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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 31
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - प्रजापत्यादयो देवताः छन्दः - स्वराट् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    म॒युः प्रा॑जाप॒त्यऽउ॒लो ह॒लिक्ष्णो॑ वृषद॒ꣳशस्ते धा॒त्रे दि॒शां क॒ङ्को धुङ्क्षा॑ग्ने॒यी क॑ल॒विङ्को॑ लोहिता॒हिः पु॑ष्करसा॒दस्ते त्वा॒ष्ट्रा वा॒चे क्रुञ्चः॑॥३१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒युः। प्रा॒जा॒प॒त्यऽइति॑ प्राजाऽप॒त्यः। उ॒लः। ह॒लिक्ष्णः॑। वृ॒ष॒द॒ꣳशऽइति॑ वृषऽद॒ꣳशः। ते। धा॒त्रे। दि॒शाम्। क॒ङ्कः धुङ्क्षा॑। आ॒ग्ने॒यी। क॒ल॒विङ्कः॑। लो॒हि॒ता॒हिरिति॑ लोहितऽअ॒हिः। पु॒ष्क॒र॒सा॒दऽइति॑ पुष्करऽसा॒दः। ते। त्वा॒ष्ट्राः। वा॒चे। क्रुञ्चः॑ ॥३१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मयुः प्राजापत्यऽउलो हलिक्ष्णो वृषदँशस्ते धात्रे दिशाङ्कङ्को धुङ्क्षाग्नेयी कलविङ्को लोहिताहिः पुष्करसादस्ते त्वाष्ट्रा वाचे क्रुञ्चः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मयुः। प्राजापत्यऽइति प्राजाऽपत्यः। उलः। हलिक्ष्णः। वृषदꣳशऽइति वृषऽदꣳशः। ते। धात्रे। दिशाम्। कङ्कः धुङ्क्षा। आग्नेयी। कलविङ्कः। लोहिताहिरिति लोहितऽअहिः। पुष्करसादऽइति पुष्करऽसादः। ते। त्वाष्ट्राः। वाचे। क्रुञ्चः॥३१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 31
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (प्रजापत्यः) प्रजापति देवतामय (मयुः) किन्नर म्हणजे निंदनीय माणूस (जाणावा) (उलः) छोटासा किडा (हलिक्ष्णः) आणि विशेष प्रकारचा सिंह आणि (वृषदंशः) रानमांजर वा बोका, (ते) ते सर्व (धात्रे) धारण वा पालन करणार्‍यासाठी (उपयोगी जाणावेत) तसेच (कङ्कः) पांढर्‍या रंगाची घार (दिशाम्) दिशांसाठी जाणावी. (धुङ्क्षा) धुङ्क्षा नावांची पक्षिणी (आग्नेयी) अग्नीदेवतामय जाणावी (कलविङ्कः) लाल रंगाचा साप आणि जो (पुष्करसादः) तलावात राहणारा प्राणी आहे, (ते) हे सर्व (वाष्ट्राः) देवतामय आणि (वाचे) वाणीसाठी (क्रुञ्चः) (सारस) पक्षी आहे, असे जाणा. ॥31॥

    भावार्थ - भावार्थ - जे कोल्हा, साप आदी प्राण्यांना बंदिस्त ठेवतात वा त्यांची उपद्रव, त्रासादी दुष्प्रवृत्तीवर काही संरक्षक उपाय करतात, ते लोक धुरंधर वा कीर्तिवंत ठरतात. ॥31॥

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