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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 40
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - भुरिक् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    यत्ते॑ सा॒दे मह॑सा॒ शूकृ॑तस्य॒ पार्ष्ण्या॑ वा॒ कश॑या वा तु॒तोद॑।स्रु॒चेव॒ ता ह॒विषो॑ऽअध्व॒रेषु॒ सर्वा॒ ता ते॒ ब्रह्म॑णा सूदयामि॥४०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। ते॒। सा॒दे। मह॑सा। शूकृ॑तस्य। पार्ष्ण्या॑। वा॒। कश॑या। वा॒। तु॒तोद॑। स्रु॒चेवे॑ति सु॒चाऽइ॑व। ता। ह॒विषः॒। अ॒ध्व॒रेषु॑। सर्वा॑। ता। ते॒। ब्रह्म॑णा। सू॒द॒या॒मि॒ ॥४० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्ते सादे महसा शूकृतस्य पार्ष्ण्या वा कशया वा तुतोद । स्रुचेव ता हविषोऽअध्वरेषु सर्वा ता ते ब्रह्मणा सूदयामि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। ते। सादे। महसा। शूकृतस्य। पार्ष्ण्या। वा। कशया। वा। तुतोद। स्रुचेवेति सुचाऽइव। ता। हविषः। अध्वरेषु। सर्वा। ता। ते। ब्रह्मणा। सूदयामि॥४०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 40
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे विद्वान, (ते) आपल्या (सादे) बसण्याचे जे ठिकाण, बैठक, त्यामधे (महसा) आपण आपल्या प्रतिष्ठेप्रमाणे (बसता) (ना) अथवा (शूकृतस्य) शीघ्र प्रशिक्षण देऊन प्रशिक्षण देऊन प्रशिक्षित घोड्याचा त्याचा स्वार (कशया) चाबकाने (यत्) जे (पार्ष्ण्या) बरगड्याच्या बाजूला वा पोटा जवळ (वा) अथवा दोन्ही बाजूला फटकारे कारतो अथवा (तुतोद) चालण्यासाठी साधारण ताडन वा फटकारा मारतो (ते त्याला योग्य दिशेने जाण्यासाठी असते.) (अध्वरेषु) यज्ञामधे (हविषः) होम करण्यास योग्य (ता) त्या पदार्थाची जसे (स्रुचेम) स्रचाद्वारे वा मोठ्या चमच्याने होमात आहुती टाकली जाते (ता) ते (सर्वा) सर्व पदार्थ (ते) हे विद्वान, तुमच्यासाठी मी (एकसधनव्यक्ती) (ब्रह्मणा) धनाने (सूदयामि) प्राप्त करून देतो (यज्ञासाठी आवश्यक साहित्य तुमच्या, बैठकीत उपलब्ध करून देतो)

    भावार्थ - भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. ज्याप्रमाणे यज्ञोपयोगी साधनांनी हवनीय पदार्थ यज्ञाग्नीत व्यवस्थितपणे टाकले जातात, तद्वत लोकांनी घोडे आदी पशूंना चांगल्याप्रकारे प्रशिक्षण द्यावे. ॥40॥

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