वस्तुएँ (इन्द्रियम्) = प्रत्येक इन्द्रिय की शक्ति को तथा (वयः) = अविच्छिन्न कर्मतन्तुवाले जीवन को (दधुः) = धारण करती हैं। २. सबसे प्रथम तो (इडाभि:) = सब वेदवाणियों से (ईड्यः) = स्तुति के योग्य (अग्निः) = परमात्मा स्तुत्य हैं। इनसे उनका स्तवन करने पर हमारी शक्तियों का ह्रास नहीं होता और हमारा जीवन क्रियामय बनकर उत्कृष्ट बनता है। ३. दूसरे स्थान पर (सोमः) = सोम है, वीर्यशक्ति है जो (देवः) = मन के अन्दर दिव्य गुणों को जन्म देनेवाली है तथा (अमर्त्यः) = मनुष्य को रोगों से न मरने देनेवाली है। यह 'सोम' सुरक्षित होकर शक्ति व उत्कृष्ट जीवन का धारण करता है। ४. तीसरे स्थान पर (अनुष्टुप् छन्दः) = [अनु स्तौति] प्रत्येक कार्य को करते हुए प्रभु का स्तवन करने की इच्छा है। प्रभु स्मरणपूर्वक होनेवाले कार्य हमें कभी क्षीणशक्ति नहीं करते और ये कार्य हमारे जीवन को उत्कृष्ट बनाते हैं । ५. अन्त में (पञ्चाविः गौः) = है, वह ज्ञान की रश्मि है, जो हमारे पञ्चभौतिक शरीर का पूर्ण रक्षण करती है। इससे हमारे पाँचों प्राणों का रक्षण होता है- पाँचों कर्मेन्द्रियों का मार्ग प्रशस्त बनाया जाता है और यह ज्ञानरश्मि हमें पाँचों क्लेशों से बचाती है।
भावार्थ - भावार्थ - १. वेदवाणियों से स्तुत्य प्रभु २. दिव्य गुणों को पैदा करनेवाला व रोगों से न मरने देनेवाला सोम ३. प्रभु स्मरणपूर्वक कार्य करना तथा ४. पाँचों क्लेशों से बचानेवाली ज्ञानरश्मियाँ हममें शक्ति का धारण करें व हमारे जीवन को उत्कृष्ट बनाएँ।
इस भाष्य को एडिट करेंAcknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal