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  • यजुर्वेद - अध्याय 5/ मन्त्र 36
    ऋषिः - आगस्त्य ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृत् आर्षी त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः
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    अग्ने॒ नय॑ सु॒पथा॑ रा॒येऽअ॒स्मान् विश्वा॑नि देव व॒युना॑नि वि॒द्वान्। यु॒यो॒ध्यस्मज्जु॑हुरा॒णमेनो॒ भूयि॑ष्ठां ते॒ नम॑ऽउक्तिं विधेम॥३६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑। नय॑। सु॒पथेति॑ सु॒ऽपथा॑। रा॒ये। अ॒स्मान्। विश्वा॑नि। दे॒व॒। व॒युना॑नि। वि॒द्वान्। यु॒यो॒धि। अ॒स्मत्। जु॒हु॒रा॒णम्। एनः॑। भूयि॑ष्ठाम्। ते॒। नम॑उक्ति॒मिति॒ नमः॑ऽउक्तिम्। वि॒धे॒म॒ ॥३६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने नय सुपथा रायेऽअस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् । युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठान्ते नमउक्तिँ विधेम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। नय। सुपथेति सुऽपथा। राये। अस्मान्। विश्वानि। देव। वयुनानि। विद्वान्। युयोधि। अस्मत्। जुहुराणम्। एनः। भूयिष्ठाम्। ते। नमउक्तिमिति नमःऽउक्तिम्। विधेम॥३६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 5; मन्त्र » 36
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    भावार्थ -

    हे राजन् ! (त्वा ) तेरी शरण में( प्राक् ) पूर्व ( अपाक् )पश्चिम, ( अधराक् ) दक्षिण और ( उदक् ) उत्तर ( सर्वतः ) इन सब ओर से ( दिशः ) समस्त दिशाओं के प्रजाजन ( आधावन्तु )आवें और कहें । हे ( अम्ब ) हमारे प्रेमी ! (निः पर ) हमें सब प्रकार से पालन कर | ( : ) समस्त प्रजाएं (त्वा) तुझे अपना स्वामी, माता के सम्मान पालक ( सम् विदान् ) भली प्रकार जानें । शत० ३ । ९ । ४ । २१ ॥ 
    गृहस्थ पक्ष में ---हे ( अम्ब) बच्चों की माता ! तेरे पुत्र सब दिशाओं से तेरे पास आवें, कहें हमें पालन कर । समस्त प्रजाएं तुझे अपनी माता ही जानें।
     

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    सोमो देवता । उष्णिक । ऋषभः ॥ 
     

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