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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 7
    ऋषिः - बृहस्पतिर्ऋषिः देवता - सेनापतिर्देवता छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    वातो॑ वा॒ मनो॑ वा गन्ध॒र्वाः स॒प्तवि॑ꣳशतिः। तेऽअग्रेऽश्व॑मयुञ्जँ॒स्तेऽअ॑स्मिन् ज॒वमाद॑धुः॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वातः॑। वा॒। मनः॑। वा॒। ग॒न्ध॒र्वाः। स॒प्तवि॑ꣳशति॒रिति॑ स॒प्तऽवि॑ꣳशतिः। ते। अग्रे॑। अश्व॑म्। अ॒यु॒ञ्ज॒न्। ते। अ॒स्मि॒न्। ज॒वम्। आ। अ॒द॒धुः॒ ॥७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वातो वा मनो वा गन्धर्वाः सप्तविँशतिः । ते अग्रे श्वमयुञ्जँस्ते ऽअस्मिञ्जवमादधुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वातः। वा। मनः। वा। गन्धर्वाः। सप्तविꣳशतिरिति सप्तऽविꣳशतिः। ते। अग्रे। अश्वम्। अयुञ्जन्। ते। अस्मिन्। जवम्। आ। अदधुः॥७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 7
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    पदार्थ -

    १. राष्ट्र के सञ्चालन में सेनाओं को वायु-वेग से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले-जानेवाला सेनापति ( वातः ) = है। वह सेनाओं को निरन्तर प्रेरणा दे रहा है। उत्तम मन्त्रणा करनेवाला मुख्यमन्त्री ‘मनः’ है और त्रीणि राजाना विदथे पुरुणि इस मन्त्र में वर्णित ‘राजार्य, धर्मार्य और विद्यार्य सभाओं’ के दशावर अर्थात् नौ-नौ सभ्य, कुल मिलकर २७ सभ्य वेदवाणी का धारण करनेवाले होने से ‘गन्धर्व’ हैं [ गां धरति ]। 

    २. ( ते ) = वे सेनापति, मुख्यमन्त्री तथा ( सप्तविंशतिः ) = सत्ताईस ( गन्धर्वाः ) = वेदों के धारण करनेवाले विद्वान् सभ्य—ये सब मिलकर ( अश्वम् ) = शक्तिशाली तथा निरन्तर कार्यों में व्याप्त होनेवाले राजा को ( अग्रे ) = सबसे अग्रस्थान पर ( अयुञ्जन् ) = नियुक्त करते हें। वे इसे अपना मुखिया बनाते हैं। ( ते ) = वे ही ( अस्मिन् ) = इस अग्रस्थान पर स्थित होनेवाले राष्ट्रपति में ( जवम् ) = स्फूर्ति व गति को ( आदधुः ) = स्थापित करते हैं। उन्हीं के परामर्श के अनुसार ही यह कार्य करता है। 

    भावार्थ -

    भावार्थ — राष्ट्र के मुख्य अधिकारी सेनापति, मुख्यमन्त्री, सभासद तथा राष्ट्रपति हैं।

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