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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 73
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    पृ॒ष्टो दिा॒व पृ॒ष्टोऽअ॒ग्निः पृ॑थि॒व्यां पृ॒ष्टो विश्वा॒ऽओष॑धी॒रावि॑वेश। वै॒श्वा॒न॒रः सह॑सा पृ॒ष्टोऽअ॒ग्निः स नो॒ दिवा॒ स रि॒षस्पा॑तु॒ नक्त॑म्॥७३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पृ॒ष्टः। दि॒वि। पृ॒ष्टः। अ॒ग्निः। पृ॒थि॒व्याम्। पृ॒ष्टः। विश्वाः॑। ओष॑धीः। आ। वि॒वे॒श॒। वै॒श्वा॒न॒रः। सह॑सा। पृ॒ष्टः। अ॒ग्निः। सः। नः॒। दिवा॑। सः। रि॒षः। पा॒तु॒। नक्त॑म् ॥७३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पृष्टो दिवि पृष्टोऽअग्निः पृथिव्याम्पृष्टो विश्वा ओषधीरा विवेश । वैश्वानरः सहसा पृष्टो अग्निः स नो दिवा स रिषस्पातु नक्तम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पृष्टः। दिवि। पृष्टः। अग्निः। पृथिव्याम्। पृष्टः। विश्वाः। ओषधीः। आ। विवेश। वैश्वानरः। सहसा। पृष्टः। अग्निः। सः। नः। दिवा। सः। रिषः। पातु। नक्तम्॥७३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 73
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    भावार्थ -
    ( दिवि ) द्यौलोक, महान् आकाश में ( पृष्टः ) प्राण, बल सेचन करने में समर्थ, सूर्य के समान तेजस्वी और ( पृथिव्यां पृष्टः ) पृथिवी में मेघ के समान और ( पृष्टः ) रस, वीर्य सेचन करने में समर्थ ( विश्वाः ओषधीः ) समस्त ओषधियों में अग्नि के समान जो ( अग्निः ), अग्रणी नेता (दिवि ) राजसभा और विद्वत्सभा में, ( पृथिव्याम् ) पृथिवीवासी प्रजा में और ( विश्वा ओषधीः ) समस्त तेजस्विनी सेनाओं में (आ विवेश) राजारूप से विद्यमान है वह ( वैश्वानरः ) समस्त विश्व, राष्ट्र का नेता ( सहसा ) शत्रुपराजय करने वाले बल से ( पृष्टः ) सर्वत्र ज्ञात, एवं बलवान्, सर्वोत्तम ( अग्नि: ) अग्रणी पुरुष (सः) वह (नः), हमें (दिवा ) दिन और ( नक्तम् ) रात को भी (रिषः ) हिंसक लोगों से ( पातु ) बचावे । शत० ९ । ५ । २ । ६ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - इन्द्रकुत्सौ ऋषि । वैश्वानरो देवता । आर्षी त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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