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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 8
    ऋषिः - बृहदुक्थो वामदेव्य ऋषिः देवता - सरस्वती देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    आ॒दि॒त्यैर्नो॒ भार॑ती वष्टु य॒ज्ञꣳ सर॑स्वती स॒ह रु॒द्रैर्न॑ऽआवीत्।इडोप॑हूता॒ वसु॑भिः स॒जोषा॑ य॒ज्ञं नो॑ देवीर॒मृते॑षु धत्त॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒दि॒त्यैः। नः॒। भार॑ती। व॒ष्टु॒। य॒ज्ञम्। सर॑स्वती। स॒ह। रु॒द्रैः। नः॒। आ॒वी॒त्। इडा॑। उप॑हू॒तेत्युप॑ऽहूता। वसु॑भि॒रिति॒ वसु॑ऽभिः। स॒जोषा॒ इति॑ स॒ऽजोषाः॒। य॒ज्ञम्। नः॒। दे॒वीः॒। अ॒मृते॑षु। ध॒त्त॒ ॥८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आदित्यैर्ना भारती वष्टु यज्ञँ सरस्वती सह रुद्रैर्नऽआवीत् । इडोपहूता वसुभिः सजोषा यज्ञन्नो देवीरमृतेषु धत्त ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आदित्यै। नः। भारती। वष्टु। यज्ञम्। सरस्वती। सह। रुद्रैः। नः। आवीत्। इडा। उपहूतेत्युपऽहूता। वसुभिरिति वसुऽभिः। सजोषा इति सऽजोषाः। यज्ञम्। नः। देवीः। अमृतेषु। धत्त॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 8
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    भावार्थ -
    (भारती) भारती, नाम सभा (आदित्यैः) आदित्य के समान तेजस्वी पूर्ण विद्वान् पुरुषों से ( नः यज्ञं वष्टु ) हमारे यज्ञरूप सुसंगत राष्ट्र को उज्ज्वल करे । ( सरस्वती ) सरस्वती, नाम विद्वत्सभा (रुदै: सह ) रुद्र, उपदेश करने वाले विद्वानों और दुष्ट पुरुषों को रुलाने वाले वीर पुरुषों सहित (नः) हमें (आवीत् ) प्राप्त हो, हमारी रक्षा करे । (इडा) नाम संस्था (सजोषाः) समान प्रीतियुक्त होकर (वसुभि: सह ) बसने बसाने हारे राष्ट्र के प्रतिनिधियों सहित ( उपहूता ) आदरपूर्वक बुलाई जाकर हमें प्राप्त हो । (देवीः) ये तीनों देवियां, उत्तम व्यवहारज्ञ, मार्ग- प्रदर्शक, सर्वद्रष्ट्री संस्थाएं, (न: हमारे ) (यज्ञम् ) यज्ञ को (अमृतेषु) नाश- रहित आधारों पर ( धत्त ) स्थापित करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - सरस्वती । विष्टुप् । धैवतः ॥

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